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सरकारी उपेक्षा निगल गई रानीपुर का कपड़ा उद्योग

रानीपुर (झाँसी) : एक समय देश-विदेश में अपने बेहतरीन टेरिकॉट के लिये प्रसिद्ध रानीपुर का हथकरघा उद्यो

By JagranEdited By: Published: Fri, 07 Aug 2020 01:00 AM (IST)Updated: Fri, 07 Aug 2020 01:00 AM (IST)
सरकारी उपेक्षा निगल गई रानीपुर का कपड़ा उद्योग
सरकारी उपेक्षा निगल गई रानीपुर का कपड़ा उद्योग

रानीपुर (झाँसी) : एक समय देश-विदेश में अपने बेहतरीन टेरिकॉट के लिये प्रसिद्ध रानीपुर का हथकरघा उद्योग अन्तिम साँसे गिन रहा है। रानीपुर में बनी सूती चादर, बेडशीट, ऱजाई व पहनने के कपड़े कभी बुन्देलखण्ड की शान समझे जाते थे, लेकिन सरकारी सुविधाओं की उपेक्षा और आधुनिक तकनीक की होड़ से यह उद्योग पिछड़ता ही गया।

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रानीपुर टेरिकॉट का बीजारोपण यहाँ के बुनकर आत्माराम भड़भड़िया, रघुवर बिजरोनिया, चिन्तामन पठया, नन्नायी बिजरोनिया, दीनदयाल कुरेचया, सियाराम रामपुरिया, गोविन्दास चौकरया, भागीरथ पण्डा आदि ने वर्ष 1985 में किया था। देखते ही देखते यह रानीपुर टेरिकॉट के नाम से विशाल वटवृक्ष के रूप में पूरे देश में छा गया। इसने यहाँ के बुनकरों की तकदीर और तस्वीर बदल दी। हथकरघा निर्मित टेरिकॉट कपड़ा व्यवसाय बड़ा उद्योग बन गया था। समय के साथ हथकरघा के स्थान पर बिजली चलित पावर लूम का साम्राज्य स्थापित हुआ और मुम्बई, सूरत, अहमदाबाद आदि बड़े शहरों से कपड़ा बनाने वाले धागे का आना शुरू हुआ, जिससे पूरे नगर का व्यवसाय फलने-फूलने लगा।

शुरू हो गया पतन

यहाँ के फलते-फूलते कपड़ा व्यवसाय के पतन के कारण कई हो सकते हैं, लेकिन सरकार की उपेक्षा और संसाधनों का अभाव प्रमुख है। रही-सही कसर आवश्यकता अनुसार बिजली न मिलने, पर्याप्त मात्रा में निर्मित माल की ख़्ारीद के लिए कच्चे माल की सप्लाई में बाधा आदि ने पूरी कर दी। 1997 के बाद इस उद्योग की साँसे फूलने लगीं। यहाँ निर्मित कपड़े के उचित मूल्य नहीं मिलने से बुनकरों के समक्ष रो़जी-रोटी का संकट खड़ा होने लगा, जिसके चलते बुनकरों ने यहाँ से पलायन शुरू कर दिया।

सोसायटि से मिली सहायता का नहीं हुआ लाभ

दम तोड़ चुके व्यवसाय को पटरी पर लाने के लिए सरकार ने बुनकरों को सोसाइटि के माध्यम से आर्थिक सहायता पहुँचाई। इसके लिए उनका सोसायटि का गठन समूह बनाकर किया गया जिसके माध्यम से करोड़ों रुपयों की आर्थिक मदद मिली, लेकिन इससे बुनकरों को कोई राहत नहीं मिली और यह योजना राजनीतिक मकड़जाल में उलझ कर रह गई। इसी के साथ बुनकरों ने टेरिकॉट के स्थान पर गमछा और तौलियाँ बनाने का काम शुरू किया, जो छोटे स्तर पर आज भी बुनकरों की जीविका का सहारा है।

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फिर जीवित हो सकता है उद्योग

0 बुनकर दीनदयाल हटया का कहना है कि यहाँ पर क्लस्टर प्लाण्ट लगा दिया जाए तो यह उद्योग फिर से जीवित हो सकता है। वे कहते हैं कि यह योजना सरकार के संज्ञान में है।

0 बुनकर रामचरण बिजरोनिया ने कहा कि बुनकरों द्वारा निर्मित माल की ख़्ारीद के लिए यदि सरकारी क्रय-विक्रय केन्द्र की स्थापना कर दी जाए तो बुनकरों का भला हो सकता है।

0 चिन्तामन पठया कहते हैं कि उन्होंने 1990 में साड़ी बनाने का काम शुरू किया था, लेकिन कच्चा माल समय पर न मिलने के कारण वह व्यवसाय भी ठप हो गया। यदि सरकार कच्चा माल समय पर उपलब्ध कराए तो यह व्यवसाय पुन: जीवित हो सकता है। साथ ही कपड़ा निर्माण में प्रयोग होने वाली सामग्री पर टैक्स आदि में छूट दी जाए तो बुनकरों को काफी लाभ होगा और चौपट हो चुका कपड़ा उद्योग जीवित हो सकेगा।

0 जयप्रकाश बिरा ने कहा विद्युत की व्यवस्था सुचारू रूप से मिलने लगे तथा विद्युत बिल फिक्सेशन कर दिया जाए तो भी बुनकरों की हालत पटरी पर आ सकती है।

0 भगवानदास आर्य ने सुझाव दिया कि अगर सरकार रेशमी धागा सस्ते दामों पर उपलब्ध कराए तो बुनकरों को अधिक लाभ मिल सकेगा।

फाइल : राजेश शर्मा

6 अगस्त 2020

समय : 8.35 बजे


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