जैविक खेती से बेहतर है प्राकृतिक खेती
फोटो : 23 बीकेएस 21 ::: 0 अलग-अलग क्षेत्र के किसानों के ग्रुप से मिले पद्मश्री सुभाष पालेकर
फोटो : 23 बीकेएस 21
:::
0 अलग-अलग क्षेत्र के किसानों के ग्रुप से मिले पद्मश्री सुभाष पालेकर
झाँसी : शून्य लागत प्राकृतिक खेती प्रशिक्षण शिविर में पद्मश्री सुभाष पालेकर ने ़जीरो लागत को लेकर सम्वाद किया। उन्होंने कहा कि जैविक खेती की तुलना में प्राकृतिक खेती अधिक अच्छी पद्धति है। चारों तरफ रासायनिक उपयोग से फैलते ़जहर को रोकने के लिए प्राकृतिक खेती करने की ़जरूरत है। उन्होंने आज फिर उदाहरण देते हुए दोहराया कि एक देशी गाय से 10 से 30 एकड़ तक खेती की जा सकती है।
पैरामेडिकल कॉलिज सभागार में कृषि ऋषि के नाम से विख्यात सुभाष पालेकर ने किसानों से प्राकृतिक खेती को लेकर सामूहिक बात की, तो अलग-अलग क्षेत्र के किसानों के साथ बैठक कर उस क्षेत्र की जलवायु, किसानों की स्थिति तथा अन्य परिस्थितियों पर चर्चा की। कार्यशाला में सुभाष पालेकर ने कहा कि ़जीरो बजट खेती में मुख्य ़फसल का लागत मूल्य उत्पादित सह ़फसल के विक्रय से निकाल लेना और मुख्य ़फसल को बोनस (शून्य लागत) के रूप में लेना होता है। कोई भी संसाधन (बीज, खाद, कीटनाशक) आदि बा़जार से न लेकर, इसका निर्माण अपने घर या खेत में कर बा़जारी लागत शून्य करना है। किसान बा़जार से कुछ खरीदेगा नहीं, तो कर्ज भी नहीं लेगा। इससे गाँव का पैसा गाँंव में ही खर्च होगा। उन्होंने कहा कि डीप ऐरिगेशन से वैज्ञानिक 60 प्रतिशत पानी की बचत का दावा कर रहे हैं, लेकिन प्राकृतिक खेती से 90 फीसदी पानी की बचत होगी। उन्होंने जीवामृत को खेतों व फलों के बाग में उपयोग की विधि बतायी। कार्यशाला में श्याम बिहारी गुप्ता ने किसानों को प्रेरित करने वाला गीत सुनाया। गरौठा विधायक जवाहर लाल राजपूत, मॉडल किसान अवधेश प्रताप सिंह व अयोध्या प्रसाद कुशवाहा ने भी किसानों से बात की। समन्वयक गोपाल उपाध्याय, शिविर समन्वयक आचार्य अविनाश, सह व्यवस्था प्रमुख नितिन चौरसिया ने भी कार्यक्रमों की जानकारी दी। इस दौरान सुमन पुरोहित, डॉ. एसआर गुप्ता, डॉ. आरके खरे, हृदेश गोस्वामी, रविन्द्र कौरव आदि उपस्थित रहे।
बॉक्स : सभी फोटो हाफ कॉलम में
:::
ये बोले लोग
देश के विभिन्न हिस्सों से जुटे किसान व युवा मिलकर परम्परागत खेती को तकनीक से जोड़कर बनायी गयी ़जीरो बजट की खेती को सीख रहे हैं। प्रदेश में लखनऊ के बाद झाँसी में हो रही कार्यशाला में जुटे अधिकतर किसान अभी प्राकृतिक व जैविक खेती तो कर रहे हैं, लेकिन उन्हें अब तकनीक के सहारे ़जीरो लागत पर खेती करने का अनुभव मिला है। इसे वह अपने जनपद तथा गाँंवों तक ले जाना चाहते हैं। कुछ युवा अपना कामकाज छोड़कर प्रकृति से जुड़ने का सन्देश देने के लिए कार्यशाला में शामिल हुए हैं। कुछ चुनिन्दा किसानों व युवा से बातचीत के कुछ अंश :-
0 हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा निवासी राजेन्द्र सिंह 35 वर्ष से देशी गोबर व खाद से 2 एकड़ खेत में खेती कर रहे हैं। वह यहाँ सुझाए गए फॉर्मूले से काफी उत्साहित हैं। उनका कहना है कि अब 10 क्विण्टल गोबर नहीं, 10 किलो गोबर से ही खेती हो जाएगी। वह अभी गेहँू, धान, मक्का, दाल, सरसों आदि की प्राकृतिक खेती कर रहे हैं।
0 राजस्थान के बाडमेर निवासी सेवानिवृत्त शिक्षक बीजलाराम चौहान का कहना है कि वह 5 वर्ष से खेती कर रहे हैं। पाकिस्तान की सीमा पर होने से वह केवल बरसात के समय ही ़फसल ले पाते हैं और बरसात नहीं होने पर सूखा की स्थिति पैदा हो जाती है। वह जैविक खेती तो पहले से कर रहे हैं, अब प्राकृतिक ़जीरो लागत की खेती पद्धति को अपनाएंगे। उनके यहाँ ईसबघोल की भूसी की खेती सबसे अधिक होती है।
0 बंगलादेश के ढाका से आए रहमत शहदुल इस्लाम 3 वर्ष पहले ऐसी ही कार्यशाला से ़जीरो बजट की खेती की तकनीक बांग्लादेश ले गए थे। उन्होंने केमिकल के स्थान पर प्राकृतिक खेती शुरू की। आसपास के किसान कभी कीट लगने और कभी अन्य समस्याओं से ग्रसित रहते हैं। अपने मोबाइल पर धान की लहलहाती फसल दिखाते हुए वह कहते हैं कि वह अगले वर्ष 'कृषि ऋषि' को बांग्लादेश ले जा रहे हैं।
0 दिल्ली की मधुर पंजवानी अपना विधि का पेशा छोड़कर प्राकृतिक खेती करने की तैयारी कर रही हैं। पहले उन्होंने अपनी छत पर 'टेरिस फार्मिस' की और अब खेत लेकर प्राकृतिक खेती कर युवाओं को सन्देश देना चाहती हैं। वह यहाँ से ़जीरो बजट की खेती सीखकर शहरों में युवाओं को प्राकृतिक खेती की तरफ मोड़ना चाहती हैं। वह युवाओं से प्रकृति से जोड़ना चाहती हैं।
0 झारखण्ड के बोकारो निवासी संजीव दिल्ली से आइटी सेक्टर का कार्य छोड़कर घर वापस आ गए हैं। वह अपने गाँव से 10 किलोमीटर दूर फलींदा जाकर जल प्रबन्धन व पौधारोपण का कार्य कर रहे हैं। वह यहाँ कार्यशाला में प्राकृतिक खेती सीखकर इसका प्रयोग करना चाहते हैं। इसके लिए दोस्त से आधा एकड़ पर खेती करने की बात की है। उनका कहना है कि वह यहाँ से सीखकर कुछ और नए प्रयोग कर मॉडल तैयार करना चाहते हैं।
0 बहराइच के जयशंकर सिंह का कहना है कि वह किसानों के बीच 'कृषि ऋषि' का फॉर्मूला 'बीजामृत', 'घनजीवामृत', 'जीवामृत' व 'आच्छादन' विधि से खेती करने पर सम्वाद कर रहे हैं। वह कहते हैं कि पहले आधा एकड़ पर खाने और आधा एकड़ में बेचने के लिए खेती करें। इसके बाद खेती का रकबा बढ़ाएं। यह प्राकृतिक खेती की नवीन पद्धति है।
0 मध्यप्रदेश के बालाघाट के जनक मराठे अभी तक ढैंचा को कीचड़ में मिलाकर खेतों में खाद के रूप में उपयोग करते थे, लेकिन अब जीवामृत से खेती करना चाहते हैं, जिससे लागत भी कम आएगी।
0 टीकमगढ़ से आए केके कठिल 18 वर्षो से जैविक खेती करा रहे हैं। पिछले वर्ष सुभाष पालेकर के टीकमगढ़ प्रवास के दौरान उन्होंने 'जीवामृत' बनाकर खेती की। वह इस कार्यशाला में अन्य किसानों को लेकर आए हैं।
0 उरई के देवेश कुमार कुछ दूसरे सवाल उठा रहे हैं। वह बुन्देलखण्ड की प्रकृति व जलवायु को इस खेती के अनुकूल नहीं पा रहे हैं। इसको लेकर वह कार्यशाला में चर्चा भी कर चुके हैं। वह बुन्देलखण्ड की प्रमुख समस्या अन्ना प्रथा का हल पाने तथा आपदा ग्रस्त किसानों की समस्या का समाधान पाने की कोशिश कर रहे हैं।
फाइल : रघुवीर शर्मा
समय : 10.10
23 सितम्बर 18