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गए थे परदेश कमाने, लेकर आए मौत

सिकरारा क्षेत्र के छतौली गांव की ¨बद बस्ती में रोजी रोटी के सिलसिले में गुजरात के भुज गए मजदूरों को रोटी के बदले एक-एक कर मौत ही मिली। वे वहां कमाने गए और लाइलाज बीमारी'सिलिकोसिस'को लेकर घर लौटे। जीविकोपार्जन के लिए करीब आठ साल पहले वहां गए लोग बीमारी चपेट में आकर मरते गए। सबसे पहले कुनबे के मौजी इस रोग का शिकार बने। बस्ती का रूप ले चुके एक ही परिवार के पांच घरों में कुल 13 लोग असमय काल के गाल में समा चुके हैं। सभी भुज में पत्थर तोड़ने का कार्य करते थे।

By JagranEdited By: Published: Mon, 18 Feb 2019 10:23 PM (IST)Updated: Mon, 18 Feb 2019 10:23 PM (IST)
गए थे परदेश कमाने, लेकर आए मौत

सतीश ¨सह, जौनपुर :

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सिकरारा क्षेत्र के छतौली गांव की ¨बद बस्ती में रोजी रोटी के सिलसिले में गुजरात के भुज गए मजदूरों को रोटी के बदले एक-एक कर मौत ही मिली। वे वहां कमाने गए और लाइलाज बीमारी 'सिलिकोसिस' को लेकर घर लौटे। जीविकोपार्जन के लिए करीब आठ साल पहले वहां गए लोग बीमारी चपेट में आकर मरते गए। सबसे पहले कुनबे के मौजी इस रोग का शिकार बने। बस्ती का रूप ले चुके एक ही परिवार के पांच घरों में कुल 13 लोग असमय काल के गाल में समा चुके हैं। सभी भुज में पत्थर तोड़ने का कार्य करते थे। दो साल पहले ही पांच साल के अंदर 9 लोग काल के गाल में समा चुके थे। अब 27 जनवरी से 17 फरवरी तक चार नौजवानों की भी मौत हो गई। मातम के साए में जी रही इस बस्ती में अब उनके परिजनों में तीन मुखिया सदस्य के अलावा विधवाएं तथा छोटे-छोटे बच्चे ही शेष बचे हैं। जानकारों की मानें तो पत्थर तोड़ने के कारण इन्हें लाइलाज'सिलिकोसिस'बीमारी हो जा रही है, जिसके कारण सांस फूलना और बलगम आने से भूख न लगने से ये सभी धीरे-धीरे कमजोर होकर दम तोड़ देते जा रहे हैं। पूर्व में हो चुकी नौ मौतों के बाद 20 दिन के अंदर उस बस्ती में 4 युवाओं की मौत ने सनसनी का माहौल बना दिया है। सबसे पहले रोहित (19) 27 जनवरी को उसके बाद चोन्हर (45) फिर अच्छेलाल (26) रोग के चपेट में आ गए। गत सोमवार को उसकी भी मौत हो गई। 6 दिन बाद दीपक (20) ने भी इस बीमारी के चपेट में आकर 17 फरवरी को दम तोड़ दिया। अब पत्थर तोड़कर रोजी रोजी के सिलसिले में जो भी भुज गया उसमें से दीपक मरने वालों में अंतिम युवा था। सभी को एक ही बीमारी चिकित्सकों ने बताया। आँखों आंसुओ का गुबार लिए रामलाल ¨बद, श्यामलाल और लुल्लूर ने बताया कि सब कुछ गवांकर पुणे, वाराणसी और इलाहाबाद तक दवा की। चिकित्सक कहते हैं कि यह बीमारी ठीक होने के कम अवसर रहते हैं। रोजी के कारण वहां भाई और बच्चे गए लेकिन मौत ही मिली। अब तो धन धर्म दोनो ही नहीं बचा। जो भी भुज गया, वह चाहे घर के रहे या नात रिश्तेदार, सभी इसी बीमारी से ग्रस्त होकर असमय चल दिये। अब बच्चों को वहाँ कमाने नही जाने दिया जाएगा। यह हो चुके हैं काल कवलित

मौजी 58 साल, फौजी 55, अतुल 20, सभाजीत 40, विजयी 19, संतलाल 50, बबलू 28, शमला 19, दिनेश 23, रोहित 19 अच्छेलाल 26, दीपक 19 वर्ष, चोंहर 45, लाइलाज बीमारी'सिलिकोसिस'के लक्षण

चिकित्सक डा. ओपी यादव ने बताया कि यह सिलिकोसिस बीमारी होती है। जो लाइलाज है। जो मजदूर पत्थर तोड़ने वाला कार्य करते हैं या तो क्रेशर मशीनों से पत्थर से पाउडर बनाने वाली फैक्ट्रियों में काम करते हैं। उन्हें यह जानलेवा बीमारी होती है। इसमें पहले तो हल्का बुखार आता है। धीरे-धीरे हालत बिगड़ती चली जाती है, फिर रोगी चलने फिरने में असमर्थ हो जाता है। फेफड़े में संक्रमण बढ़ने से इलाज संभव नहीं हो पाता है। घातक बीमारी, कठिन इलाज- सीएमओ

मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. रामजी पाण्डेय का कहना है कि सिलिकोसिस की बीमारी पत्थर के कण के फेफड़े में चिपकने से होती है। ज्यादातर खदान या सीमेंट फैक्ट्री में काम करने वाले ही इसके मरीज होते हैं। फेफड़े से कण का निकलना मुश्किल होता है।


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