सुप्रीम कोर्ट के पांच फैसलों का दिया हवाला, सुनाया दंड
जासं, जौनपुर : विवाहिता की हत्या के मामले में कोर्ट ने मृत्युदंड की सजा सुनाई। इसमें सुप्रीम क
जासं, जौनपुर : विवाहिता की हत्या के मामले में कोर्ट ने मृत्युदंड की सजा सुनाई। इसमें सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला दिया गया। जिसमें विरल से विरलतम मामलों में मृत्युदंड देने की बात कही गई है। शिवाजी बनाम महाराष्ट्र 2009, बेचन ¨सह बनाम पंजाब 1980, इराभद्राप्पा बनाम कर्नाटक 1983, जिसमें सुनियोजित, जान बूझकर, क्रूर तरीके से हत्या करने पर अधिकतम दंड की बात कही गई है। इसके अलावा मच्छी ¨सह बनाम पंजाब 1983, देवेंद्र पाल ¨सह बनाम दिल्ली 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि असहाय महिला, निर्दोष बच्चों व वृद्धों की क्रूरतम, सुनियोजित तरीके से हत्या के मामलों में अधिकतम दंड दिया जाएगा, जो वर्तमान मामले की परिस्थितियों से मेल खाते हैं। इस मामले में भी अभियुक्त के घर में रह रही असहाय महिला को सुनियोजित, क्रूर व जघन्य तरीके से जलाया गया। यहां तक कि जब वह जान बचा कर भागने लगी तब भी अभियुक्त ने उसकी हत्या में कोई कसर नहीं छोड़ी।
फैसले से भाई संतुष्ट, अभियुक्त भड़का
हत्या के मामले में दोषी मनोज मृत्युदंड की सजा सुनाए जाते ही अवाक रह गया। कुछ स्थिर होने पर पूछने पर भड़क गया। कहा कि बिल्कुल गलत फैसला है। मैंने ही मृतका को बचाने के लिए उसे अस्पताल में भर्ती कराया। फैसले के खिलाफ अपील करूंगा। उधर मृतका के भाई अमरजीत ने कोर्ट के फैसले को बिल्कुल सही ठहराया। कहा कि ऐसे जघन्य अपराधी को फांसी ही मिलनी चाहिए। आज मेरी बहन की आत्मा को शांति मिलेगी।
आधा दर्जन से अधिक को फांसी की सजा, लटका सिर्फ एक
दीवानी न्यायालय में अब तक आधा दर्जन से अधिक मामलों में फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है। मड़ियाहूं के रामपुर नद्दी में कटहल के विवाद में आरोपी लाल चंद्र मिश्रा को ही राष्ट्रपति तक राहत नहीं मिली। उसे 1983 में फांसी हो गई। उसने अपनी भाभी और भतीजे की हत्या की थी। कोतवाली के चहारसू चैराहा के निकट स्वतंत्र कुमार बैंकर को 1972 में पिता रामलाल व बहन की गोली मार कर हत्या के मामले में फांसी हुई थी। जो बाद में उम्रकैद में तब्दील हो गई। लाइन बाजार के पचोखर में नाबालिग बच्चे की गड़ासे से गला काट कर हत्या के दोषी जीत बहादुर व मुख्तार को वर्ष 1980 में फांसी की सजा सुनाई गई। उसे राष्ट्रपति ने उम्र कैद में बदल दिया। अपर सत्र न्यायाधीश तृतीय ने सुजानगंज के एक मामले में 1984 में फांसी की सजा सुनाई थी। दोषी गोपाल ने परिवार वालों की हत्या कर दी थी। 30 अक्टूबर 2009 को रामपुर के जमालापुर तिहरा हत्याकांड में आरोपी आलम ¨सह को अपर सत्र न्यायाधीश ने फांसी की सजा सुनाई जो उम्र कैद में तब्दील हो गई। श्रमजीवी कांड के दोषी आतंकवादी रोनी को 30 जुलाई को एवं अब्दुर्रहमान को 31 अगस्त को अपर सत्र न्यायाधीश प्रथम ने फांसी की सजा सुनाई है जो हाईकोर्ट में लंबित है।