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उपेक्षा, महंगाई संग जीएसटी की मार, ले डूबा दरी का कारोबार

मुगलकाल से ही जनपद में कालीन के साथ-साथ दरी का कारोबार हो रहा था, ¨कतु दु‌र्व्यवस्था, बिचौलियां, महंगाई, जिम्मेदारों की उदासीना के बाद जीएसटी की मार से यह पहचान खोती गई। नतीजन वेंटीलेटर पर चल रहे इस कारोबार को योगी सरकार ने आक्सीजन देने का काम किया है। वन डिस्ट्रिक वन प्रोडक्ट के तहत विकास के पथ पर दौड़ रहे जौनपुर को दरी उद्योग से राष्ट्रीय एवं अंर्तष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने की कोशिश की जा रही है, जिसकी शुरूआत भी की जा चुकी है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 12 Aug 2018 11:10 PM (IST)Updated: Sun, 12 Aug 2018 11:30 PM (IST)
उपेक्षा, महंगाई संग जीएसटी की मार, ले डूबा दरी का कारोबार
उपेक्षा, महंगाई संग जीएसटी की मार, ले डूबा दरी का कारोबार

जागरण संवाददाता, जौनपुर : मुगलकाल से ही जनपद में कालीन के साथ दरी का कारोबार हो रहा था ¨कतु बिचौलिया, महंगाई, जिम्मेदारों की उदासीनता संग जीएसटी की मार से यह खुद का पहचान खोता गया। नतीजतन वेंटीलेटर पर चल रहे इस कारोबार को अब योगी सरकार ने आक्सीजन देने का काम किया है। वन डिस्ट्रिक वन प्रोडक्ट के तहत विकास के पथ पर दौड़ रहे जौनपुर को दरी उद्योग से राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने की कोशिश की जा रही है, जिसकी शुरुआत भी की जा चुकी है।

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बताया जाता है कि भारत से कालीन निर्यात में 70 फीसदी हिस्सा भदोही बेल्ट का है। यहां से सालाना करीब 1800 करोड़ रुपये का निर्यात होता है। जौनपुर की कालीन व दरी, इटली के मोरानों के खिलौनों, स्वरोस्कों के क्रिस्टल की तरह कालीन ने भदोही को पूरे विश्व में पहचान दिलाई। भदोही के कारोबारियों की इस सफलता में मुगलकाल से ही खासकर मड़ियाहूं क्षेत्र के आस-पास के गांवों के मजदूरों का हाथ है। इनमें विशेष रूप से रामपुर, रामनगर, सीतम सराय, जमालपुर गांव आदि शामिल हैं, जहां के 200 परिवार के करीब एक हजार लोग इस व्यवसाय से जुड़े हैं, जो यहां कालीन के साथ-साथ दरी तैयार करते हैं। ये भदोही से ही कच्चा माल लाते हैं। यहां तैयार कराने के बाद उसे उन्हीं को बेचते हैं। इसके एवज में प्रति मीटर के हिसाब से 50 रुपये तक का फायदा होता है, लेकिन समय के साथ-साथ यह कारोबार दम तोड़ता जा रहा है। वजह बुनकरों को बिजली समस्या, कम मजदूरी, प्रशिक्षण का अभाव और बिचौलियों की समस्याओं से दो-चार होना पड़ रहा था। सरकारी स्तर से भी इन्हें कोई लाभ नहीं मिल रहा था। नतीजतन बुनकर धीरे-धीरे दूसरे कामों में लग गए। अब ये अपनी नई पीढ़ी को इस कारोबार से दूर ही रखने लगे। इसी बीच महंगाई के दौर में जीएसटी लागू किए जाने के बाद इनकी दिक्कतें और बढ़ गईं। हालांकि अब सरकार ने वन डिस्ट्रिक, वन प्रोडक्ट के तहत जौनपुर से दरी उद्योग को बढ़ावा देने का निर्णय लिया है, जिसका शुभारंभ कर दिया गया है। इससे दरी बुनने में लगे बुनकरों और उसके कारोबारियों में अच्छे दिन आने की उम्मीद जगी है, जिसे अब देखना है कि यह उम्मीद धरातल पर दिखेगी या फिर दावे और फाइलों तक ही सीमित रह जाएगी। बिचौलियों की दखलअंदाजी और बिजली कटौती से ज्यादा दिक्कत

दस साल का आंकलन करें को दरी उद्योग दिनों-दिन बंद खराब स्थिति में पहुंचा। इस वजह से आज बुनकर मुफलिसी में जीवन गुजारने को विवश हैं। इसके कई कारण बताए जाते हैं, जिनमें बाजार की मांग के हिसाब से प्रशिक्षण नहीं मिलना, ऋण की अनुपलब्धता प्रमुख रूप से शामिल है, बिजली की पर्याप्त व्यवस्था न होने के साथ-साथ कारोबारियों व बुनकरों के बीच बिचौलियों की दखलअंदाजी प्रमुख हैं। इसके चलते उनके लाभ में कटौती हो जाती है। इस वजह से जनपद में यह व्यवसाय दम तोड़ रहा है। ऐसे में यदि सरकार की नजर-ए-इनायत हो गई तो बात बन सकती है, लेकिन इसके लिए कालीन उद्योग को व्यापार शुरू करने के लिए जिला उद्योग कार्यालय व अन्य साधनों के माध्यम से आसान दर पर ऋण उपलब्ध कराना होगा। इस प्रयोग से निश्चित तौर पर यहां की स्थिति बदल सकती है लेकिन कालीन को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त बिजली की भी व्यवस्था करनी होगी। सरकार के इस पहल से आस जगी है। सीतापुर में लगी मशीन ने किया धंधा को मंदा

दरी और कालीन की दुनिया में पहले तो जनपद ने भी भदोही के साथ अलग स्थान बना लिया, ¨कतु महंगे कच्चा माल, बिजली-सड़क और बढ़े टैक्स के अलावा बिचौलियों की दखलअंजादी के कारण हुए बुनकरों के शोषण ने उनके हौसले को कम कर दिया। कालीन कारोबार से जुड़े लोग बताते हैं कि जिले में इस व्यवसाय को सीतापुर में लगी मशीन ने मंदा कर दिया है। वजह यहां कालीन बनाने में एक बुनकर पर प्रतिदिन 200 रुपये खर्च दिया जाता है तो वहीं सीतापुर में इस कार्य को कम कीमत में कर लिया जाता है, जिससे यहां के बुनकरों को काम और दाम नहीं मिल पाता है। इसके बाद टैक्स आदि ने रही सही कसर पूरा कर दिया। महंगाई बढ़ी पर नहीं बढ़ी मेहनत के हिसाब से मजदूरी

दरी बुनकरों की हालत दिनों-दिन खस्ताहाल होती जा रही है। मेहनत के हिसाब से मजदूरी न मिलने की वजह से बहुत से कारीगरों का मोहभंग हो चुका है। वह दूसरे व्यवसाय को अपने जीवकोपार्जन का जरिया बना लिए हैं या बना रहे हैं। बुनकरों का कहना है कि एक तरफ जहां अन्य मजदूरों की दिहाड़ी मजदूरी 1 दिन में 400 से 500 रुपये तक है, वहीं पर इस व्यवसाय में लगे हुए मजदूरों को पूरे दिन में मात्र 200 रुपये की मजदूरी मिलती है। महंगाई के इस दौर में

इतनी कम मजदूरी के मिलने से परिवार का खर्चा चलाना मुश्किल होता जा रहा है, जिसकी वजह से मजदूरों का इस व्यवसाय से मोह भंग होता जा रहा है। सरकार की उपेक्षा के चलते व्यवसाय हुआ ठप

दरी कारोबारियों ने कहा कि अगर सरकार समय रहते इस पर ध्यान देती तो निश्चित ही दरी उद्योग जिले में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता, लेकिन सरकार की उपेक्षा के चलते यह उद्योग दिन-ब-दिन ठप होता जा रहा है। निर्यात व उत्पाद शुल्क आदि की वृद्धि होने से इसकी लागत में और बाजार की कीमतों में भारी अंतर आने लगी। इसकी वजह से हाथ की बनी हुई दरी की मांग में कमी आ गई, जबकि मशीनों से बनी हुई दरी सस्ती होने की वजह से बिक रही है।

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10 वर्ष से दरी के काम में आई काफी गिरावट

पिछले 10 वर्ष से दरी के काम में काफी गिरावट आई है। 10 वर्ष पूर्व दरी बुनकरों को जो मजदूरी मिलती थी वही आज भी मिलती है। सभी वस्तुओं का रेट तो बढ़ा, लेकिन बुनकरों की मजदूरी नहीं बढ़ी। इसके चलते बुनकर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पा रहे। मजबूरी में दरी बुनने का काम छोड़कर लोग महानगरों की तरफ पलायन कर रहे हैं, क्योंकि इसके अलावा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दूसरा विकल्प नहीं, लेकिन अब सरकार के इस निर्णय से कुछ उम्मीद जगी है, देखिए क्या होता है।- शाहिद अली, बुनकर

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जीएसटी से और बढ़ गई दिक्कत

हम गरीब बुनकर जो कच्चा माल कम रेट में खरीदते हैं वही कच्चा माल जीएसटी लगने के कारण हमें अधिक रेट में मिलने लगा। दरी तैयारी करने के बाद हम बड़े व्यवसायी के पास जाते हैं तो वे मूल्य कम लगाते हैं। जीएसटी लगने के कारण भी हमारे इस व्यवसाय पर काफी प्रभाव पड़ा। इस वजह से हमारा यह व्यवसाय आगे बढ़ने की बजाय पीछे हो गया।- शाह आलम, बुनकर

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2005 तक सरकार से मिलती रही सब्सिडी

वर्ष 2005 तक सरकार की तरफ से जरीन दरी निर्यात के लिए सरकार सब्सिडी दी जाती थी, जिसकी वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजारों में यहां की दरी सस्ती पड़ती थी और खूब बिकती थी। क्षेत्रों के बहुत से लोग इस व्यवसाय से जुड़कर दरी का निर्यात करते थे, लेकिन धीरे-धीरे सब्सिडी मिलनी बंद हो गई तो दरी की लागत अधिक आने लगी। इसकी वजह से अंतर राष्ट्रीय बाजार में यहां के दरी की मांग कम होने लगी।-बाबू असरार, बुनकर सरकार करे सहयोग तो बन सकती है बात

जौनपुर का दरी उद्योग पड़ोस के जिले भदोही के प्रभाव में हमेशा से रहा है। यहां पर जो भी दरियां बनाई जाती रही, उनमे प्रयुक्त होने वाला कच्चा माल भदोही से ही आता रहा है, लेकिन मेहनत के हिसाब से मजदूरी नहीं मिल पाती है। किसी तरह परिवार को काम चल रहा है। अगर सरकार चाहें तो अपने जिले में ही कच्चे माल की व्यवस्था कराएं और यहां बनी हुई दरियों को देश के अन्य हिस्सों एवं विदेशों में बेचे जाने की प्रक्रिया सरल कर दें तो इसकी सूरत बदल सकती है। - अब्दुल सलाम, बुनकर

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जिले में ओडीओपी योजना में दरी उत्पाद चयनित है। कार्यक्रम की औपचारिक शुरूआत लखनऊ के कार्यक्रम में हो चुकी है। इसके लिए जिले स्तर पर भी कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसे राष्ट्रीय एवं अंतर राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए हर संभव प्रयास किया जाएगा।- अर¨वद मलप्पा बंगारी, जिलाधिकारी


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