बार एसोसिएशन में शुरू होने जा रही ई-लाइब्रेरी से एक क्लिक पर मिलेंगे सभी तरह के एक्ट
लिंक पर पहले सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट का करना होगा चयन
कानपुर, जेएनएन। मुकदमों की सुनवाई के दौरान रूलिग के लिए अधिवक्ताओं को ज्यादातर बार और लॉयर्स की लाइब्रेरी पर निर्भर रहना पड़ता है। घंटों किताबों में जूझने के बाद भी कई बार उचित रूलिग नहीं मिल पाती,लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। बार एसोसिएशन में शुरू होने जा रही ई-लाइब्रेरी से वकीलों को रूलिग ढूंढने में मदद मिलेगी वहीं, सभी तरह के एक्ट भी एक क्लिक पर उपलब्ध होंगे।
बार एसोसिएशन में ई-लाइब्रेरी बनाने को लेकर वर्तमान कार्यकारिणी ने काम शुरू कर दिया है। इस सप्ताह ई-लाइब्रेरी काम करना शुरू कर देगी। दरअसल बार एसोसिएशन की लाइब्रेरी प्रदेश की सबसे बड़ी लाइब्रेरी है। किताबों को रखने के लिए भूतल से प्रथम और द्वितीय तल में व्यवस्था की गई है। यहां 1947 के बाद हुए सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट निर्णय से जुड़ी किताबें भी मौजूद हैं, लेकिन अधिवक्ताओं को अपने मुकदमों से जुड़ी रूलिग ढूंढने के लिए घंटों सिर खपाना पड़ता है। कई बार तो दो-दो दिनों तक रूलिग नहीं मिल पाती हैं। चूंकि ई-लाइब्रेरी का खर्च अधिक है ऐसे में सभी अधिवक्ता खर्च वहन नहीं कर सकते। इस समस्या से निजात पाने के लिए बार एसोसिएशन के महामंत्री ने ई-लाइब्रेरी बनाने की शुरूआत की है। उन्होंने बताया कि इसमें वर्ष 1950 से अब तक हुए सुप्रीम कोर्ट व सभी हाईकोर्ट के दस हजार से ज्यादा निर्णय होंगे। पुराने और नए सभी एक्ट भी ई-लाइब्रेरी में होंगे। ई-लाइब्रेरी पर होने वाला हर महीने का खर्च बार एसोसिएशन वहन करेगी। ई-लाइब्रेरी का फायदा यहां के आठ हजार से ज्यादा अधिवक्ताओं को मिलेगा।
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आसानी से मिलेगी रूलिग
लिक का प्रयोग कर मोबाइल पर भी ई-लाइब्रेरी शुरू की जा सकती है। अधिवक्ताओं को जिसकी भी रूलिग चाहिए उसके लिए उन्हें पहले सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट का चयन करना होगा। पक्षकार और न्यायिक अधिकारी का नाम मालूम होने पर बहुत आसानी से रूलिग मिल जाएगी। आइपीसी की किसी धारा से संबंधित रूलिग चाहिए तो अभियोजन या फिर बचाव पक्ष का जिक्र करते हुए धारा का जिक्र करना होगा। इससे उस धारा से जुड़े अब तक हुए सभी आदेश मिल जाएंगे।
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ई-लाइब्रेरी बेहद आवश्यक हो गई है। इसे देखते हुए इसका निर्णय लिया गया है। दो से तीन दिन में यह काम करना शुरू कर देगी।
-राकेश तिवारी, महामंत्री बार एसोसिएशन