मेरा दुश्मन मुझे जीने की दुआ देता है..
फोटो : ::: 0 प्रख्यात शाइर हसन काजमी एवं माहिर निजामी के सम्मान में मुशायरा झाँसी : प्रख्यात
फोटो :
:::
0 प्रख्यात शाइर हसन काजमी एवं माहिर निजामी के सम्मान में मुशायरा
झाँसी : प्रख्यात शाइर एवं टेलिविजन प्रोड्यूसर हसन काजमी (नोएडा) तथा बैंकॉक (थाइलैण्ड) से आये शाइर माहिर निजामी के सम्मान में मुशाइरे का आयोजन 'अंजुमन तामीर-ए-अदब' के जेर-ए-एहतिमाम रानीमहल पर किया गया। इसकी अध्यक्षता झाँसी मण्डल के अडिश्नल कमिश्नर डॉ. अ़ख्तर रियाज ने की। मुख्य संयोजक अब्दुल जब्बार 'शारिब', उस्मान 'अश्क', अब्दुल हमीद, जावेद 'अनवर' आदि ने अतिथियों का स्वागत किया।
डॉ. अ़ख्तर रियाज ने कहा कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में विशेषकर मुशाइरा मंचों से पढ़ी जाने वाली शाइरी का स्तर पतनोन्मुख है। ऐसे में हसन काजमी की प्रशसा की जानी चाहिये कि वह आम़फहम शाइरी की अभिव्यक्ति करने के बावजूद उसके स्तर को ऊँचा बनाये हुये है। विशिष्ट अतिथि/जिला आर्य समाज के उप प्रधान राजेन्द्र सिंह यादव एवं शौकत उल्ला ़खान ने कहा कविता या शाइरी को साहित्य का दर्पण निरूपित किया जाता है। कवि या शाइर अपने कथ्य के माध्यम से एक दौर का प्रतिनिधित्व करते आये हैं। ऐसे में किसी भी शाइर को अपने उत्तरदायित्व से मुँह नहीं मोड़ना चाहिये।
जाहिद कोंचवी द्वारा पेश की गयी नात-ए-पाक से मुशाइरे का आ़गाज हुआ। हसन काजमी ने कलाम पेश करते हुये कहा- 'क्या जमाना है कभी यूँ भी सजा देता है/मेरा दुश्मन मुझे जीने की दुआ देता है।' एक अन्य ़गजल में उन्होने कहा- 'जमाने का तुम्हें डर था तो फिर इक ़फासला रखते/हमें डसती न तनहाई अगर तुम सिलसिला रखते।' श्रोताओं की ़फरमाइश पर उन्होंने तलत अजीज समेत कई गायक-गायिकाओं के स्वर में बेहद म़कबूल अपनी ़गजल- '़खूबसूरत है आँखें तेरी रात को जागना छोड़ दे/़खुद-ब-़खुद नींद आ जायेगी तू मुझे सोचना छोड़ दे' को भी गुनगुनाया। माहिर निजामी ने कहा- 'जमींदारी थी दुनिया में हुकूमत भी तुम्हारी थी/मगर ये ़कब्र है बोलो यहाँ क्या ले के आये हो।' डॉ. अ़ख्तर रियाज ने कहा- 'गर अचानक मिल गयी तो कैसे पहचानेंगे हम/ऐ ़खुशी! अर्से से हमने तुझको देखा ही नहीं।' सिराज तनवीर हमीरपुरी ने कहा- 'आना है मिरे पास तो पहले की तरह आ/स्कूल से छूटे हुये बच्चे की तरह आ।' इ़कबाल हसन 'सहबा' ने कहा- 'मुसलसल आँख से जो बह रहा है/तलातुम है कि दरिया है ये क्या है।' राजकुमार अंजुम ने कहा- 'कभी जो तू ने दिया था वो घाव रहने दे/कि ज़ख्म-ए-दिल से लहू का रिसाव रहने दे।' अरमान 'तिवारी' ने पढ़ा- 'उसको खोया तब ये अन्दाजा हुआ/दिल में अपने कोई रहता और था।' उस्मान 'अश्क' ने वर्तमान दौर के कई शाइरों की सच्चाई इस तरह बयान की- ़खबरों की कतरनों से वो अ़खबार हो गया/़गजलें चुरा के औरों की ़फनकार हो गया। इसके साथ ही हलीम 'राना', सऱफराज 'मासूम', जब्बार शारिब, पन्नालाल 'असर', जाहिद कोंचवी, जावेद 'अनवर', आरि़फ 'उमर', म़क्सूद 'राही', अब्दुल ़गनी 'दानिश', शब्बीर अहमद 'सरोश', जमील झाँसवी आदि ने भी सारगर्भित कलाम पेश किये। राजकुमार अंजुम ने संचालन व अब्दुल जब्बार 'शारिब' ने आभार व्यक्त किया।
फोटो हाफ कॉलम : हसन काजमी
:::
शाइर ़फन और ल़फ्जों के प्रति व़फादार रहें : हसन काजमी
झाँसी : प्रख्यात शाइर एवं टीवी व ़िफल्म जगत में भी समान रूप से लोकप्रियता रखने वाले हसन काजमी से 'जागरण' ने मुशायरों के वर्तमान हालात के साथ-साथ उर्दू शायरी के भूत, वर्तमान और भविष्य पर बातचीत की। लगभग 3 दशक से देश-विदेश के मुशायरा मंचों के शाइर काजमी ने सा़फ कहा- 'मंच और साहित्य में अपने ़कद को बड़ा आँकने वाले शायर यह भूल जाते है कि यह इ़िख्तयार उन्हे कदापि नहीं है।'
उन्होंने कहा- किसी कवि या शाइर के छोटे या बड़े होने का पैमाना मुद्दतों के बाद तय होता है। मीर, ़गालिब और सूर, कबीर अपने दौर में उतने बड़े कभी नहीं रहे, जितना बड़ा ़कद आने वाले ़जमाने ने उनकी साहित्यिक प्रतिभा का आकलन करने के बाद उन्हें अता किया। राजनीति या दूसरी बैसाखियों का सहारा लेकर ऊँचाइयों पर होने का भ्रम पाल बैठे साहित्यकारोंको ़जमाना बाद में भुला देता है। सि़र्फ वे साहित्यकार ही याद रखे जाते है, जिन्होंने अपने ़फन और ल़़फ़्जों के साथ ़गद्दारी नहीं की। शाइरी के बारे में उन्होंने कहा कि यह व़क्त के साथ-साथ बदलती रही है। इस दौर की शायरी में प्ऱफेशनलि़ज्म अधिक है। आज मंच के कई शायर दौलत व शोहरत कमाने के फेर में अपने उत्तरदायित्व से मँुह मोड़ लेते है। जीवन की समस्याओं से ऊबे श्रोता इनमें आनन्द की अनुभूति तलाशने के लिये आते है, कवि-शायर भी उनका मनोरंजन कर अपने दायित्व की इतिश्री कर लेते है। यह सरासर ़गलत है। इस चलन को ़खत्म करने के लिये अच्छे शाइरों व श्रोताओं को आगे आना चाहिये।
- प्रस्तुति : राजकुमार अंजुम
23 अंजुम
6.10