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इतिहास बना 62 साल पुराना दुनिया का इकलौता मैनुअल स्कोर बोर्ड, 35 लोगों की टीम करती थी संचालन

ग्रीनपार्क में एकदिवसीय टेस्ट व आइपीएल मैच का मैनुअल स्कोर बोर्ड गवाह बना।

By AbhishekEdited By: Published: Sat, 18 Jan 2020 05:33 PM (IST)Updated: Sat, 18 Jan 2020 05:33 PM (IST)
इतिहास बना 62 साल पुराना दुनिया का इकलौता मैनुअल स्कोर बोर्ड, 35 लोगों की टीम करती थी संचालन

कानपुर, जेएनएन। कभी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर छाए रहे ग्रीनपार्क की खूबसूरती के साथ मैनुअल स्कोर बोर्ड भी क्रिकेटरों के दिल में खास जगह बनाए था। 62 वर्ष तक कई अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों का गवाह रहा यह स्कोर बोर्ड ग्रीनपार्क में इतिहास ही बन गया है। मौजूदा समय संरक्षण के अभाव में स्कोर बोर्ड तिरस्कृत होकर किनारे पड़ा है। हालांकि अपने समय में खूबियों के चलते खास चर्चित रहा और इसका संचालन करना बेहद कठिन होता था।

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1957 में बना था स्कोर बोर्ड

ग्रीनपार्क में क्रिकेट प्रेमियों को आखिरी बार भारत बनाम इंग्लैंड के बीच हुए टी-20 मैच में देखने को मिला था। यह दुनिया का इकलौता व अनूठा मैनुअल स्कोर बोर्ड भी रहा। इसकी स्थापना वर्ष 1957 में हुई और पहली बार 12 से 17 दिसंबर 1958 को भारत और वेस्टइंडीज के बीच टेस्ट मैच में इसका इस्तेमाल किया गया था। पूर्व स्कोरर सौरभ चतुर्वेदी के मुताबिक कम्प्यूटर की तरह काम करने वाले एक मात्र बचे इस बोर्ड में मैच के दौरान जिस खिलाड़ी के पास बॉल जाती थी, उस खिलाड़ी के नाम के आगे वाली लाइट जल जाती थी। आज स्कोर बोर्ड मैदान के एक कोने में कबाड़ की तरह छोड़ दिया गया। बोर्ड की दुर्दशा पर यूपीसीए के पदाधिकारी कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है।

135 पुली पर 35 लोगों की टीम करती थी संचालित

ग्रीनपार्क में तब लगे दो मैनुअल स्कोर बोर्ड का संचालन 135 पुली पर 35 लोगों की टीम करती थी। यह स्कोर बोर्ड 21 टेस्ट मैच, 14 वन डे, दो आइपीएल और एक टी ट्वेटी इंटरनेशनल कुल 39 मैचों के रन जोड़ चुका है। ग्रीनपार्क में अब तक 22 टेस्ट मैच हो चुके हैं। दो में से एक स्कोर बोर्ड को वर्ष 2015 में नये प्लेयर पवेलियन के निर्माण के दौरान हटा दिया गया था।

पिता की शुरुआत को बेटे ने संभाला

इस मैनुअल स्कोर बोर्ड की स्थापना के पहले ग्रीनपार्क में वर्ष 1952 में एक टेस्ट मैच भारत और न्यूजीलैंड के बीच हुआ था। इस मैच के दौरान ही इसकी जरूरत महसूस हुई। इसे बनाने का जिम्मा शहर के रहने वाली सरदार जगजीत सिंह को दिया गया। उनकी मौत के बाद वर्ष 1972 से उनके बेटे सरदार हरचरन सिंह को इसका जिम्मा संभाले रहे।


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