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शिक्षा व्यवस्था की रीढ़ होते हैं शिक्षक

शिक्षक शिक्षा व्यवस्था की रीढ़ होते है। सफल व्यक्ति के पीछे गुरु की भूमिका होती है, इसलिए गुरु को ईश्वर से भी ऊपर का दर्जा दिया गया है। यह विचार इंटर कालेज के प्रधानाचार्य के हैं जो दैनिक जागरण के संस्कारशाला के शिक्षक का महत्व विषय पर बोल रहे थे।

By JagranEdited By: Published: Wed, 19 Sep 2018 08:17 PM (IST)Updated: Wed, 19 Sep 2018 11:45 PM (IST)
शिक्षा व्यवस्था की रीढ़ होते हैं शिक्षक
शिक्षा व्यवस्था की रीढ़ होते हैं शिक्षक

जासं, जौनपुर : शिक्षक शिक्षा व्यवस्था की रीढ़ होते हैं। सफल व्यक्ति के पीछे गुरु की भूमिका होती है, इसलिए गुरु को ईश्वर से भी ऊपर का दर्जा दिया गया है। यह विचार इंटर कालेज के प्रधानाचार्य के हैं जो दैनिक जागरण के संस्कारशाला के शिक्षक का महत्व विषय पर बोल रहे थे। पेश है कुछ शिक्षकों के विचार :-

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शिक्षक समाज में आदर्श स्थापित करने वाला व्यक्तित्व होता है। किसी भी राष्ट्र या समाज के निर्माण में शिक्षा की अहम भूमिका होती है। कहा जाए तो शिक्षक ही समाज का आइना होता है। आदिकाल में भी जब समाज सभ्य नहीं था, तब भी शिक्षक की भूमिका में कुछ लोग होते थे जो सभी को रहने और जीवन जीने का अंदाज बताते थे। शिक्षक के लिए कहा गया है कि आचार्य देवो भव, यानी कि शिक्षक या आचार्य ईश्वर के समान होता है। यह दर्जा एक शिक्षक को उसके द्वारा समाज में दिए गए योगदानों के बदले स्वरूप दिया जाता है।

गजराज ¨सह-प्रधानाचार्य, आदर्श इंटर कालेज रेहारी

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बच्चे देश का भविष्य होते हैं। यह भी ध्रुव सत्य है कि अध्यापक उनके भविष्य का निर्माण करता है। यानी सच्चे अर्थो में शिक्षक ही राष्ट्र व समाज का भविष्य निर्माता होता है। शिक्षक समाज व राष्ट्र को एक तरह से ईश्वरीय उपहार है। वह बिना किसी स्वार्थ व भेदभाव के बच्चों को सही गलत व अच्छे बुरे की सीख देता है। समाज में अध्यापक की भूमिका महत्वपूर्ण होती है क्योंकि समाज इन्हीं बच्चों से बनता है। बच्चे को परिपक्व बनाकर अनुशासित जिम्मेदार व श्रेष्ठ नागरिक बनाने में शिक्षक का अहम योगदान होता है।

अनीता आनंद-प्रधानाचार्य-सेंट्रल पब्लिक स्कूल वाजिदपुर जौनपुर

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शिक्षक, शिक्षा एवं राष्ट्र निर्माण, चरित्र निर्माण, समाज निर्माण की एक प्रमुख धुरी है। पूरी शिक्षा व्यवस्था की रीढ़ शिक्षक के परिवृत्ति ही घूमती है। योग्य शिक्षक द्वारा छात्र के अंदर अंर्तनिहित शक्तियों को उकेर कर बाह्य अनुकृति प्रदान करता है। यह एक हृदय उद्रेक द्वारा ही संभव है। जिसमें जिज्ञासा को जागृत, धारित एवं छात्र में धारण शक्ति के विकास की विधि भी निहित होती है।

विनोद कुमार राय-प्रधानाचार्य-ग्रामोदय इंटर कालेज गौराबादशाहपुर

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आज वैज्ञानिक युग में ज्ञान प्राप्त करने के तमाम स्रोत विकसित हैं। जिनके माध्यम से लोग ज्ञान भी अर्जित कर लेते हैं। लेकिन संस्कार देने का सर्वोत्तम माध्यम शिक्षक ही है। जो छात्रों को बुलंदियों पर ले जाने का काम करता है।इसके अलावा शिक्षक मानवीय गुणों दया, करुणा, उदारता, नैतिकता आदि की शिक्षा देने में माहिर होता है।

विनोद तिवारी-श्री बजरंग इंटर कालेज घनश्यामपुर बदलापुर

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गुरु की तुलना ईश्वर से की गई है तो जाहिर सी बात है कि गुरु का दायित्व भी बहुत बढ़ जाता है। शिक्षार्थी के अंदर छिपी प्रतिभा को निखार कर बाहर लाना शिक्षक का दायित्व बन जाता है। शिक्षार्थी के बौद्धिक आत्मिक और चारित्रिक गुणों का विकास करने में शिक्षक को कभी कोई और कसर नहीं छोड़ना चाहिए।

मृत्युंजय प्रताप ¨सह-प्रधानाचार्य-मां कमला देवी इंटर कालेज जयपालपुर


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