अल्ट्रावायलेट सरफेस दस मिनट में खत्म कर देगा कोरोना वायरस
देश में कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने व जनमानस को सुरक्षित रखने के लिए पूर्वांचल विश्वविद्यालय ने पहल शुरू कर दी है। इसके तहत परिसर में संचालित सेंटर फॉर रिन्यूएबल एनर्जी प्रो.राजेंद्र सिंह(रज्जू भइया) संस्थान पूर्वांचल विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक व सहायक आचार्य डा.धीरेंद्र कुमार चौधरी द्वारा एक उपकरण अल्ट्रावायलेट सरफेस डिसइंफेक्टेंट मॉडल बनाया गया है। इस उपकरण से वस्तुओं पर मौजूद कोरोना वायरस को 10 मिनट में खत्म किया जा सकेगा। यह डिवाइस पूर्ण रूप से ऑटोमैटिक है व बाहर से लाए गए किराने के सामानों फल सब्जियों फाइल्स व करेंसी इत्यादि के ऊपर स्थित कोरोना वायरस को प्रभावी रूप से समाप्त करने में कारगर है।
जागरण संवाददाता, जौनपुर : कोरोना के खात्मे के लिए हमारे वैज्ञानिक लगे हैं। हर कोई अपने स्तर से प्रयास कर रहा है। इसी प्रयास में शामिल हो गए हैं पूर्वांचल विश्वविद्यालय में संचालित सेंटर फार रिन्यूएबल एनर्जी, प्रो.राजेंद्र सिंह(रज्जू भइया) संस्थान के वैज्ञानिक व सहायक आचार्य डा.धीरेंद्र कुमार चौधरी। इनके द्वारा अल्ट्रावायलेट सरफेस डिसइंफेक्टेंट नामक एक ऐसा डिवाइस बनाया गया है। जिससे इनका दावा है कि वस्तुओं (घरों में आने वाले सामान) पर मौजूद कोरोना वायरस को दस मिनट में खत्म किया जा सकेगा।
डा. चौधरी कहते हैं कि यह डिवाइस पूर्ण रूप से ऑटोमैटिक है। जो बाहर से लाए गए केराने के सामानों, फल, सब्जियों, फाइल्स व करेंसी इत्यादि के ऊपर स्थित कोरोना वायरस को प्रभावी रूप से समाप्त करने में कारगर है। बताया कि देश के प्रधानमंत्री की समस्या को अवसर में बदलने के मंत्र, स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने एवं आत्मनिर्भर भारत अभियान के आह्वान को दृष्टिगत रखते हुए यह कदम उठाया गया है। कहा कि बहुत ही कम लागत में अल्ट्रावायलेट जर्मीसाइडल इररेडिएशन रेंज का प्रयोग करते हुए अल्ट्रावायलेट सरफेस डिसइंफेक्टेंट को बनाया है। इस तरंग दैर्ध्य पर कीटाणुनाशक गतिविधि अधिकतम होती है। अत: यह उपाय कोरोना को वस्तुओं के ऊपर से नष्ट करने में बहुत ही उपयोगी साबित होगा। बताया कि इससे बाहरी सामानों जैसे तरल पदार्थों को छोड़कर सूखी सामग्री को इस बाक्स में डालकर 10 मिनट के लिए छोड़ दिया जाता है। जिसके बाद सभी सामग्री निकालने पर अल्ट्रावायलेट प्रकाश से सारे वायरस मर जाते हैं। यह डिवाइस अमेरिका के सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) व इंटरनेशनल अल्ट्रावायलेट एसोसिएशन (आइयूवीए) के मानकों के अनुरूप निर्मित की गई है। साथ ही डिवाइस मोशन से संचालित होने के कारण बहुत ही कम बिजली ़खपत पर संचालित होती है। फिलहाल विश्वविद्यालय में करेंगे उपयोग
डा. चौधरी ने बताया कि कुलपति के निर्देश क्रम में अभी एक उपकरण तैयार है। चार से पांच बनाना है। जिसको पहले विश्वविद्यालय के मूल्यांकन में कापियों व प्रशासनिक कार्यालयों में उपयोग होने वाली वस्तुओं को संक्रमण से मुक्त करने के लिए प्रयोग किया जाएगा। इसके बाद आगे के प्रोडक्शन के लिए सोचा जाएगा। ढ़ाई से तीन हजार आ रहा खर्च
इस उपकरण को तैयार करते समय दिमाग में ख्याल आया कि ऐसा यंत्र तैयार किया जाए जो कुछ हद तक सस्ता हो और लोगों के बजट में भी आ सके। इसको तैयार करने में एक से दो दिन का समय लगता है। इसमें 2500 से 3000 रुपये तक खर्च आता है। यह तकनीक भारत के अन्य प्रतिष्ठित संस्थानों जैसे डीआरडीओ, आइआइटी कानपुर द्वारा अलग-अलग रूप में प्रयोग में लायी जा रही है।