रेडियो सुनने के लिए भी बनवाना पड़ता था लाइसेंस
गुरसहायगंज, अंप्र.: सुनने में बड़ा अजीब लगता है कि पर यह सच है कि लगभग पांच दशक पूर्व रेडियो सुनने के लिए भी लाइसेंस की जरूरत पड़ती थी और इसे बाकायदा भारतीय डाक तार विभाग जारी करता था।
आज के समय में बेशक मनोरंजन के साधन बेहद सुगम हो गये हों, पर तब रेडियो ही एकमात्र ऐसा साधन था। जिससे लोगों को आवश्यक सूचनाएं एवं मनोरंजन संबंधी कार्यक्रम सुनने को मिलते थे। इन सूचनाओं को प्राप्त करने के लिए उपभोक्ताओं को बाकायदा बिल का भुगतान करना पड़ता था और यदि कोई व्यक्ति बिना लाइसेंस के रेडियो सुनता था तो उसे दंडित किये जाने का भी प्रावधान था। रेडियो सुनने के लिए यह लाइसेंस भारतीय डाक विभाग, भारतीय तार अधिनियम 1885 के अंतर्गत जारी करता था और यह लाइसेंस दो प्रकार का डोमेस्टिक व कामर्शियल होता था। यानी आप अपने घर पर बैठकर रेडियो कार्यक्रमों का आनंद लेना चाहते हैं तो आपको डोमेस्टिक और यदि सामूहिक रूप से रेडियो कार्यक्रमों को सुनना या सुनाना चाहते हैं तो कामर्शियल लाइसेंस बनवाना पड़ता था। इसके साथ ही लाइसेंस पर निर्धारित शुल्क का डाक टिकट लगाकर इसे प्रतिवर्ष रिन्यूवल कराया जाता था और बिना लाइसेंस के रेडियो कार्यक्रमों को सुनना कानूनी अपराध माना जाता था। जिसमें आरोपी को वायरलेस टेलीग्राफी एक्ट 1933 के अंतर्गत दंडित किए जाने का प्रावधान था। मोहल्ला रामकिशन निवासी सुंदर लाल भार्गव को 1 जुलाई 1971 में मर्फी टीवीओ 12021 चेचिंस नम्बर 30767 माडल तथा पंजीकरण संख्या 2002 3803 के नाम लाइसेंस जारी किया गया था।
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