कंडों की होली जलाकर पर्यावरण संरक्षण में दे सकते योगदान
जागरण संवाददाता उरई बिगड़ता पर्यावरण हर किसी के लिए चिता का विषय है। लगभग रोज ही ि
जागरण संवाददाता, उरई : बिगड़ता पर्यावरण हर किसी के लिए चिता का विषय है। लगभग रोज ही किसी न किसी रूप में वातावरण में प्रदूषण फैलता है। होली के त्योहार पर होलिका दहन से भी पर्यावरण को नुकसान पहुंचने की संभावना रहती है। खास तौर पर कीमती लकड़ी होलिका दहन में स्वाहा हो जाती है। अगर लोग छोटी सी कंडों की होली जलाएं तो पर्यावरण के लिहाज से काफी अच्छा हो सकता है।
शहरों में होलिका दहन अक्सर चौराहों पर किया जाता है। लोग कई दिन पहले से चौराहों पर लकड़ी एकत्र करना शुरू कर देते हैं। भारी भरकम होली जलाने से बड़ी मात्रा में धुआं निकलता है जो वातावरण में फैलता है। कीमती लकड़ी का नुकसान अलग से होता है। लोग पेड़ पौधों को काटकर होली में डालते हैं। पर्यावरण के लिए पेड़ पौधे कितने महत्वपूर्ण हैं यह बात सभी को मालूम है। इसके साथ ही होली जलाने से सड़कों को भी क्षति पहुंचती है। सड़क का तारकोल बह जाता है जिससे बड़े गड्ढे हो जाते हैं। यह भी एक तरह का नुकसान है। अगर लोग कंडों की होली जलाएं तो कीमती लकड़ी बचाई जा सकती है। साथ ही पर्यावरण के लिए काफी मुफीद साबित होगी।
पांच हजार क्विंटल के करीब दल जाती लकड़ी :
शहर में लगभग पचास स्थानों पर होलिका दहन तो किया ही जाता है। अगर मान लिया जाए कि एक होलिका में तीन सौ क्विटल लकड़ी डाली जाती है तो इस लिहाज से पांच हजार क्विटल लकड़ी जलकर खाक हो जाती है। साथ ही पेड़ों की डाल आदि भी लोग काटकर डालते हैं।
सड़कों को लाखों का नुकसान :
होलिका दहन के स्थान पर सड़क खराब होना स्वाभाविक है। लोक निर्माण विभाग प्रांतीय खंड के अधिशाषी अभियंता अभिनेष कुमार की मानें तो नगरीय क्षेत्रों में पंद्रह से बीस लाख रुपये ही क्षति की संभावना रहती है। पर्यावरणविदों की राय
- होलिका दहन के लिए कंडों का विकल्प हर लिहाज से ठीक है। इससे काफी लकड़ी बचाई जा सकती है। पेड़ पौधों को भी नुकसान नहीं पहुंचेगा।
अनिल सिह, निदेशक, परमार्थ समाजसेवी संस्था - अगर पर्यावरण को संतुलित रखना है तो समाज के हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है कि वह संरक्षण की दिशा में की जाने वाली पहल पर काम करे। पर्यावरण बेहतर है तो स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा।
राजेश पांडेय, प्रवक्ता, दयानंद वैदिक महाविद्यालय