Move to Jagran APP

Republic Day Special : बुंदेलखंड में हिंदू-मुस्लिम महिलाओं की घाघरा पलटन ने खट्टे कर दिए थे फिरंगियों के दांत

पलटन का नाम सुन अंग्रेजी सैनिक बुंदेलखंड के चित्रकूट बांदा और आसपास के गांवों में जाने से खौफ खाते थे।

By Edited By: Published: Sat, 25 Jan 2020 10:13 PM (IST)Updated: Sun, 26 Jan 2020 05:18 PM (IST)
Republic Day Special : बुंदेलखंड में हिंदू-मुस्लिम महिलाओं की घाघरा पलटन ने खट्टे कर दिए थे फिरंगियों के दांत
Republic Day Special : बुंदेलखंड में हिंदू-मुस्लिम महिलाओं की घाघरा पलटन ने खट्टे कर दिए थे फिरंगियों के दांत

बांदा, [विमल पांडेय]। राम-रहीम एक हैं, नाम धराया दोय..। यह महज एक दोहा ही है लेकिन इन पंक्तियों ने बुंदेलखंड की धरा पर कौमी एकता की ऐसी अलख जगाई कि फिरंगियों के पांव ही उखड़ गए। गोरों से गोवंश को बचाने निकली हिंदू-मुस्लिम महिलाओं की घाघरा पलटन ने सांप्रदायिक सौहार्द का न सिर्फ बीज बोया बल्कि उसे वटवृक्ष बनाया। आज भी उसी सौहार्द की छांव में यहां भाई-चारा मजबूत हो रहा है। बुंदेलखंड की महिलाओं ने स्वाधीनता आंदोलन को खूब पैनी धार दी थी।

loksabha election banner

चित्रकूट की शीला ने रखी थी बुनियाद

संघर्ष की बुनियाद रखी चित्रकूट की शीला देवी ने। उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के सिपाहियों को गोवध करते और गोमांस ले जाते देखा तो इस दृश्य ने उन्हें बहुत उद्वेलित किया। रहा न गया तो कुआं-चौपाल पर महिलाओं से चर्चा कर इसे रोकने के लिए आगे आने को तैयार किया। उनके साथ न सिर्फ हिंदू बल्कि मुस्लिम महिलाएं भी जुड़ गईं। उस वक्त उनका पहनावा घाघरा-चोली था तो अशिक्षित और पर्दानशीं इन महिलाओं के समूह का नाम घाघरा पलटन हो गया। इसका जाति-धर्म सिर्फ इंसानियत और भाई-चारा था।

हंसिया और तलवार लेकर छेड़ दी थी जंग

इतिहासकार डा.आरपी पांडेय ने बताया कि स्वतंत्रता आंदोलन में बुंदेलखंड की महिलाओं की भूमिका अहम रही है। घाघरा पलटन ने हमें कौमी एकता की सीख दी। वर्ष 1842 में पलटन ने हंसिया, तलवार के सहारे अंग्रेजों से जंग छेड़ दी। गांव-गांव घूमती महिलाओं की टोली को जहां भी गोवंश के आसपास सैनिक दिखते तो उन्हें खदेड़ देतीं और गोवंश को सुरक्षित करती थीं। पलटन के नाम से अंग्रेज बुंदेलखंड के चित्रकूट, बांदा और आसपास के जिलों के गांवों में जाने से खौफ खाते थे।

बांदा गजेटियर में दिखती है पीड़ा

वह बताते हैं कि गोवध तो रुका ही, इसका सबसे बड़ा फायदा सामाजिक ताने-बाने की मजबूती के रूप में दिखा। गांवों की आबोहवा में एकता और अमन-चैन की पुरसुकून बयार बही जो अब तक लोगों को राहत दे रही है। इतिहासकार डॉ.सूर्यकांत मिश्र का कहना है कि घाघरा पलटन का जिक्र अंग्रेजों ने बांदा के गजेटियर में भी किया था। हालांकि घाघरा पलटन और शौर्यता का बखान इतिहास में बहुत कम ही है। लेकिन, अंग्रेजों की पीड़ा बांदा गजेटियर में मजबूती से दिखती है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.