इलाज से लेकर खून के लिए लगानी पड़ती दौड़
संवाद सहयोगी, तिर्वा : राजकीय मेडिकल कालेज में मरीजों से लेकर ब्लड भी कानपुर व लखनऊ ब्लड
संवाद सहयोगी, तिर्वा : राजकीय मेडिकल कालेज में मरीजों से लेकर ब्लड भी कानपुर व लखनऊ ब्लड बैंक को रेफर कर दिया जाता है। यहां पर ट्रामा के मरीजों को ब्लड जरूरत पड़ने पर भी नसीब नहीं होता। करोड़ों की लागत के ब्लड बैंक में लगे उपकरण धूल फांक रहे हैं। इस्तेमाल न होने से इनकी गारंटी व वारंटी खत्म भी हो चुकी है।
राजकीय मेडिकल कालेज में अगस्त 2015 में ओपीडी की दूसरी मंजिल पर ब्लड बैंक की शुरुआत की गई थी। तत्कालीन राज्यमंत्री माध्यमिक शिक्षा विजय बहादुर ने फीता काटा था और इसमें कई समाजवादी नेताओं ने रक्तदान किया था। इसके बाद कई बार रक्तदान के शिविर आयोजित किए गए और इसमें लोगों ने बढ़-चढ़कर प्रतिभाग कर रक्तदान किया। इसके बाद भी मरीजों को जरूरत पड़ने पर रक्त नसीब नहीं हो पाता। मरीज को कानपुर, लखनऊ व फर्रुखाबाद की ही दौड़ लगानी पड़ती है। ब्लड बैंक में ब्लड को सुरक्षित रखने के लिए करोड़ों की लागत से करीब 15 फ्रीजर लगाए गए थे। इसमें से एक-दो फ्रीजर ही चल रहे और बाकी सब बंद पड़े हैं। कंपनी के रख-रखाव की गारंटी व वारंटी भी समाप्त हो चुकी, लेकिन अभी तक उन फ्रीजर को बिजली से जोड़ा नहीं जा सका। डॉक्टर नहीं करते ब्लड बैंक में डिमांड
इमरजेंसी में रोजाना 10 से 15 मरीज, ओपीडी व जनरल वार्ड में करीब आठ मरीजों को रक्त की जरूरत पड़ती है। इन मरीजों को डॉक्टर प्राथमिक उपचार व रक्त परीक्षण कराने के बाद कानपुर रेफर कर देते। कारण, डिमांड करने पर अधिकांश ब्लड ग्रुप नहीं मिलते। इस कारण एक्सचेंज भी नहीं हो पाता है। 30 दिन ब्लड रखने की क्षमता
रक्तदान किया हुआ ब्लड 30 दिनों में इस्तेमाल होना चाहिए। इसके बाद ब्लड के खराब होने के उम्मीद बढ़ जाती। इससे रक्त को इस्तेमाल करने के लिए कानपुर व लखनऊ जैसे ब्लड बैंक में रेफर कर दिया जाता है। आपरेशन के वक्त अधिक जरूरत
सबसे अधिक ब्लड की जरुरत स्त्री रोग एवं प्रसूति विभाग, सर्जरी, अस्थि रोग व आग से जले हुए मरीजों को पड़ती है। इसी अस्पताल में इलाज कराने के लिए तीमारदार ब्लड को खरीद कर लाते हैं। कभी-कभी मरीज को समय पर ब्लड न लग पाने से तापमान गर्म हो जाता और ब्लड खराब भी हो जाता है। जिम्मेदार बोले
डिमांड कम है, 26 लोगों का रक्तदान हुआ और एक्सचेंज करने के साथ 32 लोगों को रक्त दिया जा चुका। ब्लड को बचाने के लिए कानपुर भेजना पड़ता है। 30 दिन से अधिक ब्लड नहीं रुक पाता, इससे 25 दिन बाद कानपुर भेज दिया जाता है।
-डॉ. एसके ध्रुव, विभागाध्यक्ष पैथोलॉजी व प्रभारी ब्लड बैंक। अफसर बोले
मामले को लेकर जांच कराई जाएगी। डिमांड न होने का कारण देखा जाएगा। यहां पर मरीजों को पर्याप्त ब्लड रखने की व्यवस्था है। दिक्कतें होने पर समस्या का समाधान कराया जाएगा।
-डॉ. ज्ञानेंद्र कुमार, प्राचार्य राजकीय मेडिकल कालेज तिर्वा।