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375 दिन झाँसी की रानी रहीं मनु

फाइल फोटो ::: 0 झाँसी से निकली क्रान्ति देशभर में फैली 0 बुन्देलखण्ड के साथ उत्तर-मध्य भारत पर

By JagranEdited By: Published: Sat, 16 Nov 2019 01:01 AM (IST)Updated: Sat, 16 Nov 2019 06:08 AM (IST)
375 दिन झाँसी की रानी रहीं मनु
375 दिन झाँसी की रानी रहीं मनु

फाइल फोटो

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0 झाँसी से निकली क्रान्ति देशभर में फैली

0 बुन्देलखण्ड के साथ उत्तर-मध्य भारत पर भी रानी लक्ष्मीबाई ने छोड़ा प्रभाव

झाँसी : वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई ने महज 375 दिन तक झाँसी पर राज किया, लेकिन इस अल्प अवधि में रानी को हर ़कदम पर संघर्ष करना पड़ा। देश की आ़जादी से लेकर झाँसी का अस्तित्व बचाने के लिए अंग्रे़जों से लोहा लिया। कभी परदे के पीछे रहकर विद्रोहियों को एकजुट किया, तो कभी मैदान में आकर तलवार लहराई। रानी के इसी शौर्य ने पूरे उत्तर-भारत में उनका प्रभाव कायम किया। सन् 1857 में रानी लक्ष्मीबाई की अगुवाई में शुरू की गई क्रान्ति ने ही ब्रिटिश हुकूमत की बुनियाद हिलाई। इस कठिन स़फर में रानी जहाँ-जहाँ गई, वह स्थान इतिहास के पन्नों में गुम हो गए हैं। 'जागरण' द्वारा रानी के जन्म दिवस पर मनाए जा रहे 'दीपांजलि' पर यह भूली-बिसरीं यादें भी ता़जा होंगी।

समाजसेवी मुकुन्द मेहरोत्रा के अनुसार लक्ष्मीबाई का विवाह काफी कम उम्र में महाराजा गंगाधर राव के साथ हुआ था। गणेश मन्दिर में वैवाहिक रस्में पूर्ण की गई। इसके बाद रानी व राजा पैदल ही किले में आए। रास्ते में रानी ने सिन्धी तिराहा पर स्थित मन्दिर में पूजा-अर्चना की। बाद में भी इस मन्दिर में रानी अक्सर जाती रहीं। रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन उसकी मृत्यु के बाद महाराजा गंगाधर राव वियोग में डूब गए और बीमार पड़ गए। हालत बिगड़ती देख महाराजा गंगाधर राव ने दामोदर राव को दत्तक पुत्र के रूप में ग्रहण किया। 20 नवम्बर 1854 को एसडीएम कोर्ट में दत्तक ग्रहण का शपथ पत्र दिया और अगले ही दिन महाराज ने प्राण त्याग दिए। इसके बाद से ही रानी के संघर्ष का दौर प्रारम्भ हो गया। अंग्रे़जों ने दत्तक ग्रहण को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया, तो रानी ने ऑस्ट्रेलिया के जॉन लैंग को वकील नियुक्त करते हुए न्यायालय में 3 पिटिशन दायर कीं। गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी ने तीनों पिटिशन खारि़ज करते हुए अध्यादेश 'डॉक्टराइन ऑफ लैप्स' जारी किया, जिसे काला अध्यादेश कहा गया। इस अध्यादेश ने कई राजाओं को प्रभावित किया, जिन्हें रानी ने एकजुट किया। 26 अक्टूबर 1856 को रानी ने कालपी में बैठक बुलाई, जिसमें उत्तर, मध्य भारत के कई राजा शामिल हुए। बैठक में 31 मई 1857 को अंग्रे़ज सरकार के ख़्िाला़फ पूरे देश में क्रान्ति का शंखनाद करने का निर्णय लिया गया। राजाओं को ़िजम्मेदारी बाँटी गई, लेकिन तय समय पर क्रान्ति की तैयारी नहीं हो पाई, तो रानी ने अपनी सहायिका जूही के माध्यम से झाँसी छावनी में सैनिकों को विद्रोह के लिए तैयार कर लिया। मुकुन्द मेहरोत्रा बताते हैं कि 4 जून 1857 को 1,200 से अधिक सैनिकों ने रात 8 बजे स्टार फोर्ट पर हमला बोल दिया और तोप से दक्षिणी बुर्ज उड़ाकर गोला-बारूद, कोषागार व बैंक को लूटा तथा जेल में बन्द लोगों को मुक्त कराया। 5 जून को विद्रोहियों ने किले पर हमला किया, जिसमें नागरिक भी शामिल हुए। भीषण युद्ध के बाद अंग्रे़जों ने 7 जून 1857 को हार स्वीकार की तथा रानी को सत्ता सौंप दी। झाँसी की सत्ता सँभालने के बाद रानी ने करैरा व पिछोर (शिवपुरी) पर भी आधिपत्य हासिल किया और यमुना किनारे तक अपने राज का विस्तार किया। 10 महीने बाद 1 अप्रैल 1858 को अंग्रे़जों ने एक बार फिर रानी पर हमला किया। योजनाबद्ध तरीके से किए गए इस हमले का रानी ने मजबूती से जवाब दिया, लेकिन फिर दुर्ग छोड़कर उन्हें जाना पड़ा। दत्तक पुत्र को पीठ पर बाँधकर निकली रानी ने बालाजी रोड स्थित ग्राम बूढ़ा (झाँसी) में शरण ली, जहाँ से अपने पुत्र दामोदर को चुर्खी अपने रिश्तेदारों के पास भेज दिया। बूढ़ा के बाद उन्नाव-बालाजी और फिर 12 दिन तक भाण्डेर (दतिया) में रानी ने आश्रय लिया, जिसके बाद कोंच (जालौन) पहुँच गई। मुकुन्द मेहरोत्रा के अनुसार- अंग्रे़ज रानी का पीछा कर रहे थे, तब रानी समथर के पास लोहागढ़ पहुँची और यहाँ रहने वाले पठानों ने रानी के लिए युद्ध लड़ा और रानी को कालपी की ओर निकाला। पठानों ने झाँसी की ओर से आ रहे अंग्रे़जों को रोका और रानी ने कालपी की ओर से आ रहे अंग्रे़जों से कोंच में युद्ध लड़ा और उनको परास्त किया। कालपी में में फिर अंग्रे़जों ने रानी को घेरा, लेकिन यहाँ भी रानी ने अंग्रे़जों को हराया और कुछ समय कालपी में ठहरने के बाद रानी ग्वालियर पहुँची और अंग्रे़जों से युद्ध के बाद गंगादास के आश्रम में रानी वीरगति को प्राप्त हुई। यह तारीख थी 17 जून 1858 - यानी, 375 दिन तक ही लक्ष्मीबाई झाँसी की रानी रह सकीं।

ग्वालियर की सत्ता पर भी काबिज हुई थीं रानी

महारानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी के अलावा ग्वालियर रियासत पर भी राज किया, लेकिन यह अवधि महज 18 दिनों की ही रही। जर्मनी के चांसलर रैनर जेरोश की किताब 'द रानी ऑफ झाँसी रिबेल अंगेस्ट विल' के अनुसार अंग्रे़जों से युद्ध करते हुए रानी कालपी से ग्वालियर आई, तो सिन्धिया परिवार ने 30 मई 1858 को महारानी लक्ष्मीबाई को ग्वालियर की सत्ता सौंप दी। 16 जून 1858 को अंग्रे़जों ने यहाँ रानी पर हमला किया, जिसके बाद 17 जून 1858 को रानी वीरगति को प्राप्त हुई।

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पेंशन लेने से रानी ने कर दिया था इन्कार

झाँसी : अंग्रेज हुकूमत ने काला अध्यादेश लागू करने के बाद मेजर ऐलिस द्वारा अध्यादेश उपलब्ध कराते हुए रानी की सुविधाएँ वापस ले लीं। रानी के लिए 6 ह़जार रुपए सालाना पेंशन भी बाँध दी गई, लेकिन रानी ने इसे लेने से इन्कार कर दिया।

फाइल : 15 एसएचवाई 5

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दुर्ग की तलहटी से उत्सव का उद्घोष करेंगी वीरांगनाएँ

- नारी शक्ति यात्रा से होगा 2 दिवसीय उत्सव का शुभारम्भ

- 18 नवम्बर पूर्वाह्न 11 बजे निकाली जाएगी वाहन रैली

झाँसी : सिर पर गुलाबी पगड़ी बाँधकर वीरांगनाओं की टोली वाहनों की कतार के साथ सड़क पर उतरेंगी, तो ऩजारा अद्भुत होगा। एक ही तरह के परिधान पहने ये महिलाएँ महारानी लक्ष्मीबाई के नाम का उद्घोष करेंगी, जिसका साक्षी ऐतिहासिक दुर्ग बनेगा। जयन्ती के एक दिन पहले का यह उद्घोष उस महोत्सव का शुभारम्भ भी करेगा, जिसमें 2 दिन तक झाँसी के साथ पूरा बुन्देलखण्ड डूबने को तैयार है।

दैनिक जागरण के आह्वान पर महारानी लक्ष्मीबाई की जयन्ती पर आयोजित दीपांजलि-2019 कार्यक्रम को महोत्सव के रूप में मनाने की तैयारियाँ ते़ज हो गई हैं। सहयोगी संगठनों ने प्रत्येक कार्यक्रम को भव्य बनाने की रूपरेखा बना ली है। 2 दिवसीय इस उत्सव की शुरूआत 18 नवम्बर को वीरांगनाओं द्वारा निकाली जाने वाली नारी शक्ति यात्रा (वाहन रैली) से होगी। पूर्वाह्न 10.30 बजे रानी लक्ष्मीबाई दुर्ग के द्वार से रैली का शुभारम्भ होगा, जिसके बाद महिलाएँ दो-पहिया (कुछ चार-पहिया वाहन भी) वाहनों के साथ सड़क पर उतरेंगी। रैली ऐतिहासिक दुर्ग के मुख्य द्वार से निकलेगी और एसपीआइ इण्टर कॉलिज, इलाइट चौराहा, बाबाधाम (चित्रा चौराहा), ध्यानचन्द स्टेडियम, बीकेडी चौराहा, जीवनशाह तिराहा होते हुए वीरांगना लक्ष्मीबाई पार्क पहुँचेगी। रैली संयोजक समर्पण सेवा समिति की अध्यक्ष अपर्णा दुबे ने बताया कि रैली में शामिल होने वाली महिलाएं सफेद कुर्ता, हरे रंगी की लैगी व केसरिया पगड़ी पहनेंगी। इसके साथ ही महाराष्ट्रियन नथ भी पहननी होगी।

इन संगठनों ने जताई सहमति

समर्पण सेवा समिति के नेतृत्व में निकाली जाने वाली नारी शक्ति यात्रा में जागृति गहोई मंच, जेसीआइ वीरांगना, ़िजला महिला व्यापार मण्डल, विमिन अग्रवाल क्लब, कोहिनूर ऑलवे़ज ब्राइट, मणिकर्णिका भारत विकास परिषद, भाजपा महिला मोर्चा समेत कई संगठनों की महिलाएं शामिल होंगी।

बैठक में बनाई रणनीति

दो दिवसीय दीपांजलि उत्सव का शुभारम्भ करने वाली नारी शक्ति रैली की तैयारियों को लेकर आज जागरण कार्यालय पर विभिन्न संगठनों ने बैठक की, जिसमें रैली के ड्रेस कोड, रूट पर चर्चा की गई।

ये रहीं उपस्थित

कामना श्रीवास्तव, करुणा सरावगी, वन्दना गुप्ता, निधि अग्रवाल, संध्या अग्रवाल, वैशाली पुंशी, ऊषा सेन, स्वप्निल मोदी, हेमा पालरवाले आदि शामिल रहीं।

नारी शक्ति यात्रा में शामिल होने के लिए करें सम्पर्क

रानी लक्ष्मीबाई की जयन्ती के एक दिन पहले 18 नवम्बर को पूर्वाह्न 10.30 बजे आयोजित नारी शक्ति यात्रा में शामिल होने के लिए महिलाएं अपर्णा दुबे के मोबाइल फोन (7985358562) पर सम्पर्क कर सकती हैं।

फाइल : राजेश शर्मा

15 नवम्बर 2019

समय : 6.30 बजे


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