कभी ठहरती थीं सेना की टुकड़ियां, अब जलभराव
संवाद सहयोगी, कालपी : नगर के बीचोंबीच बाजार में स्थित सैनिक पड़ाव पर कभी सेना की टुकड़िय
संवाद सहयोगी, कालपी : नगर के बीचोंबीच बाजार में स्थित सैनिक पड़ाव पर कभी सेना की टुकड़ियां ठहरती थीं। अब यह स्थान दुर्दशाग्रस्त नजर आ रहा है। मैदान में जलभराव हो गया है। सड़ांध की वजह से आसपास रहने वाले परेशान हैं।
नगर के टरननगंज मोहल्ले में राजमार्ग किनारे के मैदान को सैनिक पड़ाव कहा जाता है। देश की आजादी से पहले और उसके बाद भी यहां पर सेना की टुकड़ियां रुका करती थीं। उसके बाद बस स्टैंड से भी संचालित होता रहा। हालांकि अब इसकी पहचान नुमाइश मैदान के रूप में हैं। इस समय यह मैदान विशाल तालाब में तब्दील नजर आ रहा है। यहां पिछले दिनों हुई बारिश का पानी भर गया है। बारिश से पूर्व इस मैदान पर पालिका का कूड़ा डाला जाता था। बारिश के बाद यह कूड़ा मैदान में हुए जलभराव में तैर रहा है जिससे उठने वाली दुर्गंध मैदान के आसपास निवास करने वालों को बेहाल कर रही है। बृजेश ¨सह, सुरजीत ¨सह, अतुल मिश्रा, कुलदीप, कपिल शैलू ¨सह ने बताया कि पिछले डेढ़ दशक से इस मैदान का यही हाल है। बारिश होते ही यह मैदान तालाब बन जाता है क्योंकि जलनिकासी की कोई व्यवस्था नही है। एक ओर पालिका ने जलनिकासी ध्यान में न रखते हुये सड़क बनवा दी दूसरी ओर समाज कल्याण विभाग का छात्रावास बना दिया गया जिससे जलनिकासी कोई जगह नहीं बची। घरों और बाजारों से निकलने वाला कूड़ा भी पालिका द्वारा यहीं डलवाया जाने लगा। जिससे स्थिति और भी खराब हो गई।
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ऐतिहासक महत्व रखता मैदान
रामसनेही ओमरे, जयनरायण पांडेय, शिव ¨सह, सुरेश साधू ने बताया कि मुगलकाल में जब जल यातायात ही आवागमन का मुख्य साधन था। तब यमुना नदी से आवागमन नाव के माध्यम से होता था। सेना नदी पार करने के बाद इसी विशाल मैदान में अपना पड़ाव जमाती थी। फिर यहीं से मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र व दक्षिण भारत के राज्यों को जाती थी। अंग्रजों के समय जब रेलवे पुल का निर्माण हुआ तब टरननगंज राजमार्ग ही मुख्य मार्ग था। उस समय भी यह सैनिक पड़ाव मैदान में अंग्रेजी सेनाएं ठहरती थीं। 60 के दशक में भारतीय सेना यमुना पार करने के बाद इसी मैदान पर अपना डेरा जमाती थी। 80 के दशक से इस मैदान में बस स्टाप बनाया गया। जहां से रोडवेज व प्राइवेट बसें चलती थी। प्रशासनिक उपेक्षा के कारण यह मैदान कूड़े के ढेर व जलजमाव का एकमात्र स्थान रह गया। कुछ हिस्से में समाज कल्याण विभाग ने लोगों के पट्टे कर इस ऐतिहासिक मैदान का स्वरूप ही बदल दिया।
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