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आजादी मिलते ही निकल पड़े थे खुशी के आंसू

जागरण संवाददाता उरई देश की आजादी की 75 वीं जयंती मनाई जा रही है। लोग स्वाधीनता के पर्व को पूरे जोश के साथ मनाने की तैयारी कर चुके हैं। अभी भी कई बुजुर्ग ऐसे हैं जिन्होंने आजादी का पहला दिन देखा था। उनके जेहन में उस दिन की एक-एक बात ऐसी ताजा है जैसे मानो यह सब दो चार दिन पहले की बात हो। बुजुर्ग बताते हैं कि जब देश आजाद हुआ तो खुशी के आंसू निकल पड़े थे।

By JagranEdited By: Published: Sat, 14 Aug 2021 05:37 PM (IST)Updated: Sat, 14 Aug 2021 05:37 PM (IST)
आजादी मिलते ही निकल पड़े थे खुशी के आंसू
आजादी मिलते ही निकल पड़े थे खुशी के आंसू

जागरण संवाददाता, उरई : देश की आजादी की 75 वीं जयंती मनाई जा रही है। लोग स्वाधीनता के पर्व को पूरे जोश के साथ मनाने की तैयारी कर चुके हैं। अभी भी कई बुजुर्ग ऐसे हैं जिन्होंने आजादी का पहला दिन देखा था। उनके जेहन में उस दिन की एक-एक बात ऐसी ताजा है जैसे मानो यह सब दो चार दिन पहले की बात हो। बुजुर्ग बताते हैं कि जब देश आजाद हुआ तो खुशी के आंसू निकल पड़े थे।

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शहर के मोहल्ला पाठकपुरा निवासी ब्रजकिशोर दुबे (89) बताते हैं कि 1947 को जिस दिन देश को आजादी मिली थी वह बेहद खुशी के पल थे। लोगों की आंखों से आंसू निकल पड़े थे। लोग एक दूसरे को बधाई दे रहे थे। घरों में भी अलग ही माहौल था। ढोलक की थाप पर महिलाओं ने गीत गाए। लग रहा था कि कोई त्योहार मनाया जा रहा है। उस दिन पूरी रात लोगों ने जश्न मनाया था। मोहल्ला रामनगर निवासी गंगाराम बाथम (90) ने बताया कि हर किसी को बड़ी बेसब्री से इंतजार था कि कब देश की आजादी की घोषणा की जाएगी। आखिर वह दिन आया तो लोग सड़कों पर निकल पड़े। मिठाई के तौर पर बताशे बांटे जा रहे थे। हर कोई झूमता गाता नजर आया। वह दिन कभी भूल नहीं सकते हैं। उन्होंने बताया कि वह खुद भी अपने मित्रों के साथ शहर में हो रहे जश्न के आयोजनों में शामिल होने के लिए पहुंचे थे। उस दिन घर आने का मन ही नहीं हो रहा था। हालांकि देर रात तक घर लौट आए लेकिन घर में किसी ने कुछ नहीं कहा। उसकी भी वजह थी कि घर के पुरुष मोहल्ले के लोगों के साथ रात में आजादी की गाथा की चर्चा कर रहे थे। युवाओं के सपनों का भारत

देश को आजाद हुए 74 वर्ष बीत गए। 75 वीं जयंती हम मनाने जा रहे हैं। इन वर्षों के अंतर में देश ने बहुत तरक्की कर ली है। विकास की रफ्तार रुकने वाली नहीं है। युवा वर्ग इसके लिए संकल्पित है।

गोविद दुबे, समाजसेवी - देश में सुविधाओं के नाम पर सबकुछ है। अब विकास की किरणें शहर ही नहीं बल्कि गांवों तक पहुंच चुकी हैं। देश तेजी से तरक्की कर रहा है। उम्मीद है कि हमारा देश दूसरे देशों को पीछे छोड़ देगा।

आवेश यादव, समाजसेवी


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