प्रेम के अभाव में परमात्मा की प्राप्ति संभव नहीं: त्रिभुवन दास
देवरिया कुटी नियार आश्रम के परम संत श्री त्रिभुवन दास जी महराज (उड़िया बाबा) ने श्रद्धालुओं के बीच सत्संग करते हुए रामहि केवल प्रेम पियारा व हरि व्यापक सर्वत्र समाना प्रेम ते प्रकट होंहि मैं जाना जैसी रामचरितमानस की पंक्तियों की तात्विक व्याख्या की।
जागरण संवाददाता, जौनपुर: देवरिया कुटी नियार आश्रम के परम संत श्री त्रिभुवन दास जी महराज (उड़िया बाबा) ने श्रद्धालुओं के बीच सत्संग करते हुए 'रामहि केवल प्रेम पियारा' व 'हरि व्यापक सर्वत्र समाना, प्रेम ते प्रकट होंहि मैं जाना' जैसी रामचरितमानस की पंक्तियों की तात्विक व्याख्या की। उन्होंने कहा कि बिना प्रेम के परम ब्रह्म परमात्मा की प्राप्ति संभव नहीं है। वे आगामी बसंत पंचमी से मड़ियाहूं में होने वाले 11 दिवसीय श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ की तैयारियों में लगे श्रद्धालुओं के बीच शनिवार को बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि तप, योग, ज्ञान विज्ञान एक साधन है जो प्रकृति में रहकर किया जाता हे जबकि परमात्मा प्रकृति से पार है। इसलिए ये सारी चीजें साधन तो हैं लेकिन परम ब्रह्म की प्राप्ति के लिए साध्य नहीं बन सकता। प्रेम परमात्मा की प्राप्ति के लिए विरह व निस्वार्थ ऐसी तड़प है जो प्रभु को अपने वश में कर लेती है। श्री महराज ने महात्मा कबीरदास की वाणी घट-घट में साहेब कर वासा, कहीं प्रकट कहीं गुप्त निवासा की चर्चा करते हुए कहा कि प्रभु कण-कण में है लेकिन प्रकट रूप में उसका साक्षात्कार बिना प्रेम के नहीं हो सकता। परमात्मा के प्रति सच्चे प्रेम का ²ष्टांत देते हुए उन्होंने चित्रकूट में प्रभु श्रीराम व भरत जी के मिलन की बात कही। कहा कि उस समय उन दोनों में से न किसी ने किसी से कुछ कहा न कुछ पूछा। मानो उनके मन की गति शून्य हो गई। यही प्रेम की पराकाष्ठा है। प्रेम में किसी भी प्रकार का स्वार्थ या प्रदर्शन को कोई स्थान नहीं है।