मिटने की कगार पर 16 वीं सदी का प्रीतम सागर
संवाद सहयोगी, तिर्वा :16वीं सदी का गवाह प्रीतम सागर उपेक्षा का शिकार है। इसका अस्तित्व खतरे म
संवाद सहयोगी, तिर्वा :16वीं सदी का गवाह प्रीतम सागर उपेक्षा का शिकार है। इसका अस्तित्व खतरे में है। इसकी देखरेख न होने के कारण दीवारें दरक गई हैं। सागर में लोगों ने अतिक्रमण कर लिया है।
कस्बे के सिद्धपीठ मां अन्नपूर्णा देवी मंदिर परिसर के पास स्थित प्रीतम सागर के हालात बद से बदतर होती जा रही है। इसके बाहर लगा शिलापट गवाही दे रहा है कि 16वीं शताब्दी में इसका निर्माण हुआ था। इस तालाब से ब्रिटिश शासकों का भी इतिहास जुड़ा हुआ है। शिलापट के आधार पर प्रीतम सागर में सात कुएं हैं, जिन कुओं में पानी धरती के नीचे से ही आता था। इन तालाब व कुंओं में राजपरिवार की महिलाएं हाथियों पर सवार होकर नहाने आतीं थी। इसके बाद हाथी तालाबों में शाम को पानी भी पीने के लिए आते थे। इस पीढ़ी के बाद किसी ने भी सागर की ओर ध्यान नहीं दिया। नतीजन यह बदहाल हो गया। देखरेख न होने के कारण प्रीतम सागर खंडहर बनता जा रहा। आसपास के लोग उसमें कंडे बनाने लगे तथा लकड़ी, भूसा व कबाड़ा भरने लगे। जीर्णोद्धार न होने से धीरे-धीरे दीवारें भी ध्वस्त हो रही हैं।
ऐतिहासिक होने के बाद भी पुरातत्व विभाग का भी इस ओर कोई ध्यान नहीं है।
मेले में देखने वालों की लगती भीड़
अन्नपूर्णा मंदिर में जब-जब मेला लगता, तब-तब लोगों की भीड़ प्रीतम सागर देखने के लिए लग जाती। मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं में देखने की ललक रहती और पहली बार देखने वाला हर व्यक्ति इसकी तारीफ करने के बाद बदहाली की चर्चा करता है। सेल्फी का जबरदस्त क्रेज
प्रीतम सागर का नजारा भले ही खंडहर हो गया हो लेकिन अभी भी लोगों के लिए सेल्फी लेने का प्वाइंट है। युवक-युवतियां अधिकांश इस सागर में जाकर देखती है और अपनी सेल्फी लेती है।
आवारा जानवरों का डेरा
देखभाल न होने के कारण इसमें आवारा जानवर घूमते रहते और रविवार व बुधवार के दिन मवेशी बाजार होने से व्यापारी अपने मवेशियों को बांधते हैं। इसकी सुंदरता दिन पर दिन गुम होती जा रही।
पहल नहीं हो रही साकार
प्रीतम सागर के अस्तित्व को बचाने के लिए उपजिलाधिकारी राजेश यादव व डॉ. अरुण कुमार ¨सह ने पहल की थी, लेकिन उनका स्थानांतरण होने से कोशिश वहीं पर दब गई। इसके सौंदर्यीकरण के लिए राजघराना कोई कदम नहीं उठा रहा है।
क्या कहते हैं जिम्मेदार
मामले को लेकर उच्चाधिकारियों से वार्ता की जाएगी। इसके बाद राजपरिवार से बातचीत होगी। पुरातत्व विभाग से इसका जीर्णोद्धार कराया जाएगा और यहां पर पर्यटकों को बुलाने के इंतजाम भी किए जाएंगे।
-रामदास, उपजिलाधिकारी