फसल के अवशेष जला धरती की 'कोख' के 'कातिल' बन रहे धरतीपुत्र
जागरण संवाददाता, कन्नौज: धरती की 'कोख' का 'कातिल' कोई और नहीं बल्कि धरतीपुत्र ही बन र
जागरण संवाददाता, कन्नौज: धरती की 'कोख' का 'कातिल' कोई और नहीं बल्कि धरतीपुत्र ही बन रहे हैं। फसल के अवशेष जलाकर वह लगातार मिट्टी की उर्वरता को क्षति पहुंचा रहे हैं। रासायनिक खादें भी इसका प्रमुख कारण हैं। यह हैरानी भरे परिणाम मिट्टी की जांच में सामने आए हैं।
कृषि विभाग ने पिछले दिनों 348 गांवों की मिट्टी के नमूने लिए थे। इनकी जांच में सामने आया कि मिट्टी में पोषक तत्वों के साथ-साथ जीवाश्म (आर्गेनिक कार्बन) खत्म होने की कगार पर पहुंच गया है। इससे जमीन दिन-ब-दिन बंजर होती जा रही है। कृषि विभाग के लैब प्रभारी रमेश चंद्र यादव का कहना है कि यहां की मिट्टी में जीवाश्म की मात्रा 0.2 फीसद है, जबकि इसे 0.8-1 फीसद के बीच होना चाहिए। जीवाश्म कार्बन का कम होना मिट्टी की सेहत के लिए अच्छा नहीं है। इसका सबसे बड़ा कारण खेत में फसल के अवशेष जलाना है। साथ ही रासायनिक खादों का असंतुलित प्रयोग भी जिम्मेदार है।
वीके कनौजिया, कृषि वैज्ञानिक टैंचा व वर्मी कंपोस्ट का करें प्रयोग
कृषि वैज्ञानिक के अनुसार किसानों को खेत में ढैंचा और वर्मी कंपोस्ट का अधिक से अधिक प्रयोग करना चाहिए। हरी खाद के रूप में मूंग या उड़द की फली को तोड़कर खेत में सड़ाएं। इससे जीवाश्म कार्बन की मात्रा बढ़ेगी।
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इन तत्वों की जरूरत
पौधों के विकास के लिए 16 तत्वों जैसे आक्सीजन, हाइड्रोजन, कार्बन, नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, कैल्शियम, मैग्नीशियम, सल्फर, लोहा, तांबा, मैगनीज, मोलीबिडनम, गंधक, क्लोरीन, ¨जक की जरूरत होती है। इन तत्वों की कमी का सीधा असर पैदावार पर पड़ता है।
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ये हैं जीवाश्म पदार्थ
गोबर, मलमूत्र, पौधों की पत्तियां, डंठल, जड़, धान का पुआल, हरी घास