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बुन्देली धरा के साहित्यकारों का योगदान अविस्मरणीय

0 बुन्देलखण्ड में ही लिखी गई रामायण व गीता 0 महाकवि ईसुरी ने बुन्देली भाषा को दी नयी पहचान, काव्य

By JagranEdited By: Published: Fri, 28 Feb 2020 01:00 AM (IST)Updated: Fri, 28 Feb 2020 01:00 AM (IST)
बुन्देली धरा के साहित्यकारों का योगदान अविस्मरणीय
बुन्देली धरा के साहित्यकारों का योगदान अविस्मरणीय

0 बुन्देलखण्ड में ही लिखी गई रामायण व गीता

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0 महाकवि ईसुरी ने बुन्देली भाषा को दी नयी पहचान, काव्य के प्रेत के रूप में चर्चित हुये कवि केशव

झाँसी : शौर्य व पराक्रम के प्रतीक ऐतिहासिक दुर्ग की तलहटी में स्थित क्राफ्ट मेला मैदान के मंच पर अगले 3 दिन बुन्देली, हिन्दी साहित्य व संस्कृति के विद्वानों का जमावड़ा रहेगा। कलाकार बुन्देली संस्कृति का प्रदर्शन करेंगे तो देश के अलग-अलग हिस्सों से आने वाले साहित्यकार बुन्देली व हिन्दी के उत्थान पर चर्चा करेंगे। इस दौरान शोध पत्र भी प्रस्तुत किए जाएंगे। ऐसा माना जा रहा है कि 3 दिनी यह महोत्सव बुन्देलखण्ड के समृद्ध साहित्य व संस्कृति को नयी पहचान देगा तो कलाकारों को प्रतिष्ठित मंच प्रदान करेगा।

बुन्देली साहित्य व संस्कृति का अतीत काफी समृद्धशाली रहा है। यहाँ के अनेक साहित्यकारों ने देश में ऊँची पहचान बनाई है। इन साहित्यकारों के वैभव का आकलन इसी से लगाया जा सकता है कि हिन्दू धर्म एवं समाज के सबसे पवित्र धार्मिक ग्रन्थ रामचरित मानस की रचना बुन्देलखण्ड की धरती पर ही की गई। गोस्वामी तुलसीदास ने चित्रकूट में इस धार्मिक ग्रन्थ की रचना की। कालपी में महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना की, जिससे अवतरित गीता भी हिन्दुओं का पवित्र ग्रन्थ है। बुन्देलखण्ड में साहित्यकार मैथिलीशरण गुप्त ने जन्म लिया, जिन्हें राष्ट्रकवि की उपाधि दी गई। महाकवि केशव, उपन्यास सम्राट वृन्दावन लाल वर्मा, पद्माकर, लाल बिहारी, श्रीपति, मुंशी अजमेरी, गंगाधर व्यास जैसे कवि-साहित्यकारों एवं इन्दीवर, निदा ़फा़जली तथा ताबाँ झाँसवी जैसे बड़े शाइरों एवं ़िफल्मी गीतकारों ने बुन्देलखण्ड को अलग पहचान दी। इन साहित्यकारों ने बुन्देली माटी को तो विश्व पटल पर विख्यात किया, लेकिन इनकी अधिकांश रचनाएं हिन्दी-हिन्दुस्तानी, खड़ी बोली अथवा अवधि भाषा में रहीं, जबकि महाकवि ईसुरी ने बुन्देली भाषा को मुकाम दिया। यहाँ के उत्सव, तीज-त्योहार और लोक नृत्य भी कभी विशिष्ट पहचान रखते थे, लेकिन सरकारी उपेक्षा और अपनों की अनदेखी ने बुन्देलखण्ड के समृद्धशाली साहित्य व संस्कृति पर ग्रहण लगा दिया। बुन्देली कलाकारों की पूछ-परख ख़्ात्म हो गई, जबकि बुन्देली भाषा गाँवों की परिधि में सिमट गई। बुन्देलखण्ड लिट्रचर फेस्ट सोसायटि एवं बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा आयोजित बुन्देलखण्ड साहित्य महोत्सव बुन्देली साहित्य व लोक संस्कृति को नया आयाम देगा। 28 फरवरी से 1 मार्च तक चलने वाले इस 3 दिवसीय महोत्सव में देशभर से आने वाले विद्वान हिन्दी व बुन्देली संस्कृति एवं साहित्य के उत्थान पर मन्थन करेंगे। कलाकारों को मंच मिलेगा, जहाँ वे अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर सकेंगे।

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महोत्सव में भी उपेक्षित रही बुन्देली

बुन्देलखण्ड के लोक कलाकारों को मंच प्रदान करने के लिए पहले अनेक प्रयास किए जाते थे। समय-समय पर सरकारी आयोजन होते थे। झाँसी महोत्सव में भी बुन्देली लोक कलाकारों को मंच दिया जाता था। पहले के महोत्सवों में मुख्य मंच पर रहने वाले बुन्देली कलाकारों को धीरे-धीरे उपेक्षित किया जाने लगा। महोत्सव में ही उन्हें मुख्य मंच से हटाकर अलग मंच दे दिया गया, लेकिन फिर महोत्सव पर ही ग्रहण लग गया। हाल ही में आयोजित झाँसी महोत्सव में बुन्देली लोक संस्कृति को पूरी तरह से बिसरा दिया गया। बुन्देलखण्ड साहित्य महोत्सव बुन्देली लोक कलाकारों के लिए भी बड़ा अवसर साबित हो सकता है।

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बुन्देली साहित्य का दामन थामे हैं ये कलाकार

कभी समृद्ध साहित्य का केन्द्र रहे बुन्देलखण्ड में अब भी अनेक साहित्यकार हैं, जो बुन्देली भाषा एवं यहाँ के साहित्य को प्रोत्साहित करने के लिए प्रयासरत हैं। बहादुर सिंह परमार, हरगोविन्द कुशवाहा, पन्ना लाल असर, मुकुन्द मेहरोत्रा, शंकर सिंह (मुन्ना राजा), बसन्त बसारी, गुण सागर सत्यार्थी, अयोध्या प्रसाद गुप्त कुमुद, अवध किशोर जड़िया, महेश कटारे सुगम, साकेत सुमन चतुर्वेदी, डॉ. दयाराम बेचैन और इस आयोजन के संयोजक तथा बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. पुनीत बिसारिया आदि लेखक बुन्देली साहित्य के लिए समर्पित बने हुये हैं।

इन्होंने कहा

'बुन्देलखण्ड के साहित्य की समृद्ध विरासत का अनुमान रामचरित मानस और पवित्र ग्रन्थ गीता से लगाया जा सकता है। 12 वीं शताब्दी में कवि जगनिक ने बुन्देलखण्ड के प्रथम महाकाव्य की रचना की, जिसे आल्हाखण्ड नाम दिया गया। महाकवि ईसुरी ने बुन्देली भाषा को मुकाम दिलाया। अनेक साहित्यकारों, लेखकों ने बुन्देलखण्ड की संस्कृति को आगे बढ़ाने का काम किया, लेकिन उपेक्षा ने इस प्राचीन वैभवशाली संस्कृति पर संकट खड़ा कर दिया है। बुन्देलखण्ड साहित्य महोत्सव बुन्देली साहित्य, लोक कला को नई पहचान देगा।'

0 हरगोविन्द कुशवाहा

- बुन्देली साहित्य, संगीत एवं कलाप्रेमी

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'बुन्देली भाषा, साहित्य और संस्कृति विलुप्तता की कगार पर है। बुन्देली साहित्य महोत्सव इसमें जीवन का संचार करेगा। इससे लोग बुन्देली संस्कृति, खान-पान, लोक नृत्य, उत्सव, त्योहार के बारे में जान सकेंगे। इससे लोगों में बुन्देली संस्कृति के प्रति उत्सुकता बढ़ेगी और वह बुन्देली साहित्य से जुड़ेंगे। बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय का यह सकारात्मक ़कदम होगा, जिससे बुन्देली लोक संस्कृति को निश्चित लाभ होगा।'

0 पन्नालाल 'असर'

- मुख्यमन्त्री से पुरस्कृत बुन्देली साहित्यकार


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