काम के बोझ से हाँफ रहे बीएलओ
- पंचायत चुनाव की मतदाता सूची का पुनरीक्षण कार्य लगभग 5 साल बाद होने से बढ़ गया है काम झाँसी : प्र
- पंचायत चुनाव की मतदाता सूची का पुनरीक्षण कार्य लगभग 5 साल बाद होने से बढ़ गया है काम
झाँसी : प्रदेश में पंचायत चुनावों की मतदाता सूची के पुनरीक्षण कार्य में मतदाताओं के घर-घर जा रहे बीएलओ (बूथ लेबिल ऑफिसर) काम के बोझ से त्रस्त हो गए है। लगभग 5 साल बाद हो रहे पुनरीक्षण से बड़ी संख्या में मतदाताओं के बढ़ने एवं विलोपन होने से बीएलओ को मतदाता सूची तैयार करने में काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। उस पर चुनावी मैदान में ताल ठोंकने को तैयार बैठे गाँवों के राजनीतिज्ञ अपने-अपने मतदाताओं के नाम बढ़ाने, बचाने और विपक्षी खेमों के नाम कटाने के लिए तरह-तरह की पैंतरेबाजी कर रहे है।
पंचायत चुनाव की मतदाता सूची के पुनरीक्षण कार्य ते़जी से चल रहा है। ग्राम पंचायत के एक-एक घर के 18 वर्ष की आयु से अधिक के सदस्यों का विवरण दर्ज किया जा रहा है। आधार नम्बर और मोबाइल फोन नम्बर भी माँगे जा रहे है। पिछले पंचायत चुनावों के बाद पंचायत चुनाव की मतदाता सूची का यह पहला पुनरीक्षण है। 5 साल तक इस सूची में कोई कार्य नहीं होने से अब बीएलओ को एक साथ 5 साल का काम करना पड़ रहा है। बीते पंचायत चुनाव में जो युवक 17 वर्ष की आयु का था वह अब पहली बार पंचायत चुनाव का मतदाता बनेगा जबकि विधानसभा एवं लोकसभा निर्वाचन में वह पहले से ही मतदाता बनकर अपने मताधिकार का प्रयोग कर रहा है। इसी प्रकार 5 साल में मृत हुए मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से विलोपित करने पड़ रहे है। 5 वर्ष में अनेक महिलाएं विवाहोपरान्त अपने ससुराल चली गयीं। उनके नाम भी इधर से उधर करने पड़ रहे है। अनेक बीएलओ का कहना है कि 5 साल का कार्य एक साथ दे दिया जाएगा तो बोझ पड़ना स्वाभाविक है। पंचायत चुनाव की मतदाता सूची का भी विधानसभा व लोकसभा सूची की तरह ही प्रतिवर्ष पुनरीक्षण कराया जाए तो यह स्थिति नहीं बनेगी।
वॉर्ड से बिगड़ा खेल
पंचायत चुनाव की मतदाता सूची वार्ड के अनुसार तैयार की जाती है। वार्ड विभाजित होने के कारण ही इसका मिलान विधानसभा की मतदाता सूची से करना थोड़ा कठिन होता है क्योंकि उसमें वॉर्ड नहीं होते है। कई बीएलओ का कहना है कि पंचायत मतदाता सूची में वॉर्ड नहीं होते तो विधानसभा सूची से काफी सहायता मिल सकती थी।
फोटोयुक्त नहीं है मतदाता सूची
निर्वाचन आयोग ने कई वर्षो के प्रयासों के बाद विधानसभा व लोकसभा चुनावों के लिए फोटोयुक्त मतदाता सूची तैयार करायी और इससे डुप्लिकेट मतदाता को पकड़ने में काफी मदद भी मिली है। किन्तु पंचायत चुनावों की मतदाता सूची फोटोयुक्त नहीं है। मतदाता सूची में न तो मतदाताओं के फोटो है और न ही उनकी मतदाता पहचान पत्र संख्या अंकित है। ऐसे में डुप्लिकेट मतदाताओं की घुसपैठ से इन्कार नहीं किया जा सकता है।
एक-एक वोट होता है ़कीमती
पंचायत चुनावों और स्थानीय निकायों के चुनावों में एक-एक मतदाता के वोट की असली ़कीमत समझ में आती है। यही कारण है कि अनेक दावेदार अपने क्षेत्र के प्रत्येक मतदाता की कुण्डली तैयार किए रहते है। अपने-अपने समर्थकों के नाम बढ़ाने और विपक्षी खेमों के समर्थकों के नाम विलोपित कराने के लिए बीएलओ पर दबाव भी बनाते है। रसूख वाले तो ब्लॉक एवं तहसील तक जोड़-तोड़ की कोशिश में लगे रहते है। इन चुनावों में हार-जीत का अन्तर चन्द मतों से ही होता है। कई बार बीएलओ गाँव की राजनीति का शिकार हो जाते है।
पुनरीक्षण कार्य के बीच चमक गई किस्मत
मतदाता सूची के पुनरीक्षण कार्य में लगे कई बीएलओ की किस्मत अचानक चमक गयी। कुछ कई विकास खण्ड में शिक्षामित्रों को बीएलओ बनाया गया था और इसी बीच 69,000 ह़जार शिक्षक भर्ती के अन्तर्गत 31 ह़जार से अधिक शिक्षकों की भर्ती में उनका नाम भी आ गया। उन्हे नियुक्ति पत्र भी मिल गया है और अब उनकी पद स्थापना नवीन विद्यालयों में की जाएगी। ऐसे बीएलओ के स्थान पर नये बीएलओ की नियुक्ति भी कर दी गई है।