एक छोटे से गांव की बहू की अत्याचार के खिलाफ संघर्ष की कहानी, महिलाएं बुलाती हैं माया दीदी
पांच सौ से ज्यादा घरेलू हिंसा व शारीरिक शोषण की शिकार महिलाओं को न्याय दिलाया है।
कानपुर, जेएनएन। बचपन से ही बेटियों के प्रति समाज में हीन भावना को देख समाज के नजरिए को बदलने में जुटी एक छोटे से गांव की बहू ने घर से कदम निकालकर बेटियों को अबला से सबला बनाने का बीड़ा उठा लिया। आज वह गांव की महिलाओं को ही नहीं बल्कि शहर में भी हिंसा और शारीरिक शोषण की शिकार बहू बेटियों की लाठी बन कर उन्हें न्याय दिलाने में जुटी हुई हैं।
गांव में पहले छुआ छूत की खाई को पाटा
सरसौल ब्लाक के छोटे से गांव हृदयखेड़ा की रहने वाली सखी केंद्र की सदस्य माया कुरील ने 1996 में घर की दहलीज से कदम निकालकर पीडि़त बहू बेटियों को न्याय दिलाने के लिए केंद्र में शामिल हुईं। जहां उन्हें नीलम दीदी ने प्रशिक्षण देकर पहले पांच गांव की महिलाओं को घर-घर जाकर उन्हें जागरूक करने की जिम्मेदारी दी।
जिस पर वह खरी उतरी और गांव में सर्वण और दलितों के बीच खुदी छुआ छूत की खाई को पहले पाटने का काम किया। इसके बाद घरेलू ङ्क्षहसा से पीडि़त महिलाओं को उनकी ताकत का अहसास कराते हुए उन्हें अत्याचारों से लडऩे की ताकत दी। जिसके बाद कई महिलाओं की जिंदगी नर्क से स्वर्ग बन गई। जिसके बाद क्षेत्र की बहू माया दीदी के नाम से जानी जानें लगीं।
गांव के बाद शहर की तरफ किया रुख
वर्ष 2003 में गांव के बाद शहर की ओर रुख करते हुए यहां की युवतियों और महिलाओं के ऊपर हो रहे शारीरिक शोषण ओर घरेलू अत्याचारों के खिलाफ जंग शुरू की। माया दीदी ने बताया कि उन्होंने घरेलू ङ्क्षहसा से पीडि़त करीब दो सौ महिलाओं का साथ देकर उन्हें उनका अधिकार दिलाया। साथ ही उन्हें अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए प्रेरित किया।
महिलाओं को आर्थिक मजबूत बनाया
माया दीदी ने बताया कि उन्होंने शराब के लती पतियों से पीडि़त महिलाओं को न्याय दिलाने के साथ उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत बनाने के लिए रोजगार के रास्ते भी दिखाए। जिसके लिए उन्हें कई स्वयं सहायता समूहों से जोड़कर मजबूत करने का काम किया। जिसके बाद आज महिलाएं आर्थिक रूप से मजबूत होकर बच्चों का पालन पोषण करने खुद सक्षम हो चुकी हैं।