फाइलेरिया पर नियंत्रण करने में स्वास्थ्य विभाग नाकाम
जागरण संवाददाता, उरई : जिले में घातक बीमारी फाइलेरिया पर अंकुश लगाने में स्वास्थ्य विभाग न
जागरण संवाददाता, उरई : जिले में घातक बीमारी फाइलेरिया पर अंकुश लगाने में स्वास्थ्य विभाग नाकाम साबित हो रहा है। यह मच्छर के काटने से होने वाला एक संक्रामक रोग है, जिसे देशी भाषा में हाथी पांव के नाम से भी जाना जाता है। मलेरिया विभाग को ही फाइलेरिया पर नियंत्रण की जिम्मेदारी दी गई है, परंतु विभाग मच्छरों को खत्म करने के लिए संक्रमित क्षेत्रों में फा¨गग कराने पर ध्यान नहीं देता, जिसकी वजह से मलेरिया व फाइलेरिया दोनों का खतरा बना रहता है।
वैसे दावा है कि स्वास्थ्य विभाग मॉस ड्रग एडमिनिस्ट्रीएशन (एमडीए) के तहत जनजागरूकता के साथ ही घर-घर जाकर दवा मुफ्त मुहैया कराता है। इसके तहत सरकार द्वारा इसकी दवा साल में एक बार घर-घर जाकर मुफ्त दी जाती है। इसके लिए दवा की अलग-अलग खुराक भी तय की गई है। इसके परजीवी स्वस्थ शरीर में भी पलते हैं, इसलिए अभियान के तहत एक निर्धारित अवधि और मात्रा में सभी का दवा खाना जरूरी है। इसके बावजूद फाइलेरिया से ग्रसित मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल तक 1162 मरीज फाइलेरिया से ग्रसित थे। उनमें 106 मरीजों के दोनों हाथों, 615 मरीजों के दोनों पैरों, 13 महिला को स्तन में व 428 पुरुषों के अंडकोष में फाइलेरिया हुआ।
फाइलेरिया के लक्षण
सामान्यत: तो इसके कोई लक्षण स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देते हैं।
बुखार, बदन में खुजली तथा पुरुषों के जननांग और उसके आस-पास दर्द और सूजन की समस्या दिखाई देती है।
पैरों व हाथों में सूजन, हाथी पांव और हाइड्रोसिल (अंडकोषों का सूजन) के रूप में भी यह समस्या सामने आती है।
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संयुक्त निदेशक, फाइलेरिया डा. वीपी ¨सह का कहना है कि उम्र के हिसाब से इसकी दवा दी जाती है। दो साल से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और गंभीर रोगियों को यह दवा नहीं खिलाई जाती है। डीईसी की गोली को खाली पेट नहीं खाना चाहिए और अल्बेंडाजोल की गोली को चबाकर खाना चाहिए। इसके साथ ही इन दवाओं को स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों के सामने ही खाना होता है। फाइलेरिया की रोकथाम के लिए लोगों को भी जागरूक होना पड़ेगा।