कानपुर में सामने आया ऐसा मामला जिसमें बैंक को खटखटाना पड़ा अदालत का दरवाजा, जानें- पूरा मामला
मामला बैंक के साथ हुई धोखाधड़ी से जुड़ा है। सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिए हैं कि थानों एनआइए और सीबीआइ के कार्यालयों का चप्पा चप्पा आॅडियो वीडियो और नाइट विजन रिकार्डिंग की क्वालिटी युक्त सीसीटीवी की जद में किया जाए।
कानपुर, जेएनएन। थानों में सामान्य पीड़ितों की बात नहीं सुनी जाती है यह तो जगजाहिर है लेकिन अब पुलिस बड़े मामलों को भी टरकाने लगी है। ऐसा ही एक मामला बैंक के साथ हुई धोखाधड़ी से जुड़ा है। बैंक अधिकारी पुलिस के चक्कर काटने के बाद भी जब रिपोर्ट दर्ज नहीं करा पाए तो मजबूरन उन्हें अदालत की शरण लेनी पड़ी। शायद इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिए हैं कि थानों, एनआइए और सीबीआइ के कार्यालयों का चप्पा चप्पा आॅडियो, वीडियो और नाइट विजन रिकार्डिंग की क्वालिटी युक्त सीसीटीवी की जद में किया जाए।
2015 में सामने आया था अजब-गजब मामला
बैंक फ्रॉड का यह मामला नवाबगंज थाने से जुड़ा हुआ है। वर्ष 2015 में बैंक से कपड़े का व्यापार करने के लिए आइआइटी स्थित वोग फैब्रिकी फर्म की ओर से करीब 25 लाख रुपये का लोन लिया गया। लोन पर फर्म संचालक की पत्नी बतौर गारंटर हस्ताक्षर बनाए। नवाबगंज की एक महिला के नाम पर हुई भवन की रजिस्ट्री बैंक में बंधक रखी गई। ब्याज और मूल धनराशि की अदायगी नहीं हुई तो बैंक ने खाता एनपीए कर दिया। वसूली की कार्यवाही शुरू होने पर पता चला कि बंधक की गई रजिस्ट्री फर्जी तरीके से बनायी गई है। महिला भी लोन लिए जाने के 27 साल पहले ही मर चुकी थी। इससे जाहिर है महिला को भी फर्जी तरीके से खड़ा कर लोन लिया गया। इस मामले में आजाद नगर के बैंक मैनेजर ने लाख प्रयास किए लेकिन दस्तावेजी साक्ष्य होने के बावजूद नवाबगंज पुलिस ने मुकदमा नहीं लिखा। जिसके बाद बैंक को भी अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा। हालांकि बैंक को अदालत से राहत मिल गई लेकिन यह वाक्या सवाल जरूर खड़ा करता है कि जब सरकारी उपक्रम से जुड़े अधिकारी को घटित अपराध के लिए इंसाफ मांगने अदालत जाना पड़ रहा है तो आम आदमी की स्थिति क्या होगी।
10-15 मामलों में होते हैं आदेश
किसी घटना पर जब पुलिस मुकदमा नहीं दर्ज करती है तो सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत थाने से संबंधित न्यायालय में प्रार्थना पत्र दिया जाता है। जिस पर सुनवाई के बाद न्यायालय थाना प्रभारी को मुकदमा दर्ज कर विवेचना का आदेश देती है। सूत्रों के मुताबिक प्रतिदिन ऐसे 10-15 मामलों में न्यायालय से मुकदमा दर्ज होने के आदेश दिए जाते हैं।