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राजा यादवेंद्र दत्त के तंज पर ठहाकों से गूंज उठी थी संसद

सबहेड..जौनपुर रियासत के अंतिम राजा की हिदी अंग्रेजी व संस्कृत के साथ विज्ञान व ज्योतिष पर

By JagranEdited By: Published: Tue, 08 Sep 2020 07:05 PM (IST)Updated: Wed, 09 Sep 2020 06:12 AM (IST)
राजा यादवेंद्र दत्त के तंज पर ठहाकों से गूंज उठी थी संसद
राजा यादवेंद्र दत्त के तंज पर ठहाकों से गूंज उठी थी संसद

सबहेड..जौनपुर रियासत के अंतिम राजा की हिदी, अंग्रेजी व संस्कृत के साथ विज्ञान व ज्योतिष पर रही पकड़

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पुण्यतिथि आज..

-भारतीय जनसंघ व भाजपा के संस्थापक सदस्यों में से रहे एक

-चार बार विधायक, नेता विरोधी दल व दो बार चुने गए सांसद जागरण संवाददाता, जौनपुर : राजनीति के पुरोधा व जौनपुर के राजा यादवेंद्र दत्त दुबे की आज पुण्यतिथि है। नौ सितंबर 1999 को इस दुनिया में अपने नश्वर शरीर को छोड़कर जाने वाले इस राजनीतिज्ञ को दो दशक से अधिक समय हो गए हैं, लेकिन आज भी उनकी यादें लोगों के बीच ताजा हैं। वे जौनपुर रियासत के 11 वें व अंतिम राजा थे। वह राजनीति के ऐसे धुरंधर थे जो अपनी बुद्धिमत्ता व कौशल के दम पर शीर्ष पर पहुंचे। वे हिदी, अंग्रेजी व संस्कृत धारा प्रवाह बोलते थे तो विज्ञान, ज्योतिषी की भी अच्छी जानकारी रखते थे। वह जनसंघ व भाजपा के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। उत्तर प्रदेश के आरएसएस के प्रभारी रहे। चार बार विधायक व दो बार सांसद चुने गए। उत्तर प्रदेश की विधानसभा में नेता विरोधी दल भी रहे। उनकी राजनीतिक कद का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता हैं कि उनके सामने अटल बिहारी वाजपेयी सम्मान में बैठते तक नहीं थे। पं.दीनदयाल उपाध्याय ने 1963 का उपचुनाव उनकी हवेली में एक माह रूककर लड़ा था। इनका संबंध आरएसएस के बड़े प्रचारकों से रहा, जिनका अक्सर यहां आना-जाना लगा रहता था। कुछ स्मृतियां..

राजा यादवेंद्र दत्त के करीबी रहे व वर्तमान में राज पीजी कालेज राजनीति विज्ञान के विभागाध्यक्ष डा.अखिलेश्वर शुक्ला ने बताया कि एक बार लोकसभा में राजा साहब अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर बोल रहे थे, उनकी वाकपटुता को पूरा सदन एकाग्रता से सुन रहा था। उनका समय समाप्त होने पर लोकसभा अध्यक्ष ने उनको रोकना शुरू किया। इस पर अटल बिहारी वाजपेयी व लालकृष्ण आडवानी ने अपना समय लोकसभा अध्यक्ष से आग्रह करके दिला दिया। उसी समय कांग्रेस नेता स्टीफेन ने टोका-टाकी शुरू कर दी तो राजा साहब ने उनको भोजपुरी भाषा में समझाते हुए कहा कि तोहार उमर चालीस होई आई, अवै न गई तोहार लरिकाई। इस पर पूरे सदन में ठहाका लगना व ताली बजना शुरू हो गया।

-वर्ष 1962 में सदर सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ रहे थे, तो राज हवेली से कलेक्ट्रेट तक जुलूस निकला था। जिस पर बीबीसी ने कवर किया था। बीबीसी में बोला गया कि जौनपुर के राजा यादवेंद्र दत्त के जुलूस में पूरे जिले की भीड़ इकट्ठा हो गई थी कि इसमें तिल रखने की जगह नहीं थी। राजनीतिक जीवन..

राजा यादवेंद्र दत्त दुबे का जन्म सात दिसंबर 1918 को हुआ था। 1957 में पहली बार जनसंघ के टिकट पर सदर विधानसभा सीट से चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुंचे थे। दोबारा सदर सीट से 1962 के चुनाव में उनके सामने कांग्रेस के दिग्गज नेता हरगोविद सिंह थे। उन्होंने उनको हराया तो उनको विधानसभा में नेता विरोधी दल बनाया गया। उनकी बढ़ती ख्याति व जीत को देखते हुए जनसंघ के बड़े नेता पं.दीनदयाल उपाध्याय को 1963 के उपचुनाव में यहां लड़ने के लिए भेजा गया था, जिसमें उनको हार मिली थी। वर्ष 1967 में बरसठी से चुनाव लड़कर विधायक चुने गए तो गड़वारा से भी एक बार चुनाव जीते। 1977 के इमरजेंसी में उन्हें वाराणसी के जेल में बंद किया गया था। वह जौनपुर लोकसभा से 1977 व 1989 में सांसद चुनकर संसद पहुंचे।


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