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गौरवान्वित करने वाला है कैरोखर गाँव का इतिहास

लोगो : बुन्देली वैभव ::: फोटो : 17 एसएचवाई 10 ::: वाराही मन्दिर, कैरोखर (झाँसी) ::: झाँस

By JagranEdited By: Published: Tue, 20 Apr 2021 07:37 PM (IST)Updated: Tue, 20 Apr 2021 07:37 PM (IST)
गौरवान्वित करने वाला है कैरोखर गाँव का इतिहास
गौरवान्वित करने वाला है कैरोखर गाँव का इतिहास

लोगो : बुन्देली वैभव

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फोटो : 17 एसएचवाई 10

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वाराही मन्दिर, कैरोखर (झाँसी)

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झाँसी : चुनावी हिंसा को लेकर सुर्खियों में आए कैरोखर गाँव का इतिहास गौरवान्वित करने वाला है। गुरसराय से पहले 10 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम कैरोखर में वाराही मन्दिर है, जिसमें स्थापित प्रतिमा प्रतिहार कालीन है। इसका निर्माण बाहर से लाये गये बलुआ पत्थर से किया गया है। माँ वाराही हिन्दू धर्म की सप्त-मातृका में से एक है। यह देवी दुर्गा का तामसि और सात्विक गुणधारी रूप है, जो भगवान विष्णु के वराहावतार की शक्ति रूपा है। इनका शीश जंगली शूकर का है।

श्री दुर्गा सप्तशति चण्डी के अनुसार शुम्भ और निशुम्भ दो महादैत्यों के साथ जब महाशक्ति भगवती माँ दुर्गा का प्रचण्ड युद्ध हो रहा था, तब माँ भगवती की सहायता करने के लिये सभी प्रमुख देवता शिव, विष्णु, ब्रह्मा, देवराज इन्द्र तथा कुमार कार्तिकेय ने अपने कर्मो के आधार पर शक्ति स्वरूपा देवियों को अपने शरीर से निकाल कर देवी दुर्गा के पास प्रेषित किया था। उसी समय भगवान विष्णु ने अपने अंशावतार वाराह की शक्ति माँ वाराही को प्रकट किया था।

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फोटो : 19 एसएचवाई 9

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टोड़ीफतेहपुर का किला, झाँसी

मऊरानीपुर-गुरसराय मार्ग पर ग्राम पण्डवाहा से पश्चिम में लगभग 7 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम टोड़ीफतेहपुर स्थित है। यहाँ लगभग 300 वर्ष पुराना दुर्ग है। यह जलीय दुर्ग है, जिसका निर्माण पतरई नदी के किनारे किया गया है। पहले यह दुर्ग गुसाइयों के पास था, बाद में बुन्देलों ने इस पर अपना अधिपत्य जमाया। बुन्देली राजा दीवान राय सिंह जूदेव ने गुसाइयों से जीतने पर विजयोत्सव में पहाड़ी के नीचे फतेहपुर ग्राम की नींव डाली थी। कालान्तर में यह टोड़ी-फतेहपुर जागीर बनी। यह किला पहाड़ पर स्थापित है, जिसके एक ओर तालाब, दूसरी ओर पक्की खाई तथा तीसरी ओर पहाड़ है। किला 3 हिस्सों में बना है, जिसकी बनावट से मुगलकाल, राजस्थानी कला तथा अंग्रे़जी शासन के समय का निर्माण देखने का मिलता है। किले में सुरक्षा के लिये दो कोट हैं, जो लगभग 30 फुट ऊँचे हैं तथा 3 विशाल दरवाजे बने हुये है, जिनकी ऊँचाई 3 मंजिल है। यहाँ फौज के सिपाही रहा करते थे। किले के अन्दर कई सुरग है, जो आज भी देखी जा सकती है। राजा हरदौल के वंशज बड़ागाँव झाँसी के जागीरदार रायसिंह ने अपने राज्य को अपने 8 पुत्रों में बाँट दिया था। ज्येष्ठ पुत्र हिन्दुपत को टोड़ीफतेहपुर दिया गया था। हिन्दुपत के बाद उनके पुत्र मेदनी मल जागीरदार रहे। नि:सन्तान होने के कारण उन्होंने विजना के राजा सुरजन सिंह के छोटे भाई हरप्रसाद को गोद लिया था। दीवान हर प्रसाद जू देव (1816-1858 ई.) ने किले का विस्तार किया एवं तिखण्डा मन्दिर निर्मित करवाया। इसके प्रथम खण्ड पर धनुषधारी का मन्दिर, द्वितीय खण्ड पर राज कुमार मन्दिर तथा तृतीय खण्ड छैल बिहारी का मन्दिर है। मन्दिर के अन्दर चित्रकला व नक्काशी देखने योग्य है। इसमें रामायण व गीता की कथाओं पर आधारित 2 ह़जार से अधिक चित्र बने हुये है।


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