दंगों की आग में झुलसी थी झाँसी, पुलिस की गोली से मारा गया था युवक
0 पुलिस ने की थी फायरिंग 0 वृद्ध पिता को भी लगी थी गोली 0 15 क्षेत्रों में लगाया गया था कर्फ्यू
0 पुलिस ने की थी फायरिंग
0 वृद्ध पिता को भी लगी थी गोली
0 15 क्षेत्रों में लगाया गया था कर्फ्यू
झाँसी : अयोध्या में विवादित ढाँचा विध्वंस होने के बाद 6 दिसम्बर 1992 की रात से ही देशभर में दंगे फैलने लगे। झाँसी भी दंगों की आग में झुलस गई थी। दंगाइयों पर फायरिंग के दौरान 24 साल का वह युवक मारा गया, जिसके घर पर दंगाइयों ने हमला किया था। उसका पिता भी घायल हो गया।
6 दिसम्बर की घटना के बाद देशभर में सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गई थी। 7 दिसम्बर 1992 को झाँसी में 4 स्थानों पर कर्फ्यू लगा दिया गया। इसके बावजूद कपूर टेकरी में समुदाय विशेष के लोग एकत्र हो गए। भीड़ ने काँच की बोतलें व पत्थर फेंकने शुरू कर दिए। उग्र लोगो ने रामदीन के मकान पर हमला बोल दिया। दरवा़जे को तोड़ रही भीड़ को पुलिस ने ललकारा, और उग्र भीड़ नहीं मानी तो पुलिस ने फायरिंग कर दी। इससे दंगाई तो भाग निकले, लेकिन पुलिस की गोली घर के अन्दर छिपे रामदीन के 24 वर्षीय पुत्र लक्ष्मण दास को लगी, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई, जबकि रामदीन भी घायल हो गया। पथराव में पीएसी के 2 जवान भी घायल हुए। पुलिस ने 13 लोगों को गिरफ्तार किया। उधर, सैंयर गेट पर भी भीड़ उग्र हो गई और मोहन लाल सोनकर व प्यारेलाल के मकान पर धावा बोल दिया। इसके बाद प्रशासन ने शहर में राई का ताजिया, मुकरयाना, चार खम्भा, अलीगोल, गुदरी, बड़ाबा़जार, दरीगरान, इतवारी गंज, छनियापुरा, तलैया, बिसाती बा़जार, नरिया बा़जार, तालपुरा, भैरों खिड़की तथा पुलिया नम्बर 9 में भी शाम 6 से प्रात: 9 बजे तक के लिए कर्फ्यू लगा दिया गया। 10 दिसम्बर 1992 को अन्दर उनाव गेट के साथ ही 2 स्थानों पर हथगोले फेंके गए। उन्नाव गेट में हथगोले से 45 साल के भगवान दास व पत्नी घायल हो गए।
कुशीनगर एक्सप्रेस पर पथराव
7 दिसम्बर को अलग-अलग क्षेत्र में भड़की हिंसा के बीच कुछ लोगों ने पुलिया नम्बर 9 में कुशीनगर एक्सप्रेस पर पथराव कर दिया। चेन पुलिंग कर आउटर पर ट्रेन को रोका गया। यह ट्रेन अयोध्या से राम सेवकों को लेकर आई थी। इस हमले से गुस्साए राम भक्तों ने भी पलटवार किया। दोनों ओर से पत्थरबाजी होने लगी। सूचना मिलते ही पुलिस पहुँच गई और उपद्रवियों को खदेड़कर ट्रेन को आगे बढ़वाया।
बुन्देलखण्ड में आन्दोलन की अलख जलाते रहे नेता व सन्त
झाँसी : राम मन्दिर आन्दोलन भले ही 1990 व 1992 में जोर पकड़ा, लेकिन इसका शंखनाद 1994 को हो गया था। शुरूआत अयोध्या मन्दिर को ताले से मुक्त कराने को लेकर की गई थी। विश्व हिन्दू परिषद के तत्कालीन विभाग संगठन मन्त्री भगवत पोरवाल व बजरंग दल के नगर संयोजक डॉ. चन्द्रकान्त अवस्थी ने बताया कि आन्दोलन के लिए बुन्देलखण्ड सबसे प्रमुख स्थान था, इसलिए अलग-अलग समय में नेता व सन्त बुन्देलखण्ड में आन्दोलन की अलख जगाते रहे।
0 1985 में श्रीराम जन्म भूमि न्यास के अध्यक्ष रामचन्द्र दास परमहंस झाँसी आए। किले के मैदान में सभा होनी थी, लेकिन बारिश के कारण गणेश मन्दिर में सभा हुई।
0 1986 में श्रीराम जन्म भूमि मुक्ति यज्ञ समिति के अध्यक्ष महन्त अवेद्यनाथ आए। उन्होंने 1 सप्ताह तक बुन्देलखण्ड में प्रवास किया और सभाएँ कर राम मन्दिर आन्दोलन की हुंकार भरी।
0 1986 को विश्व हिन्दू परिषद के राष्ट्रीय संगठन मन्त्री अशोक सिंहल आए। लक्ष्मी व्यायाम मन्दिर इण्टर कॉलिज प्रांगण में सभा की।
0 1986 को ही आदि शंकराचार्य काँचीकाम कोटि पीठ जयेन्द्र सरस्वती झाँसी आए और कुँज बिहारी मन्दिर में बैठक की।
0 1987 में स्वामी परमानन्द व साध्वी ऋतम्भरा ने सीपरी बा़जार स्थित नेहरू पार्क में सभा की।
0 1987 को उमा भारती ने हाट का मैदान नगरा में सभा की।
0 1987 को विहिप के क्षेत्रीय संगठन मन्त्री ने बैठक की। अन्य कार्यक्रम में महन्त नृत्यगोपाल दास ने सीपरी बा़जार स्थित चाँदमारी हनुमान मन्दिर में सभा की।
0 1988 में राजमाता विजया राजे सिन्धिया ने किले के मैदान में सभा की।
फाइल : राजेश शर्मा
4 अगस्त 2020
समय : 6.10 बजे