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डॉ. आंबेडकर चाहते थे कि भगवा ध्वज ही बने राष्ट्रीय ध्वज

छुआछूत को परतंत्रता का प्रतीक बताते हुए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने रविवार को डॉ. आंबेडकर के सिद्धांतों को समझाया।

By JagranEdited By: Published: Mon, 16 Apr 2018 01:54 AM (IST)Updated: Mon, 16 Apr 2018 02:05 PM (IST)
डॉ. आंबेडकर चाहते थे कि भगवा ध्वज ही बने राष्ट्रीय ध्वज
डॉ. आंबेडकर चाहते थे कि भगवा ध्वज ही बने राष्ट्रीय ध्वज

जागरण संवाददाता, कानपुर : भेदभाव और छुआछूत को परतंत्रता का प्रतीक बताते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने रविवार को डॉ.भीमराव आंबेडकर और संघ के सिद्धांतों की समानता स्वयंसेवकों को समझाई। स्पष्ट कहा कि संघ जिस तरह समाज की सेवा कर रहा है, उस प्रेरणा में डॉ. आंबेडकर का भी योगदान रहा है। वह चाहते थे कि भगवा ध्वज को ही राष्ट्रीय ध्वज बनाया जाए।

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संघ के पश्चिम क्षेत्र के स्वयंसेवकों का एकत्रीकरण रविवार को गीतानगर पार्क में हुआ। मंच पर पनकी मंदिर के महंत जितेंद्र दास, मुख्य अतिथि अशोक सोनकर, प्रांत संघचालक ज्ञानेंद्र सचान, जिला संघचालक मुन्नालाल और प्रांत प्रचारक संजय जी थे। महंत जितेंद्र दास ने कहा कि कानपुर को समरसता के लिए जाना जाता है। संघ में सिर्फ नाम का प्रबोधन है, जो कि समरसता का ही प्रतीक है। अशोक सोनकर ने कहा कि आरएसएस बाबा साहब के सपनों को साकार करने का काम कर रहा है। शोषित समाज का उत्थान संघ के द्वारा ही संभव है। पाथेय के रूप में मुख्य वक्तव्य प्रांत प्रचारक संजय जी का था। उन्होंने कहा कि डॉ.आंबेडकर के विषय में समाज में भिन्न-भिन्न धारणाएं हैं। उनका ठीक विश्लेषण समाज के सामने नहीं हो पाया। इसके लिए संविधान सभा का उनका भाषण पढ़ना होगा। वह कुशल अर्थ शास्त्री भी थे। खुद गरीबी से निकले, इसलिए उससे उबरने के बुनियादी सुझाव दिए। उनका ही प्रस्ताव था कि भगवा ध्वज को राष्ट्रीय ध्वज बनाया जाए। प्रांत प्रचारक ने वेद-उपनिषदों की भावनाओं की व्याख्या करते हुए कहा कि सभी परमात्मा का अंश हैं। किसी जीव की आत्मा छोटी-बड़ी नहीं होती। ऋषियों की उसी परिकल्पना को ¨हदुत्व चिंतन कहते हैं। ¨हदुत्व संकीर्णता नहीं, संपूर्णता का नाम है। हमारे देश में वर्गभेद अरब होते हुए ग्रीक से आया है। वह साहित्य से होकर हमारे दिमागों तक में पहुंच गया। यह हमारी परतंत्रता का प्रतीक है। अब संकल्प लेना होगा कि अपने मोहल्ले और गांव से जातिवाद, छुआछूत और भेदभाव की बीमारी को खत्म करने की पहल करें। डॉ. आंबेडकर भी यही चाहते थे।

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पंद्रह मिनट रुक रहा बौद्धिक

प्रांत प्रचारक के बौद्धिक के दौरान बिजली गुल हो गई। तब तक स्वयंसेवकों ने गीतों के माध्यम से कार्यक्रम जारी रखा और पंद्रह मिनट तक बौद्धिक रुका रहा।


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