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कदालों में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़े कदम, 320 लाख मीट्रिक टन का लक्ष्य तय

- आइआइपीआर 29वें स्थापना दिवस पर बोले भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक - अभी तक

By JagranEdited By: Published: Sun, 05 Sep 2021 11:36 PM (IST)Updated: Sun, 05 Sep 2021 11:36 PM (IST)
कदालों में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़े कदम, 320 लाख मीट्रिक टन का लक्ष्य तय
कदालों में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़े कदम, 320 लाख मीट्रिक टन का लक्ष्य तय

- आइआइपीआर 29वें स्थापना दिवस पर बोले भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक

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- अभी तक देश ने इस वर्ष सर्वाधिक 257.02 लाख मीट्रिक टन दाल का किया उत्पाद

जागरण संवाददाता, कानपुर : देश में जितनी दाल खाई जाती है उतने उत्पादन पर अब हम पहुंचने लगे हैं। इस वर्ष देश में 257.02 लाख मीट्रिक टन दाल का किया उत्पाद हुआ है जो एक रिकार्ड है। अब दाल के आयात को पूरी तरह खत्म करने के लिए 2030 तक 320 लाख मीट्रिक टन उत्पादन का लक्ष्य तय किया गया है। यह बातें भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक व डिपार्टमेंट आफ एग्रीकल्चर रिसर्च एंड एजूकेशन के सचिव डा. त्रिलोचन महापात्रा ने भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान (आइआइपीआर) के 29वें स्थापना दिवस पर कहीं।

वर्चुअल स्थापना दिवस समारोह में उन्होंने कहा कि दलहन क्रांति के साथ प्रोटीन क्रांति की ओर भी हम आगे बढ़ रहे हैं। यह दलहन संस्थानों की बड़ी उपलब्धि है। अभी एक हेक्टेयर में आठ सौ से एक हजार किलो उपज होती है जबकि इसे 15 सौ किलो तक ले जाने का लक्ष्य है। आइआइपीआर के निदेशक प्रो. एनपी सिंह ने बताया कि देश में 28 से 30 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल में दाल की पैदावार होती है। नई-नई किस्मों से इसी क्षेत्रफल में पैदावार बढ़ाए जाने पर दलहन वैज्ञानिक काम कर रहे हैं। अभी हम 25 से 30 लाख मीट्रिक टन दालों का आयात करते हैं लेकिन जल्द ही हम अपनी तकनीकी व उन्नतशील प्रजातियों से यह बंद कर देंगे। आइआइपीआर ने इस वर्ष 18 प्रजातियां निकाली हैं। इनमें चार चना, चार मटर, तीन उड़द, तीन मूंग, दो अरहर व दो मसूर की हैं। इनमें चने की दो प्रजातियां ऐसी हैं जो बायोटेक के तहत बिल्कुल नई तकनीक से निकाली गई हैं। इनमें एक प्रजाति सूखे से लड़ने में कारगर है जबकि दूसरे में उकठा रोग का असर नहीं होता है। आइसीएआर के उपमहानिदेशक (फसल विज्ञान) डा. तिलक राज आरशर्मा ने बताया कि हमें ऐसी प्रजातियों की तलाश करनी होगी जिससे किसानों को पैदावार के दौरान उत्पादन लागत कम से कम लगे। यूनिवर्सिटी वेस्टर्न आस्ट्रेलिया पर्थ स्थित कृषि संस्थान के निदेशक कंदमबोट सिद्दीक ने कहा कि जमीन में फास्फोरस की अच्छी मात्रा होती है। ऐसी वैराइटी तैयार करने की जरूरत है जो अपनी पैदावार के लिए अधिक से अधिक फास्फोरस का इस्तेमाल जमीन से कर सके। -----------------

खाद्य प्रसंस्करण व कृषि उद्योग स्थापित करेंगे युवा

आइआइपीआर के स्थापना दिवस पर परिसर में तकनीकी डिसिमिनेशन एंड कम्युनिकेशन सेंटर का उद्घाटन किया गया। इस सेंटर में एग्रीकल्चर बिजनेस इंक्यूबेटर व दलहन हाट बनाया है। यह युवाओं को उद्यमिता स्थापित करने में उनकी मदद करेगा। वह यहां पर खाद्य प्रसंस्करण व कृषि उद्योग स्थापित करने के तरीके सीख सकेंगे।


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