आतंकियों ने बदला पैंतरा, जमानदार देने को हैं तैयार
श्रमजीवी विस्फोट कांड के बांग्लादेशी आरोपी हिलाल एवं नफीकुल विश्वास कड़ी सुरक्षा में कोर्ट में पेश किए गए। एडीजीसी अनूप शुक्ला ने बताया कि दोनों आरोपितों ने कहा कि वे बहस के पूर्व जमानतदार देने को तैयार हैं। उनके अधिवक्ता ने बिना उनसे पूछे पिछली तिथि पर दरखास्त दे दिया कि उनके पास जमानतदार नहीं है और उनका व्यक्तिगत बंधपत्र स्वीकार किया जाए। हिलाल पर ट्रेन में बम रखने का एवं नफीकुल पर विस्फोट कांड में सहयोग का आरोप है।
जागरण संवाददाता, जौनपुर: श्रमजीवी विस्फोट कांड के बांग्लादेशी आरोपित हिलाल एवं नफीकुल विश्वास कड़ी सुरक्षा में सोमवार को कोर्ट में पेश किए गए। एडीजीसी अनूप शुक्ला ने बताया कि दोनों आरोपितों ने कहा कि वे बहस के पूर्व जमानतदार देने को तैयार हैं। उनके अधिवक्ता ने बिना उनसे पूछे ही पिछली तिथि पर प्रार्थना पत्र दे दिया कि उनके पास जमानतदार नहीं हैं और उनका व्यक्तिगत बंधपत्र स्वीकार किया जाए। हिलाल पर ट्रेन में बम रखने का एवं नफीकुल पर विस्फोट कांड में सहयोग का आरोप है।
वहीं अधिवक्ता श्याम शंकर ने कहा कि दोनों से पूछा गया था और दोनों ने कहा कि उनके पास जमानतदार नहीं हैं इसलिए दोनों की ओर से व्यक्तिगत बंधपत्र का प्रार्थना पत्र दिया गया जिसे कोर्ट ने स्वीकार भी कर लिया। अधिवक्ता के अनुसार अब दोनों अपनी बात से मुकर रहे हैं। प्रश्न यह भी उठता है कि बांग्लादेशी आतंकी के पास जमानतदार आए कहां से। एक तरफ वे कहते हैं कि उनका यहां कोई नहीं है और दूसरी तरफ लखनऊ, आजमगढ़ और यहां के अधिवक्ता उनके मुकदमे की पैरवी कर रहे हैं जबकि शुरू में आरोपितों ने बताया था कि उनका कोई अधिवक्ता नहीं है तब उनके लिए सरकारी खर्च पर न्याय मित्र नियुक्त किया गया। वर्तमान में उनके न्याय मित्र ताजुल हसन हैं लेकिन आरोपितों ने अपने व्यक्तिगत खर्च पर तीन अन्य महंगे वकील पैरवी के लिए नियुक्त किया है। वकीलों के खर्च की फंडिग कौन करता है यह पर्दे के पीछे है। गत 28 जुलाई 2005 को हरपालगंज के पास श्रमजीवी एक्सप्रेस ट्रेन में बम विस्फोट के मामले में बांग्लादेशी आतंकवादी रोनी उर्फ आलमगीर एवं ओबैदुर्रहमान को फांसी की सजा सुनाई गई थी जिसके खिलाफ अपील हाईकोर्ट में लंबित है। सजायाफ्ता दोनों आतंकवादियों ने हाईकोर्ट में महंगे वकील कर रखे हैं। पूर्व में अपने अधिवक्ता को लिखी चिट्ठी में आतंकवादी रोनी ने खर्च की चिता न करने एवं कट्टरपंथी संगठन से जुड़े लोगों द्वारा पैरवी करवाने का उल्लेख किया था।