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गलियों में फैली पटाखों की गंदगी

जागरण संवाददाता इटावा : शहर में पटाखों का कचरा गलियों में फैला है। सफाई कर्मचारी सुब

By JagranEdited By: Published: Fri, 09 Nov 2018 11:39 PM (IST)Updated: Fri, 09 Nov 2018 11:39 PM (IST)
गलियों में फैली पटाखों की गंदगी

जागरण संवाददाता इटावा : शहर में पटाखों का कचरा गलियों में फैला है। सफाई कर्मचारी सुबह के वक्त गलियों में नहीं दिखे। कुछ लोग ऐसे भी दिखे जिन्होंने अपने दरवाजों पर सफाई तो कर ली लेकिन कचरे का ढेर वहीं लगा दिया। अगर पालिका की गाड़ियां पहुंची होतीं तो यह ढेर नहीं दिखाई देते।

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दीपावली पर दो दिन तक शहर गंदा बना रहा और किसी भी अधिकारी ने सफाई कराने की जहमत तक नहीं उठाई। दीपावली वाले दिन तो सफाई कर्मियों ने झाडू लगाई ही नहीं बल्कि अगले दिन गुरुवार व शुक्रवार को भी सफाई नहीं की, जिसकी वजह से पूरा शहर गंदा नजर आया। हर गली-चौराहे पर पटाखों का कचरा फैला था, जो दिनभर पड़ा रहा। डलावघर गंदगी से बजबजाते रहे। कुछ स्थानों पर लोगों ने खुद सफाई करने की कोशिश की, लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह थी कि सफाई करने के बाद आखिर वे कचरे को लेकर कहां जाते। डालवघरों में भरे कचरे पर दिन भर आवारा पशुओं का विचरण जारी रहा। कुछ डलावघरों से कचरा उठाया भी गया, लेकिन अधिकांश गंदगी वहीं पड़ी छोड़ दी। कई स्थानों पर तो आग लगा दी गई। नुमाइश मैदान जहां पर पटाखों का बाजार लगा हुआ था। दुकाने हटने के बाद वहां पर भी अपार गंदगी के ढेर लगे रहे। कई लोगों ने तो ऐसा भी किया कि कचरा नाले में डाल दिया। इस वजह से और ज्यादा स्थिति बिगड़ गई। शहर की जो सकरी गलियां हैं उनमें बुरा हाल दिखाई दिया। मुख्य बाजारों पुल कहारान, अशोक नगर, गांधीनगर, विजय नगर, लालपुरा चौक सहित कई मोहल्ले गंदगी से कराहते रहे। कुछ लोगों ने नगर पालिका कर्मियों को फोन भी किए, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। बलराम ¨सह का चौराहा, पालिका के रैन बसेरा के पास बने खत्ता घर अशोक नगर मुख्य मार्ग का खत्ता घर भी गंदगी से आवारा पशुओं का आश्रय बना रहा। तो हो सकती थी सफाई : अगर नागरिकों ने अपना फर्ज पूरी तरह से निभाया होता तो शहर इतना गंदा नहीं रहता। दरअसल सब सफाई कर्मियों पर ही निर्भर हो गए। गंदगी के लिए हम सब दोषी हैं। पहली बात तो यह कि गलियों को गंदा क्यों किया गया और अगर किया भी तो क्या अपने दरवाजे पर सफाई नहीं करनी चाहिए। जिस सड़क पर हम सफाई नहीं कर सकते, उस पर रखकर पटाखे क्यों चलाए गए। दरअसल सच तो यह है कि अपनी जिम्मेदारियों से विमुख होकर त्योहार मनाना एक शगल सा बन गया है।


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