अपनों की नाराजगी तो नहीं बनी हार की वजह
जागरण संवाददाता कन्नौज समाजवादी पार्टी के अभेद्य दुर्ग को भेदकर भाजपा ने राजनीतिक शक्ति का
जागरण संवाददाता, कन्नौज : समाजवादी पार्टी के अभेद्य दुर्ग को भेदकर भाजपा ने राजनीतिक शक्ति का जो परिचय दिया, उससे साफ जाहिर है कि सपा-बसपा गठबंधन में अपनों की नाराजगी ही हार का प्रमुख कारण बनी। इसके आलवा चुनाव से पहले सपा के कई दिग्गजों का भाजपा में शामिल होना और कई नेताओं की नाराजगी व भितरघात भी प्रमुख वजह रही है।
सपा से दो बार सांसद रहीं डिपल यादव इस बार महागठबंधन से मैदान में थीं। वहीं उनके सामने भाजपा से सुब्रत पाठक भी तीसरी बार मैदान में उतरे थे। सुब्रत ने पहली बार अखिलेश के सामने ताल ठोंकी थी। डिपल की हार में कई वजह सामने आईं हैं, जिसमें सबसे प्रमुख कारण रसूलाबाद विधानसभा क्षेत्र से कट्टर सपाई रहे ब्लाक प्रमुख कुलदीप यादव को सपा ने बाहर का रास्ता दिखा दिया तो उन्होंने खुलकर भाजपा का साथ दिया। अखिलेश से नाराज चल रहे पूर्व कैबिनेट मंत्री शिवकुमार बेरिया ने भी सुब्रत को ही समर्थन दिया, तो सपा की चुनाव संचालन समिति में शामिल पूर्व विधायक अरविद प्रताप सिंह ने भी ऐन वक्त पर पाला बदल लिया। सबसे बड़ी बात यह है कि सपा चुनाव तक संगठनात्मक रूप से कमजोर रही।
जिला कार्यकारिणी भंग होने के कारण कई पदाधिकारी सुस्त रहे। इसके अलावा दो बार जीतने के बाद भी डिपल यादव का क्षेत्र में कम आना भी एक कारण रहा। भाजपा ने चुनाव में इसे मुद्दा बनाया था। कई स्थानीय सपा नेताओं से आम जनता की नाराजगी भी कहीं न कहीं शिकस्त में भागीदार है। सूत्रों की माने तो डिपल के साथ भितरघात भी हुई, जिसका भरपूर लाभ भाजपा ने उठाया।
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मायावती के पैर छूना भी पड़ा उल्टा दांव
भले ही डिपल यादव ने शिष्टाचार के नाते मंच पर बसपा सुप्रीमो के पैर छुए हों, लेकिन इस असर भी वोटरों के दिलो-दिमाग पर पड़ा। जानकार बताते हैं कि इससे यादव और क्षत्रिय वर्ग में सपा के प्रति नाराजगी रही। वहीं, गठबंधन के बाद एससी वोट भी सपा के पक्ष में नहीं गया, जितना कि अपेक्षित था। मायावती के पैर छूने के प्रकरण को एक उल्टे-दांव के रूप में देखा जा रहा है। सोशल मीडिया पर भी इसको राष्ट्रीय फलक पर वायरल किया गया, जिस पर सियासी क्षत्रपों ने तीखी प्रतिक्रियाएं भी दीं थीं।
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