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गली-गली 'अयोध्या', वन-वन विचरे प्रभु श्रीराम

विमल पांडेय उरई श्रीराम लीला जीवन के

By JagranEdited By: Published: Fri, 16 Oct 2020 11:28 PM (IST)Updated: Fri, 16 Oct 2020 11:28 PM (IST)
गली-गली 'अयोध्या', वन-वन विचरे प्रभु श्रीराम
गली-गली 'अयोध्या', वन-वन विचरे प्रभु श्रीराम

विमल पांडेय, उरई : श्रीराम लीला जीवन के श्रेष्ठ आदर्शो का सोपान है। यह मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के चरित्र को आम लोगों तक पहुंचाने का काम करती है। हालांकि समय के साथ श्रीराम लीला के मंचन का तौर- तरीका बदल रहा है। देश ही नहीं बल्कि विदेश तक जालौन जिले के कोंच की श्रीराम लीला चलायमान श्रीराम लीला के रूप में अपना स्थान बनाती है। यहां रामलीला एक स्थान पर स्थायी रूप से नहीं होती है। गाड़ियों में सजाए गए रावण और मेघनाद के पुतले दौड़ाए जाते हैं। युद्ध का सजीव चित्रण लीला में किया जाता है। लंका दहन का भी विशेष आकर्षण रहता है।

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इन तमाम खूबियों की वजह से कोंच की रामलीला की प्रसिद्धि दूर-दूर तक है। रामलीला के दौरान यहां गली-गली में अयोध्या जीवंत हो उठती है। 168 वें वर्ष में प्रवेश कर चुकी कोंच की श्रीराम लीला में हर मंचन किसी नियत स्थान के बजाय आसपास के बाग, मंदिर और सरोवर में होता है। इस मंचन को प्रकृति से जोड़ने की कोशिश की जाती है। इनमें जैसे वन गमन का दृश्य जंगल के रूप में तो सरयू नदी का दृश्य नदी किनारे कराया जाता है।

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यह लीलाएं होती हैं चलायमान

राम का सीता-लक्ष्मण के साथ सरयू पार गमन, मारीच वध और रावण-जटायु युद्ध व दशहरे की लीलाएं खुले में ही होती हैं। यह परंपरा सौ वर्षो से अनवरत चल रही है।

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विद्वानों की जुबानी

कोंच की रामलीला अंतरराष्ट्रीय पटल पर पहुंची है। यहां मैदानी लीलाओं में राम के सरयू पार उतरने की लीला ऐतिहासिक सागर तालाब पर होती है। तालाब में बाकायदा नाव डाली जाती है जिस पर राम, सीता, लक्ष्मण को बैठाकर केवट का अभिनय कर रहा पात्र उस पार ले जाता है।

-महेश पांडेय,

वरिष्ठ साहित्यकार

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बदलते इस दौर में कोंच की रामलीला की जीवंतता देखते बनती है। यहां की रामलीला को अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन के मानचित्र पर शामिल कराया जा सकता है। समाज के मूल्यों की रक्षा करने वाली श्रीराम लीला जन-जन तक पहुंच रही है।

-ए के श्रीवास्तव

पूर्व प्राचार्य, प्रोफेसर दयानंद वैदिक महाविद्यालय


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