मात्र 34 रुपये में लगा था आजादी के बाद पहला लैंडलाइन फोन
27 अगस्त 1947 में तत्कालीन सीएमओ को मिला था कनेक्शन धरोहर के रूप लैंडलाइन कनेक्शन का आज भी बेटे कर रहे प्रयोग।
By Edited By: Published: Fri, 17 May 2019 01:50 AM (IST)Updated: Sat, 18 May 2019 09:57 AM (IST)
कानपुर, [आलोक शर्मा]। आज विश्व संचार दिवस है। इस मौके पर हम आपको जिले के पहले लैंडलाइन फोन कनेक्शन के बारे में बताने जा रहे हैं। इसकी जानकारी बीते दिनों बीएसएनएल मुख्यालय की कुछ पुरानी फाइलें खंगालने से मिली। एक बहुत पुरानी फाइल के बेजार पन्नों को सावधानी से पलटना शुरू किया तो पता चला कि 15 अगस्त सन् 1947 यानी आजादी की घोषणा के ठीक 12 दिन बाद 27 अगस्त को जिले का पहला लैंडलाइन कनेक्शन जारी किया गया था। खास बात ये है कि ये आज भी प्रयोग में है। पोस्ट एंड टेलीग्राफ भवन (अब बीएसएनएल मुख्यालय) मालरोड से 34 रुपये में जारी यह कनेक्शन जिले के पहले नगर निगम के मुख्य चिकित्साधिकारी राधारमण श्रीवास्तव 95 केनाल रेंज द माल कानपुर के नाम जारी हुआ था।
चार नंबरों का था फोन नंबर
यूपी फाइनेंसियल कारपोरेशन में चीफ मैनेजर पद से रिटायर्ड तत्कालीन सीएमओ के बेटे देवेंद्र कुमार श्रीवास्तव बताते हैं कि सबसे पहले फोन नंबर 3340 जारी हुआ था। वक्त के साथ इसमे 6 और फिर 2 और जोड़ा गया इसके बाद फोन नंबर छह अंकों का 263340 हो गया। वर्तमान में नंबर 2360470 है।
मल्होत्रा जी के खूब आते थे फोन
देवेंद्र के भाई अजीत को अतीत की कुछ बातें अच्छे से याद हैं। वह बताते हैं कि उस वक्त फोन स्टेटस सिंबल हुआ करता था। हमारे यहां अक्सर दो पड़ोसियों के फोन आते थे। मल्होत्रा जी के साथ पड़ोसी पीटर और श्यामे के रिश्तेदारों का कोलकाता से जब फोन आता था तो उन्हें बुलाने जाया करते थे।
घंटी बताती थी, कॉल लोकल है या एसटीडी
देवेंद्र बताते हैं कि एसटीडी कॉल और लोकल कॉल आने पर आसानी से पहचान हो जाती थी। दरअसल एसटीडी कॉल आने पर ट्रिंग की घंटी लंबी होती थी जबकि लोकल कॉल की घंटी ट्रिंग-टि्रंग बजती थी। कोशिश होती थी कि एसटीडी कॉल मिस न होने पाए। उस वक्त फोन सेट पोस्ट एंड टेलीग्राफ विभाग से ही मिलता था। एक सेट को आज भी उन्होंने संभाल कर रखा है।
-रिकार्ड में वर्ष 1926 की भी फाइलें हैं लेकिन ऐसे ढूंढ पाना नामुमकिन है। मेरी जानकारी में दस्तावेजों में आजादी के बाद का यह पहला कनेक्शन है जो आज भी चल रहा है।
-एसके श्रीवास्तव, कार्यालय सहायक अधीक्षक कमर्शियल बीएसएनएल
-वर्ष 1985 में पोस्ट व टेलीकॉम अलग होकर डिपार्टमेंट ऑफ पोस्ट व डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकॉम बना। एक अक्टूबर 2000 को बीएसएनएल अस्तित्व में आया। कई बार विभागीय स्वरूप बदलने के चलते इतिहास संजोने में दिक्कतें आयीं। यही कारण है कि कुछ लिखित में सामने नहीं है।
-डॉ. डीएन त्रिपाठी, वरिष्ठ कर्मचारी नेता
चार नंबरों का था फोन नंबर
यूपी फाइनेंसियल कारपोरेशन में चीफ मैनेजर पद से रिटायर्ड तत्कालीन सीएमओ के बेटे देवेंद्र कुमार श्रीवास्तव बताते हैं कि सबसे पहले फोन नंबर 3340 जारी हुआ था। वक्त के साथ इसमे 6 और फिर 2 और जोड़ा गया इसके बाद फोन नंबर छह अंकों का 263340 हो गया। वर्तमान में नंबर 2360470 है।
मल्होत्रा जी के खूब आते थे फोन
देवेंद्र के भाई अजीत को अतीत की कुछ बातें अच्छे से याद हैं। वह बताते हैं कि उस वक्त फोन स्टेटस सिंबल हुआ करता था। हमारे यहां अक्सर दो पड़ोसियों के फोन आते थे। मल्होत्रा जी के साथ पड़ोसी पीटर और श्यामे के रिश्तेदारों का कोलकाता से जब फोन आता था तो उन्हें बुलाने जाया करते थे।
घंटी बताती थी, कॉल लोकल है या एसटीडी
देवेंद्र बताते हैं कि एसटीडी कॉल और लोकल कॉल आने पर आसानी से पहचान हो जाती थी। दरअसल एसटीडी कॉल आने पर ट्रिंग की घंटी लंबी होती थी जबकि लोकल कॉल की घंटी ट्रिंग-टि्रंग बजती थी। कोशिश होती थी कि एसटीडी कॉल मिस न होने पाए। उस वक्त फोन सेट पोस्ट एंड टेलीग्राफ विभाग से ही मिलता था। एक सेट को आज भी उन्होंने संभाल कर रखा है।
-रिकार्ड में वर्ष 1926 की भी फाइलें हैं लेकिन ऐसे ढूंढ पाना नामुमकिन है। मेरी जानकारी में दस्तावेजों में आजादी के बाद का यह पहला कनेक्शन है जो आज भी चल रहा है।
-एसके श्रीवास्तव, कार्यालय सहायक अधीक्षक कमर्शियल बीएसएनएल
-वर्ष 1985 में पोस्ट व टेलीकॉम अलग होकर डिपार्टमेंट ऑफ पोस्ट व डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकॉम बना। एक अक्टूबर 2000 को बीएसएनएल अस्तित्व में आया। कई बार विभागीय स्वरूप बदलने के चलते इतिहास संजोने में दिक्कतें आयीं। यही कारण है कि कुछ लिखित में सामने नहीं है।
-डॉ. डीएन त्रिपाठी, वरिष्ठ कर्मचारी नेता
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