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आंदोलन को गति देने दो बार जौनपुर आए महात्मा गांधी

सतीश ¨सह, जौनपुर स्वतंत्रता आंदोलन को गति देने के उद्देश्य से साबरमती के संत राष्ट्रपिता महात्मा

By JagranEdited By: Published: Wed, 08 Aug 2018 10:33 PM (IST)Updated: Wed, 08 Aug 2018 10:33 PM (IST)
आंदोलन को गति देने दो बार जौनपुर आए महात्मा गांधी
आंदोलन को गति देने दो बार जौनपुर आए महात्मा गांधी

सतीश ¨सह, जौनपुर

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स्वतंत्रता आंदोलन को गति देने के उद्देश्य से साबरमती के संत राष्ट्रपिता महात्मा गांधी शिराज-ए-¨हद की सरजमीं पर दो बार आए। यहीं पर उन्होंने पलो, बढ़ो, पढ़ो का नारा दिया था। महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने का मूल मंत्र भी दिया था। पहली बार 10 फरवरी 1920 में ट्रेन से काशी से लखनऊ जाते समय भंडारी स्टेशन पर हजारों की जनता को संबोधित किए थे। एक बार सेनानी रामेश्वर ¨सह तो दूसरी बार मानिक चौक पर राधामोहन मेहरोत्रा के आवास पर रुके। अगले दिन महिलाओं के अधिवेशन को संबोधित किया। महान स्वतंत्रता सेनानी स्व. रामेश्वर प्रसाद ¨सह की डायरी में इन बातों का विधिवत उल्लेख किया गया है।

बापू जब देश को आजाद कराने के लिए दौरा कर रहे थे। उस दौरान नागपुर में अधिवेशन चल रहा था। जिले के तमाम सेनानी रामेश्वर प्रसाद ¨सह की अगुवाई में वहां गए। लोगों ने उनसे जौनपुर आने के लिए निवेदन किया। 10 फरवरी 1920 को उनके आने की सूचना पाकर प्रशासन ने विद्यालयों को बंद कर दिया, फिर भी लगभग बीस हजार जनता राष्ट्रपिता का भाषण सुनने के लिए टूट पड़ी। प्लेटफॉर्म पर बने मंच से ही उन्होंने दस मिनट भाषण दिया। इस दौरान बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने की बात के साथ, पलो, बढ़ो और पढ़ो का नारा दिया।

दूसरी बार 2 अक्टूबर 1929 को शांति के दूत गांधी जी भंडारी स्टेशन पर उतर कर राजा श्री कृष्ण दत्त दुबे के वाहन से मानिक चौक पर राधा मोहन मेहरोत्रा के घर रुके। अगले दिन सुबह महिला अधिवेशन में महिलाओं को चरखा चलाने और आत्मनिर्भर बनने की शिक्षा दी। उसके बाद रामलीला मैदान में सभाकर एकता की शिक्षा दी। यहां पर उनकी दरियादिली देख लोग उनके और भी दीवाने हो गए। सम्मान के दौरान उन्हें साफा भेंट किया जाने लगा। इसी दौरान वे किसी गांव में भ्रमण पर निकले तो देखा कि महिलाओं के कपड़े फटे और मैले थे। इस दशा पर उन्हें बड़ा दुख हुआ और अपने साफे के कपड़े को महिलाओं में वितरित किया। इसे लेकर चरखा चलाने और सूत कातने की पहल भी की।

जब डॉ बनर्जी ने पहना दिया माला

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का देशप्रेमी ही नहीं अंग्रेजी शासन भी मुरीद था। पहली बार जब वे आए तो भंडारी स्टेशन पर तत्कालीन सिविल सर्जन डॉ. बनर्जी ने भी माल्यार्पण कर सम्मान किया। इसके कारण डॉ बनर्जी से अंग्रेजी सरकार ने जबाब-तलब किया था। बापू के भाषण से महिलाएं बहुत प्रभावित हुई थीं।


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