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संस्कारशाला-सामाजिक एकता से ही प्रगति करेगा देश

भारत अपनी विविधता में सामाजिक एकता के लिए प्रसिद्ध है लेकिन विकास के लिए हमें एक-दूसरे के विचारों को स्वीकार करना होगा।

By JagranEdited By: Published: Thu, 07 Oct 2021 01:51 AM (IST)Updated: Thu, 07 Oct 2021 01:51 AM (IST)
संस्कारशाला-सामाजिक एकता से ही प्रगति करेगा देश
संस्कारशाला-सामाजिक एकता से ही प्रगति करेगा देश

हाथरस : भारत अपनी विविधता में सामाजिक एकता के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन विकास के लिए हमें एक-दूसरे के विचारों को स्वीकार करना होगा। हमारे देश में सभी मानते हैं कि उनका धर्म ही सबसे बेहतर है और जो भी वो करते हैं, वही सबसे ठीक है। अपने खुद के फायदे के लिए केवल खुद को अच्छा साबित करने के लिए यहां रह रहे विभिन्न नस्लों के लोग आपस में शारीरिक, भावनात्मक, बहस और चर्चा आदि के द्वारा लड़ते हैं। अपने देश के बारे में एक साथ होकर वो कभी नहीं सोचते हैं। ऐसा करके न सिर्फ वह राष्ट्रीय और सामाजिक एकता पर आघात करते हैं, बल्कि हमारे देश की प्रगति को भी रोकते हैं। इस देश में व्यक्तिगत स्तर के विकास को बढ़ाने के लिए भारत में सामाजिक एकीकरण का बहुत महत्व है और ये इसे एक मजबूत देश बनाता है। पूरी तरह से लोगों को इसके प्रति जागरूक बनाने के लिए 19 नवंबर से 25 नवंबर तक राष्ट्रीय एकता दिवस और राष्ट्रीय एकीकरण सप्ताह अर्थात कौमी एकता सप्ताह के रूप में पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का जन्म दिवस 19 नवंबर को प्रतिवर्ष एक विशेष कार्यक्रम के रूप में मनाया जाता है। भारत विश्व का एक विशाल देश है। इस विशालता के कारण इस देश में हिदू, मुस्लिम, जैन, ईसाई, पारसी तथा सिख आदि विभिन्न धर्मों तथा जातियों व संप्रदायों के लोग रहते हैं। अकेले हिदू धर्म को ही ले लीजिए। यह धर्म भारत का सबसे पुराना धर्म है जो वैदिक धर्म, सनातन धर्म, पौराणिक धर्म तथा ब्रह्म समाज आदि विभिन्न मतों संप्रदायों तथा जातियों में बंटा हुआ है। लगभग यही हाल दूसरे धर्मों का भी है। कहने का मतलब यह है कि भारत में विभिन्न धर्मों, संप्रदायों जातियों तथा प्रजातियों व भाषाओं के कारण आश्चर्यजनक विलक्षणता तथा विभिन्नता पाई जाती है। भारत एक ऐसा देश है जहाँ लोग विभिन्न धर्म, क्षेत्र, संस्कृति, परंपरा, नस्ल, जाति, रंग और पंथ के लोग एक साथ रहते हैं। इसलिए सामाजिक एकता व राष्ट्रीय एकीकरण बनाने के लिए भारत में लोगों का एकीकरण जरूरी है। जहां सामाजिक एकता के द्वारा अलग-अलग धर्मों और संस्कृति के लोग एक साथ रहते हैं, वहां कोई भी सामाजिक या विचारात्मक समस्या नहीं होती। भारत में इसे विविधता में एकता के रूप में जाना जाता है। हालांकि ये सही नहीं है लेकिन हमें (देश के युवाओं को) इसे मुमकिन बनाना है।

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-सविता सिंह, प्रिसिपल,

सेंट मेरी पब्लिक स्कूल, हाथरस


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