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बुन्देली शासकों ने नहीं दिया था रानी का साथ

राजेश शर्मा (झाँसी) : इतिहास में भले ही वृतान्त का खुलकर वर्णन न किया गया हो, लेकिन अंग्रेज सैनिकों

By Edited By: Published: Sat, 18 Jun 2016 12:14 AM (IST)Updated: Sat, 18 Jun 2016 12:14 AM (IST)

राजेश शर्मा (झाँसी) : इतिहास में भले ही वृतान्त का खुलकर वर्णन न किया गया हो, लेकिन अंग्रेज सैनिकों से रानी की हार का प्रमुख कारण बुन्देली शासकों का साथ न देना भी रहा है। स्वराज क्रान्ति के लिए रानी के साथ खड़े अधिकांश बुन्देलों ने रानी से तब दूरियाँ बना लीं, जब स्वतन्त्रता संग्राम का शंखनाद हो गया और अंग्रेज सैनिकों ने रानी पर आक्रमण कर दिया। यह पूरी लड़ाई रानी ने अकेले ही लड़ी और वीरगति को प्राप्त हुई।

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स्वतन्त्रता संग्राम की प्रथम दीपशिखा महारानी लक्ष्मी बाई वीरता और पराजय के बीच की कहानी जानने के लिए अतीत में झाँकना आवश्यक है। कहानी शुरू होती है सन् 1736 से, जब बुन्देलखण्ड पर महाराजा छत्रसाल का राज हुआ करता था। समाजसेवी मुकुन्द मेहरोत्रा बताते हैं- उस समय इलाहाबाद में मुगल सूबेदार मोहम्मद खाँ बंगश ने बुन्देलखण्ड की सियासत हथियाने के लिए हमला बोल दिया। आक्रमण ते़ज था, इसलिए महाराजा छत्रसाल ने बाजीराव पेशवा से मदद माँगी। पेशवा ने सशर्त मदद स्वीकार करते हुए 21 ह़जार घुड़सवार सेना बुन्देलखण्ड में भेज दी, जिसने बंगश को ़कदम पीछे खींचने पर मजबूर कर दिया। इस मदद के बदले हुई संधि में पेशवा को बुन्देलखण्ड में लगान वसूली का अधिकार मिल गया, जिसका कुछ हिस्सा महाराजा छत्रसाल को दिया जाता था। कालान्तर में मराठाओं ने झाँसी किले पर ़कब़्जा कर लिया और लगान वसूली में सख्ती शुरू कर दी। बताते हैं- सवा सौ साल तक यहाँ शासन करने वाले मराठाओं ने लगान न देने वालों को जेलों में ठूँस दिया। कई बुन्देली राजाओं तक को जेल में डाला गया, जहाँ उनकी मृत्यु तक हो गई। लगभग 122 साल तक चला यह उत्पीड़न सन् 1857 में रानी लक्ष्मी बाई के सामने आया। बुन्देली शासकों का यह विरोध रानी द्वारा स्वराज क्रान्ति को लेकर समर्थन जुटाए जाने तक ऩजर नहीं आया। 1856 में स्वराज क्रान्ति को लेकर रानी के नेतृत्व में कालपी में हुई बैठक में ग्वालियर छोड़, बुन्देलखण्ड की लगभग सभी रियासतों के शासक शामिल हुए। यहाँ से रोटी, कमल व मोहर का वितरण शुरू करते हुए देशभर में स्वराज क्रान्ति की अलख जगाने का निर्णय लिया गया। पेशवा से रंगून और कश्मीर से कन्याकुमारी तक स्वराज की चिंगारी पहुँच गई और 31 मई 1857 को क्रान्ति की तारीख तय हो गई, लेकिन 10 मई 1857 को मेरठ छावनी में सैन्य विद्रोह हो गया और स्वराज क्रान्ति में विघ्न आ गया। इधर, रानी ने बुन्देली शासकों से सम्पर्क साधा और अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष का बिगुल फूँकने में समर्थन माँगा। मुकुन्द मेहरोत्रा के अनुसार- बुन्देलखण्ड के अधिकांश शासकों ने लगान के दौरान मराठा उत्पीड़न पर नारा़जगी जताते हुए रानी का साथ देने से मना कर दिया। इसके बाद रानी ने 14वीं कैवलरी यूनिट झाँसी और 12वीं बंगाल इन्फैण्ट्रि सेना से सम्पर्क साधा और क्रान्ति के लिए तैयार कर लिया। 4 जून 1857 को सैन्य क्रान्ति हुई, जिसमें विद्रोही सैनिकों ने स्टार फोर्ट पर ़कब़्जा कर लिया।

पूर्व मन्त्री हरगोविन्द कुशवाहा बताते हैं- 4 जून 1857 की शाम झाँसी के सैनिक और असैनिक अंग्रेज कर्मचारियों ने परिवार सहित किले पर आकर आश्रय लिया। रानी ने अपने दीवान लक्ष्मण राव के माध्यम से कैप्टन स्कीन को सन्देश भिजवाया कि सभी अंग्रेज परिवारों को लेकर वह दतिया अथवा सागर चला जाए। आवश्यकता हो तो स्त्रियों और बच्चों को रानी महल में भेज दें। स्कीन ने इस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया। रानी ने 40 सिपाहियों को अंग्रेजों की देखरेख में लगा दिया। 6 जून 1857 को स्थिति बदली और कैप्टन डनलप और एन्साइन टेलर की विद्रोहियों ने हत्या कर दी, जिससे भयभीत होकर अंग्रेजों ने स्वयं को किले में कैद कर लिया। 7 जून 1857 को कैप्टन स्कीन ने समझ लिया कि आत्मसमर्पण के अलावा कोई रास्ता नहीं है, तो 8 जून 1857 को सफेद कपड़ा दिखाकर संधि का प्रस्ताव किया। झाँसी के वयोवृद्ध विशिष्ट नागरिक हाकिम सालेह महमूद के समक्ष अंग्रेजों ने सुरक्षित सागर भेजने की गुहार लगाई। इसके बाद स्कीन के नेतृत्व में 65 अंग्रेज दुर्ग से निकले, लेकिन झोकनबाग में उन्हें कत्ल कर दिया गया। उधर, झाँसी पर रानी का शासन कायम हो गया, जो लगभग 11 महीने तक रहा।

दूल्हा जू ने कराया था अंग्रेजों को प्रवेश

रानी लक्ष्मी बाई की हार का एक कारण अंग्रेजों का परकोटे में प्रवेश कराना भी रहा। दरअसल, रानी को हटाने की ़िजम्मेदारी ब्रिटिश हुकूमत ने वर्ष 1858 में जनरल ह्यूरोज को सौंपी, जिसने सैनिकों के साथ परकोटे के बाहर डेरा डाल दिया। 23 मार्च 1858 को ह्यूरोज ने दक्षिणी बुर्ज पर गोले बरसाना शुरू कर दिया। इसी दौरान दूल्हा जू ने गेट खोलकर अंग्रेजों को प्रवेश कराया, जिसके बाद अंग्रेजों ने झाँसी में कत्लेआम कर दिया।

नत्थे खाँ भी रहा रानी की हार का कारण

ओरछा की रानी लड़ाई सरकार रानी के विरोध में थीं। इधर, जनरल ह्यूरोज ने किले पर आक्रमण कर दिया, तो उधर 20 ह़जार सैनिकों के साथ झाँसी आ रहे तात्या टोपे का रास्ता ओरछा (टीकमगढ़) सैन्य प्रमुख नत्थे खाँ ने रोक लिया। नोटक्षीर पर दोनों के बीच घमासान हो गया। अंग्रेजों ने बासोबा गाँव में तोपें लगाकर नत्थे खाँ को मदद पहुँचाई, जिस कारण तात्या टोपे आगे नहीं बढ़ पाए। इधर, रानी तात्या टोपे का इन्त़जार करती रहीं और जब वह नहीं आए, तो रानी ने 4 अप्रैल 1858 को दुर्ग छोड़ दिया।

ग्वालियर में भी किया था शासन

भाण्डेरी गेट से निकली रानी का कोंच में अंग्रेजी सेना से सामना हुआ, फिर कालपी में युद्ध हुआ। दोनों स्थानों पर रानी ने अंग्रेजों को परास्त किया। यहाँ से रानी ग्वालियर पहुँची। मुकुन्द मेहरोत्रा बताते हैं- रानी के पहुँचते ही ग्वालियर में परिस्थितियाँ बदलीं और महाराजा सिंधिया ग्वालियर छोड़कर आगरा में अंग्रेजों की शरण में चले गए और ग्वालियर किले पर रानी का अधिपत्य हो गया। उधर, जनरल ह्यूरोज रानी का पीछा करते हुए ग्वालियर पहुँचा और मोरार पर ़कब़्जा जमा लिया, ताकि रानी तक मदद न पहुँच सके। यहाँ 17 जून 1858 को युद्ध में रानी को गोली लगी। जनरल डलहौजी को भेजे पत्र में हुसार रेजिमेण्ट ने रानी को गोली मारने का दावा किया, लेकिन इसकी पुष्टि नहीं हो पाई। बताया गया कि घायल रानी 17 जून 1858 को स्वामी गंगादास के आश्रम में आई और 18 जून 1858 को यहाँ प्राण त्यागे। यहीं उनका अन्तिम संस्कार किया गया। परन्तु अंग्रेजों को इसका कोई सुबूत नहीं मिल सका।

22 साल 7 माह जीवित रही थीं रानी

वरिष्ठ पत्रकार मोहन नेपाली बताते हैं कि रानी 22 वर्ष 6 माह 29 दिन तक जीवित रहीं। इस अल्प अवधि में उन्होंने शौर्य की अमिट गाथा लिख दी। उनकी आँखों में इतना तेज था कि फिरंगी भी आँख मिलाकर बात करने की हिम्मत नहीं कर पाता था।

बीच में बॉक्स

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वो मर्दानी कहाई थी..

बीन-बीन मारे अरि, रणभूमि पर लाश

दाँतन लगाम थाम, दामिनि दमकती।

रक्त के पनारे बहा फार डारे अंग-अंग

कर करवाल लिए कालिका किलकती।

सम्मुख रानी के, काल गाल में समाने सब

खोपड़ी कृपाण मार, कन्दुक-सी लुढ़कती

लड़ी लड़ाई ऐसी बरिखण्ड वीर बाला ने,

गोरी-गोरी गोरिनों की छाती घड़कतीद्ध

जनानी होकर भी जो मर्दानी कहाई थी,

अरि रक्त से माँग जिसने अपनी सजाई थी,

ह्यूरोज और डलहौजी भी काँपते थे नाम से जिसके,

वो लक्ष्मीबाई, वो लक्ष्मीबाई, वो लक्ष्मीबाई थी।

- त्रिभुवन नाथ त्रिवेदी

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रानी को 21 तोपों की सलामी देगा शिवपुरी का जत्था

झाँसी : महारानी लक्ष्मीबाई के 159वें बलिदान दिवस पर किला रोड स्थित लक्ष्मी बाई पार्क में दीपदान का आयोजन किया जाएगा। रानी को नमन करने शिवपुरी से महिला-पुरुषों का जत्था झाँसी आएगा। उनके द्वारा 21 पुष्पतोपों से रानी को सलामी दी जाएगी।

नगर निगम के तत्वावधान में महारानी लक्ष्मीबाई के बलिदान दिवस पर 18 जून को पार्क में दीपदान का कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। महापौर किरण वर्मा ने शाम 6.30 बजे रानी की प्रतिमा के समक्ष दीपदान कर रानी को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए जनसामान्य से आह्वान किया है। उन्होंने बताया कि शिवपुरी (मध्य प्रदेश) से रानी के बलिदान दिवस पर लगभग 125 महिला-पुरुष व बच्चे मशाल लेकर झाँसी आएंगे। नन्दनपुरा की ओर से नगर में प्रवेश करने के बाद यह जत्था आर्यकन्या चौराहा, टण्डन रोड, बीकेडी चौराहा, खण्डेराव गेट, शहर कोतवाली, सर्राफा बा़जार, मानिक चौक, रानी महल, किला होते हुए शाम 6.30 बजे पार्क में पहुँचेगा, जहाँ रानी को श्रद्धासुमन अर्पित किए जाएंगे। शोभायात्रा का नगर में विभिन्न स्थानों पर स्वागत किया जाएगा।

फोटो : 17 एसएचवाइ 1, 7

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रानी के बलिदान को किया नमन

0 पूर्व संध्या पर कई संगठनों ने दी श्रद्धांजलि

झाँसी : महारानी लक्ष्मीबाई के बलिदान दिवस की पूर्व संध्या पर आज विभिन्न संगठनों ने रानी को श्रद्धासुमन अर्पित किए। दीपदान किया गया। गोष्ठी में रानी के बलिदान को याद किया गया।

- नागरिक सुरक्षा संगठन नगरा प्रभाग द्वारा रेलवे कारखाना मुख्य द्वार पर 1100 दीपों से दीपांजलि अर्पित की। गोष्ठी का आयोजन मुख्य कारखाना प्रबन्धक अतुल्य सिन्हा के मुख्य आतिथ्य एसपीओ कारखाना जीआर अहिरवार के विशिष्ट आतिथ्य में हुआ।

0 गोन्दू कम्पाउण्ड स्थित महाराजा गंगाधर राव पार्क में रानी के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की गई। अध्यक्षता पार्षद सुशीला दुबे ने की। वक्ताओं ने बलिदान दिवस पर सार्वजनिक अवकाश घोषित करने की माँग की। गोकुल दुबे ने आभार व्यक्त किया।

0 रानी लक्ष्मीबाई झाँसी एकता मंच के अध्यक्ष इदरीस खान की अध्यक्षता में गोष्ठी हुई, जिसमें रानी के शौर्य पर प्रकाश डाला गया। एमएल रायकवार ने संचालन व बण्टी पंजाबी ने आभार व्यक्त किया।

0 बजरंग दल द्वारा निकाली गई अमर ज्योति बलिदान यात्रा का शुभारम्भ महापौर किरण वर्मा ने किया। इस अवसर पर राष्ट्रीय सह संयोजक सुरेन्द्र मिश्रा, प्रदेश संयोजक कुशल पाल, सह संयोजक रामजी तिवारी, रामेश्वर मिश्रा आदि उपस्थित रहे। अनूप करौसिया ने आभार व्यक्त किया।

0 राष्ट्रीय जनता दल की बैठक सत्येन्द्र पाल सिंह की अध्यक्षता में हुई, जिसमें बलिदान दिवस पर रानी की तलवार वापसी को लेकर लक्ष्मी बाई पार्क से इलाइट चौराहा तक कैण्डिल मार्च निकालने का निर्णय लिया गया।

0 महारानी लक्ष्मीबाई बलिदान दिवस समारोह महासमिति के तत्वावधान में महिला संगोष्ठी इन्दिरा दूरबार के मुख्य आतिथ्य, संध्या त्रिपाठी की अध्यक्षता, रेखा पाण्डेय के विशिष्ट आतिथ्य में किया गया। गोष्ठी में रानी के पराक्रम पर प्रकाश डाला गया। अभिलाषा रावत ने संचालन किया।

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आज यह होंगे कार्यक्रम

- श्री लक्ष्मी व्यायाम मन्दिर में शाम 6 बजे कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।

- संस्कार भारती द्वारा शाम 6 बजे रानी लक्ष्मीबाई पार्क में दीपदान।

- भारत विकास परिषद विवेकानन्द शाखा झाँसी द्वारा सिन्धी तिराहे पर शर्बत वितरण।

- महारानी लक्ष्मीबाई बलिदान दिवस समारोह महासमिति द्वारा रानीमहल से दोपहर 12 बजे शोभायात्रा निकाली जाएगी।

- आकाशवाणी झाँसी केन्द्र से सायं 6.50 बजे वरिष्ठ पत्रकार मोहन नेपाली की 'महारानी लक्ष्मीबाई का प्रजातान्त्रिक शासन' पर वार्ता का प्रसारण।

- बुन्देलखण्ड विकास परिषद का राष्ट्रीय सम्मेलन दिल्ली में होगा, जिसकी अध्यक्षता नवनिर्वाचित अध्यक्ष डॉ. विजय खैरा करेंगे।


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