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'विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा...' गीत की रचना कर अमर हो गए पार्षद जी Kanpur News

आजादी के दीवानों का प्रेरणास्रोत झंडागीत की श्यामलाल गुप्त पार्षद ने फतेहपुर में रचना की थी।

By AbhishekEdited By: Published: Mon, 09 Sep 2019 08:53 AM (IST)Updated: Mon, 09 Sep 2019 08:53 AM (IST)
'विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा...' गीत की रचना कर अमर हो गए पार्षद जी Kanpur News
'विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा...' गीत की रचना कर अमर हो गए पार्षद जी Kanpur News

फतेहपुर, [गोविंद दुबे]। विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा...जब भी ये बोल कानों में पड़ते हैं तो रग-रग में अजीब सी सिहरन दौड़ जाती है और राष्ट्रभक्ति का उल्लास हिलोरे मारने लगता है। देश के प्रति समर्पण का जुनून जगाती यह अमर रचना श्यामलाल गुप्त 'पार्षद' ने फतेहपुर की धरती पर रची थी। उस वक्त यह गीत आजादी के दीवानों के लिए प्रेरणास्रोत था। कांग्र्रेस ने आजादी की लड़ाई में इसे अहम् हथियार बनाया। वर्ष 1924 में पहली बार जवाहर लाल नेहरू ने कानपुर के फूलबाग में सामूहिक गान कराकर विश्व विजेता भारत की परिकल्पना आमजन के सामने रखी थी।

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मूलत: कानपुर के नरवल गांव के रहने वाले पार्षद जी ने आजादी की लड़ाई में फतेहपुर को कर्मक्षेत्र बनाया। गणेश शंकर विद्यार्थी व प्रताप नारायण मिश्र के सानिध्य में भारत छोड़ो आंदोलन की अगुआई की। वह फतेहपुर जिला कांग्रेस के 19 साल तक अध्यक्ष रहे। जिले में कांग्रेस का सूत्रपात वर्ष 1916 में हुआ था, जिसमें श्यामलाल गुप्त अध्यक्ष व बाबू वंशगोपाल सचिव बने।

विद्यार्थी जी ने दी थी प्रेरणा, दो दिन सोए नहीं थे पार्षद जी

इतिहासकार डॉ.ओमप्रकाश अवस्थी के मुताबिक सन् 1923 में विद्यार्थी जी ने पार्षद जी को झंडा गीत लिखने की प्रेरणा दी। झंडा गीत लिखने में हो रही देरी में विद्यार्थी जी ने टोका तो पार्षद जी दो दिन सोए नहीं। रात-दिन मेहनत कर तीन व चार मार्च-1924 को हजारीलाल के फाटक मोहल्ले में झंडा गीत लिखा। विद्यार्थी जी ने इसमें संशोधन भी कराया।

कानपुर में पहली बार गाया, 1934 में बना झंडा गीत

झंडा गीत सर्वप्रथम अप्रैल 1924 में पं. जवाहर लाल नेहरू ने जलियांवाला बाग दिवस पर कानपुर के फूलबाग में गाया। सन 1934 के हरिपुर कांग्रेस अधिवेशन में गांधी व नेहरू जैसे शीर्ष नेताओं ने इसे देश के झंडागीत के रूप में स्वीकारा। स्वराज्य की स्थापना के लिए पार्षद जी ने सन 1929 में नंगे पैर रहने का संकल्प लिया था। स्वतंत्रता आंदोलन में वह आठ बार जेल गए।

ये मिले सम्मान

- 19 अगस्त सन 1972 को अभिनंदन व ताम्रपत्र दिया गया।

- 26 जनवरी 1973 को मरणोपरांत पदमश्री से विभूषित किया गया।

- 4 अगस्त 1997 को पार्षद जी के नाम डाक टिकट जारी किया गया।


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