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रानीपुर टेरिकॉट के आएंगे 'अच्छे दिन'!

0 बुनकर कॉलनि पर बनेगा सीएफसी, 1975 से खाली पड़ी थी ़जमीन 0 15 करोड़ रुपये की डीपीआर शासन भेजने की त

By JagranEdited By: Published: Sun, 16 Dec 2018 01:00 AM (IST)Updated: Sun, 16 Dec 2018 01:00 AM (IST)
रानीपुर टेरिकॉट के आएंगे 'अच्छे दिन'!
रानीपुर टेरिकॉट के आएंगे 'अच्छे दिन'!

0 बुनकर कॉलनि पर बनेगा सीएफसी, 1975 से खाली पड़ी थी ़जमीन

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0 15 करोड़ रुपये की डीपीआर शासन भेजने की तैयारी

झाँसी : कोशिश परवान चढ़ी, तो रसातल में समाए रानीपुर के टेरिकॉट उद्योग के फिर 'अच्छे दिन' आ जाएंगे। 200 बुनकरों ने संगठन बनाते हुए प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने में ऱजामन्दी जताई है, तो मशीनरी स्थापना के लिए आवश्यक ़जमीन की परेशानी का भी निराकरण हो गया है। इसके लिए बुनकर कॉलनि के लिए चिह्नित भूमि का हस्तान्तरण हो गया है। उधर, कॉमन फेसिलिटि सेण्टर (सीएफसी) के लिए 15 करोड़ रुपये की डीपीआर (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) भी तैयार कर ली गई है।

2 दशक पहले तक देशभर में धूम मचाने वाला रानीपुर टेरिकॉट का अस्तित्व ख़्ातरे में है। 1980 के दशक में यह उद्योग चरम पर था। रानीपुर के अलावा आसपास के कई क्षेत्रों में हथकरघा की खटखट सुनाई देती थी। प्रगति हुई, तो हथकरघा के साथ ही पावरलूम ने भी जगह बना ली और यह उद्योग फैलता चला गया, परन्तु बा़जार में छिड़ी प्रतिस्पर्धा ने रानीपुर टेरिकॉट को बा़जार से बाहर कर दिया। इस समय स्थिति यह है कि रानीपुर, मऊरानीपुर समेत कुछ और गाँवों में लगभग 1,200 बुनकर ही बचे हैं। ये बुनकर भी चादर, तौलिया आदि बनाकर किसी तरह से जीविका चला रहे हैं। इस उद्योग को पुराने वैभव में लौटाने के लिए केन्द्रीय मन्त्री उमा भारती ने प्रयास किए, तो भारत सरकार का ध्यान इस ओर गया। सर्वे कराया गया तो पता चला कि मशीनरी के अभाव में बुनकरों को फिनिशिंग व अन्य कार्यो के लिए दूसरे शहरों में जाना पड़ता है, जिससे कपड़े की लागत बढ़ जाती है। इस कमी को पूरा करने के लिए यहाँ आवश्यक मशीन जुटाने की योजना बनाई गई। विशेषज्ञों ने सर्वे करते हुए 15 करोड़ रुपए की लागत से कॉमन फैसिलिटि सेण्टर खोलने का सुझाव दिया, जिसके अन्तर्गत डाइंग प्लाण्ट, कैलेण्डरिंग प्लाण्ट, साइ़िजंग मशीन के साथ ही कच्चे माल का डिपो स्थापित किया जाएगा। उद्योग विभाग ने डीपीआर बना ली है, जिसे शासन भेजने की तैयारी चल रही है। प्रोजेक्ट में सबसे बड़ी बाधा ़जमीन को लेकर आ रही थी। उपायुक्त (उद्योग) सुधीर कुमार श्रीवास्तव ने बुनकर कॉलनि के लिए चिह्नित ़जमीन का उपयोग करने का सुझाव दिया। लगभग 1.78 हेक्टेयर भूमि 1975 के बाद से खाली पड़ी है। सुझाव पर सहमति जताते हुए निदेशक (उद्योग) रणवीर प्रसाद ने ़िजलाधिकारी को ़जमीन की जाँच कराते हुए रिपोर्ट माँगी। अब यह ़जमीन स्पेशल पर्पस वीहिकल संगठन को ली़ज पर दे दी गई है।

200 बुनकरों ने बनाया संगठन

उद्योग विभाग के प्रयास से स्पेशल पर्पस वीहिकल संगठन बनाते हुए 200 बुनकरों को इसमें शामिल किया है, जिन्होंने कॉमन फैसिलिटि सेण्टर पर सहमति जताई है। उपायुक्त (उद्योग) ने बताया कि संगठन में सभी 1200 बुनकरों को शामिल किया जाएगा, ताकि उन्हें सुविधाओं का लाभ मिल सके।

एक ही स्थान पर होंगे कई काम

कॉमन फैसिलिटि सेण्टर की स्थापना होने के बाद बुनकरों को फिनिशिंग के लिए दूसरे शहरों में नहीं जाना पड़ेगा। धागा की उपलब्धता भी यहीं सुनिश्चित होगी। अन्य कई मशीन की आवश्यकता भी इस सेण्टर से पूरी हो जाएगी, जिससे लागत में कमी आएगी और क्वॉलिटि में सुधार होगा।

फाइल : 1 : राजेश शर्मा

15 दिसम्बर 2018

समय : 5.00


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