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'कहने को वो घर था लेकिन हर दरवाजा टूट गया'

फोटो : 6 एसएचवाई 7, 4 ::: 0 बहुरस भीनी ़गजलों की ़खुशबू से सुवासित रहा याद-ए-अरमान अन्तर्राष्ट्र

By JagranEdited By: Published: Wed, 06 Nov 2019 10:52 PM (IST)Updated: Wed, 06 Nov 2019 10:52 PM (IST)
'कहने को वो घर था लेकिन हर दरवाजा टूट गया'
'कहने को वो घर था लेकिन हर दरवाजा टूट गया'

फोटो : 6 एसएचवाई 7, 4

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0 बहुरस भीनी ़गजलों की ़खुशबू से सुवासित रहा याद-ए-अरमान अन्तर्राष्ट्रीय मुशाइरा

झाँसी : बुन्देलखण्ड की सरजमीन को शेर-ओ-शाइरी के माध्यम से साहित्य जगत् में नयी पहचान देने वाले शाइर जीपी तिवारी 'अरमान' की स्मृतियों को समर्पित याद-ए-अरमान अन्तर्राष्ट्रीय मुशायरे को देश-विदेश से आमन्त्रित कवि-शाइरों ने वा़कई यादगार बना दिया। राजकीय संग्रहालय के वातानुकूलित ऑडिटोरियम में मुशाइरे का दीप अडिशनल कमिश्नर झाँसी डिविजन डॉ. अ़ख्तर रियाज पूर्व केन्द्रीय मन्त्री प्रदीप जैन 'आदित्य', साहित्यकार एवं पूर्व मन्त्री रवीन्द्र शुक्ल, राज्यमन्त्री हरगोविन्द कुशवाहा, भाजपा के महानगर अध्यक्ष प्रदीप सरावगी, एमएलसी प्रतिनिधि आरपी निरजन, सीनियर जेल सुपरिटेण्डेण्ट राजीव शुक्ला, 'अंजुमन तामीर-ए-अदब' के संरक्षक रजनीश श्रीवास्तव, पूर्व रजिस्ट्रार बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय मो. उस्मान, अध्यक्ष उ.प्र. व्यापार मण्डल संजय पटवारी, व्यापारी नेता मनमोहन गेड़ा, दैनिक जागरण परिवार से अनन्त सिंघल एवं वत्सला सिंघल के साथ ही डॉ. नीति शास्त्री, सीटीआइ. मो. उमर ़खान, जिला शासकीय अधिवक्ता अनिल अग्रवाल, ़िफल्मकार गौरव प्रतीक, वरिष्ठ शाइर इ़कबाल हसन 'सहबा', मदन मोहन मिश्रा और कार्यक्रम संयोजक अभिषेक मिश्रा आदि ने समवेत् रूप से प्रज्ज्वलित किया। अतिथियों ने अपने उद्बोधन में कहा कि ़फनकार अपने ़फन के माध्यम से शाश्वत् पहचान अर्जित कर लेता है। वह अपने साहित्य और अपनी यादों के सहारे मौत के बाद भी लोगों के दिलों में अजर-अमर रहता है। 'अरमान' तिवारी भी एक ऐसे ही शाइर थे। सुश्री मान्या 'अरमान' ने कार्यक्रम के औचित्य पर प्रकाश डाला।

डॉ. अख़्तर रिया़ज की अध्यक्षता में आयोजित मुशाइरे का आ़गा़ज मुम्बई से आये ़गजलकार एवं मशहूर गायक जसवन्त सिंह ने 'अरमान' तिवारी की ़गजल- 'दिल की कश्ती का किनारा और था/हम जहाँ डूबे वो दरिया और था' को अपनी आवा़ज देकर किया। सागर त्रिपाठी ने 'अरमान' तिवारी पर अपनी विशेष रूप से सृजित नज्म पेश की। इसके बाद सिराज तनवीर हमीरपुरी ने- 'स्कूल से छूटे हुये बच्चे की तरह आ/आना है मिरे पास तो पहले की तरह आ', कानपुर से आयी शाइरा चाँदनी पाण्डेय ने- 'ऱफ्ता-ऱफ्ता दरक रहा था, ऱफ्ता-ऱफ्ता टूट गया/कहने को वो घर था, लेकिन हर दरवाजा टूट गया', इ़कबाल हसन 'सहबा' ने- 'मेरी आँखें ़गौर से देखो आँखों में है ़ख्वाब बहुत/दरिया कितने छोटे-छोटे लेकिन है सैलाब बहुत', जसवन्त सिंह (मुम्बई) ने- 'थमते नहीं हैं अश्क वो जब से जुदा हुआ/हैरान हूँ कि ये मिरी आँखों को क्या हुआ', सागर त्रिपाठी (मुम्बई) ने- 'दिल मुहब्बत से मुकरना भी नहीं चाहता है/़गम की सरहद पै ठहरना भी नहीं चाहता है', डॉ.अ़ख्तर रियाज ने- 'गर अचानक मिल गयी तो कैसे पहचानेंगे हम/ऐ ़खुशी अर्से से हमने तुझको देखा ही नहीं', रवीन्द्र शुक्ल ने- 'कोई चलता पगचिह्नों पर कोई पगचिह्न बनाता है', थाइलैण्ड की राजधानी बैंकॉक से आये माहिर निजामी ने- 'अकेलेपन का कभी तुम ़ख्याल मत करना/हमारे बाद हमारा मलाल मत करना', जाहिद कोंचवी ने- 'प्यार में हम नु़कसान उठाते रहते है/साँपों को भी दूध पिलाते रहते है', अब्दुल जब्बार ़खान 'शारिब' ने- 'दरबारी हो गये तेरे दरबार के ़िखला़फ/करने लगे है काम ये सरकार के ़िखला़फ', अब्दुल ़गनी 'दानिश' ने- 'मौसम है ़खुशगवार चलो सैर को चलें/दिल भी है बे़करार चलो सैर को चलें', म़क्सूद अली 'नदीम' ने- 'बिछड़ के हमसे मुहब्बत में जायेगा कैसे/दिलों से अपनी ़गजल वो मिटायेगा कैसे', जावेद अनवर ने- 'आँखों में तू़फान बहुत है/बारिश का इम्कान बहुत है', उस्मान 'अश्क' ने- 'रुढि़याँ अब हमें मिटाना है/इक नयी रोशनी को लाना है', हलीम 'राना' ने- 'शाइरी सीखना मुमकिन नहीं नामुमकिन है/ये पतंगें नहीं सब लोग उड़ाने लग जायें', अबरार 'दानिश' ने- 'मुहब्बतों में तो पत्थर भी पिघल सकता है/तुम अपने लहजे से ऩफरत को हटाकर देखो', राजकुमार अंजुम ने- 'कोई चिड़िया ़करीने से जो तिनकों को लगाती है/तो लगता है मिरी बेटी मिरा कमरा सजाती है', पन्नालाल 'असर' ने- 'मुझे ़गैर से मुहब्बत न थी न है न होगी/तेरी बेरु़खी से ऩफरत न थी न है न होगी', जैसे कलाम से मुशाइरे को ऊँचाइयाँ ब़ख्शीं। राजकुमार अंजुम ने संचालन एवं अंजुमन के संरक्षक रजनीश श्रीवास्तव ने आभार व्यक्त किया।

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स्तरहीन है स्वयं को बड़ा आँकने वाले कवि-शाइर : सागर त्रिपाठी

झाँसी : ख्यातिलब्ध शाइर, समालोचक एवं मंच संचालक सागर त्रिपाठी कविता और शाइरी विशेषकर मंचीय सस्ते साहित्य से बेहद असन्तुष्ट नजर आये। लगभग 2 दर्जन साहित्यिक किताबों के सृजक सागर त्रिपाठी ने कहा कि मंच और साहित्य में अपने ़कद को बड़ा आँकने वाले कवि-शाइर यह भूल जाते है कि यह अ़िख्तयार उन्हे कदापि नहीं। मीर, ़गालिब, सूर, कबीर किसी का भी उदाहरण लें, ये सभी अपने दौर में उतने बड़े कभी नहीं रहे, जितना बड़ा ़कद आने वाले ़जमानों ने उनकी साहित्यिक प्रतिभा का आकलन करने के बाद उन्हें प्रदान किया। उन्होंने कहा कि राजनीति या दूसरी बैसाखियों का सहारा लेकर ऊँचाइयों पर होने का भ्रम पाल बैठे साहित्यकारों को ़जमाना बाद में भुला देता है। सि़र्फ वे साहित्यकार ही याद रखे जाते है, जो अपने ़फन और ल़़फ़्जों के साथ पूरी ईमानदारी बरतते है।

व्यवसायिक हो गये है कवि सम्मेलन-मुशाइरों के अधिकाश मंच : चाँदनी पाण्डेय

कानपुर से आयी शाइरा एवं कवियत्री चाँदनी पाण्डेय का कहना था कि अच्छी कविता और शाइरी में व़क्त के साथ-साथ बदलने का गुण समाहित होना चाहिये। पहले शायरी सन्त-़फ़कीरों की ़खाऩकाहों में रही तो उसमें त्याग, संस्कारों व जीवन की नश्वरता का रंग ऩजर आया। यही शाइरी बादशाहों के दरबारों और हुस्न के रजवाड़ों की महं़िफलों में रही तो उसमें रूमानियत व रंगरलियों की बहुतायत का समावेश देखा गया। लोकतन्त्र का दौर आया, तो शाइरी के मि़जाज ने भी करवट ली और उसमें ़िजन्दगी की उलझनों, सियासत और आम आदमी की परेशानियों का ़िजक्र होने लगा। उन्होंने कहा कि इस दौर की शाइरी में प्ऱफेशनलि़ज्म अधिक है, जो कदापि नहीं होना चाहिये।

अपने उत्तरदायित्व को भूल बैठे है मंचीय साहित्यकार : माहिर निजामी

बैंकॉक (थाइलैण्ड) से आये शाइर माहिर 'निजामी' ने कहा कि वर्तमान दौर के अधिकतर कवि-शाइर दौलत व शोहरत कमाने के फेर में अपने उत्तरदायित्व से मुँह मोड़ लेते है। इस दौर के मुशायरा और कवि सम्मेलन के मंच भी सस्ते मनोरंजन का साधन बन गये है। जीवन की समस्याओं से ऊबे श्रोता इनमें आनन्द की अनुभूति तलाशने के लिये आते है और कवि-शाइर भी उनका मनोरंजन कर अपने दायित्व की इतिश्री कर लेते है। हमारा हर सूरज पश्चिम से उग रहा है। पश्चिमी संस्कृति में रचे-बसे लोग हमारे अच्छे साहित्य और संगीत को गन्दा करके पेश कर रहे है और उसका पैसा भी हमसे ही वसूल रहे हैं।

- प्रस्तुति : राजकुमार अंजुम

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