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पाकिस्तान से छूटकर 12 साल बाद गांव पहुंचा रामबहादुर, देखने को मिला कौशल्या-राम सा मिलन

Pakistan released Rambahadur अतर्रा थाना क्षेत्र के ग्राम पचोखर निवासी रामबहादुर वर्ष 2009 से लापता होने के बाद पाकिस्तान की लाहौर जेल में कई वर्षों तक बंद रहा था। 30 अगस्त को वहां से रिहाई के बाद अमृतसर बार्डर में पहुंचाया गया था।

By Shaswat GuptaEdited By: Published: Thu, 09 Sep 2021 05:13 PM (IST)Updated: Thu, 09 Sep 2021 05:13 PM (IST)
बेटे रामबहादुर से मिलती हुईं उसकी मां।

बांदा, जेएनएन। Pakistan released Rambahadur 12 साल पहले घर से लापता हुआ रामबहादुर पाकिस्तान की जेल से छूटकर लौटा तो उसे देखने और गले लगाने के लिए माता-पिता बेताब थे। बेटा घर आया तो पिता गिल्ला व मां कुसुमा उसे चिपकाकर रो पड़े। ये देख गांव वालों की आंखें भर आईं लेकिन मानसिक बीमार बेटे के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे। वह किसी को पहचान नहीं पा रहा था। हालांकि, उनका नाम और गांव का पता याद था। उसके जेहन में अपनी ससुराल मध्यप्रदेश के छतरपुर स्थित ससुराल और पत्नी का नाम-पता बसा था और वहां जाने को हुआ तो स्वजन व ग्रामीणों ने उसे समझा-बुझाकर रोक लिया। हालांकि उसके लौटने से घर और गांव में जश्न का माहौल है। 

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पचोखर के अंश कोटेदार का पुरवा निवासी रामबहादुर के पिता गिल्ला बताते हैैं कि रामबहादुर की शादी मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के ग्राम कीरतपुर निवासी गेंदाबाई से हुई थी लेकिन वह शादी के तीन माह बाद ही उसे छोड़कर चली गई और वापस नहीं आई इसके बाद उसका मानसिक संतुलन बिगड़ गया। शादी होने के तीन माह तक रामबहादुर की पत्नी ससुराल में रुकी थी,लेकिन वह मायके जाने के बाद दोबारा नही आई जबकि पत्नी के जाने के बाद रामबहादुर का मानसिक मानसिक बिगड़ गया। मई 2009 में नरैनी जाने की बात कहकर लापता हो गया था। जनवरी 2021 में उसके पाकिस्तान की लाहौर जेल में बंद होने की सूचना मिली। 30 अगस्त को पाकिस्तान से रिहा होकर वतन लौटे रामबहादुर को अमृतसर में रेडक्रास सोसाइटी की देखरेख में रखा गया था। 11 दिन से स्वजन उसकी वापसी की राह तक रहे थे। उसे लेने प्रशासनिक टीम गई थी। माता-पिता उसके आने की बाट जोह रहे थे। गुरुवार सुबह से तो स्वजन घर के बाहर बैठे रास्ता निहार रहे थे। अतर्रा थाने में औपचारिकता पूरी कर टीम पौने चार बजे गांव पहुंची तो घर से चंद कदम पहले खड़े पिता गिल्ला ने सरकारी वाहन को रोका और रामबहादुर को उतरते देख सिसक पड़े, उन्होंने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा। ग्रामीणों संग रामबहादुर को लेकर घर पहुंचे तो 12 साल से विरह वेदना में तड़प रही मां कुसुमा लिपटकर रो पड़ीं। साथ आए नायब तहसीलदार अभिनव तिवारी, दारोगा सुधीर चौरसिया, हल्का लेखपाल खुशबू गुप्ता ने रामबहादुर की लिखित सिपुर्दगी पिता को दी। छोटा भाई मैकू भी रामबहादुर को देख रो पड़ा। भतीजे (मैकू के बेटे) अपने दादा को दूर से ही निहारते रहे। इस बीच रामबहादुर उन्हें पहचान भी नहीं सका तो घर वालों को थोड़ी निराशा हुई लेकिन वह पहचान कराने की कोशिश करते रहे। वह ससुराल जाने के लिए निकला लेकिन स्वजन व ग्रामीणों ने उसे रोक लिया। 


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