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शहीदों की धरती पर जज्बे का तूफान

(कुछ याद उन्हें भी कर लो ) करगिल युद्ध में अपनों को खोया, मगर तैयार कर रहे फौजियों की पौध दर्द में डूबे बोल -करगिल शहीदों के परिजन बोले सरकार करे सख्त कार्रवाई -कलेजे पर पत्थर रखकर हम तैयार करते हैं ¨हदुस्तानी फौज

By JagranEdited By: Published: Mon, 18 Feb 2019 01:29 AM (IST)Updated: Mon, 18 Feb 2019 01:29 AM (IST)
शहीदों की धरती पर जज्बे का तूफान
शहीदों की धरती पर जज्बे का तूफान

हाथरस : करगिल युद्ध में जिन्होंने अपनों को खोया था, उनसे बेहतर शहादत की पीड़ा भला कौन समझ सकता है। पुलवामा में 40 जवानों को खोने का दर्द भी उन्हें भीतर तक झकझोर गया है। यहां के शहीद जवानों के परिजनों की हुंकार है कि सरकार अब निर्णायक कार्रवाई करे, फौज की भरपाई करने वाली पौध तैयार है।

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दैनिक जागरण ने रविवार को जनपद के कुछ ऐसे परिवारों को कुरेदा जिन्होंने करगिल युद्ध में अपनों को खोया था। उनकी पीड़ा छलक पड़ी। बोले, हमने अपने कलेजे के टुकड़े से बिछड़ने का दर्द झेला है। जो दर्द 40 जवानों के परिवार दिल पर पत्थर रखकर सहन कर रहे हैं, उसे हमसे बेहतर भला कौन समझ सकता है। मगर जब बात देश की आन-बान और शान की आती है तो बच्चा-बच्चा कुर्बानी को तैयार रहता है। देश पर कुर्बान होना गर्व की बात है मगर दुश्मन पीठ पीछे वार करता है तो दर्द ज्यादा होता है। परिजनों की पीड़ा

गांव जंगला के उदयवीर ¨सह के भाई सुरेश कुमार करगिल युद्ध में 14 दिसंबर 2001 को शहीद हुए थे। उदयवीर ने कहा कि दो दशक बाद भी परिवार का जख्म ताजा है मगर देश-सेवा का जुनून कम नहीं हुआ है। शहीद का भतीजा सचिन व सतीश सेना में भर्ती की तैयारी कर रहे हैं। बकौल उदयवीर हमारे दर्द को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। सरहद पर शहीद होना फख्र की बात है, लेकिन राजनीति की भेंट हमारे जवान ही क्यों चढ़ें। ------ अलिया के जवाहर ¨सह 23 जनवरी 2007 को शहीद हुए थे। जवाहर ¨सह कुपवाड़ा में दुश्मनों से जंग लड़ते हुए अपना सर्वोच्च बलिदान किया था। बात छेड़ते ही जवाहर ¨सह के भाई नरेश कुमार की आंखें भर आईं। बोले, भाई के शहीद होने का जख्म अभी भी हरा है। जैसे ही सरहद से किसी सैनिक का पार्थिव शरीर तिरंगे में लिपटकर आने की सूचना मिलती है, लगता है फिर से जवाहर ¨सह का पार्थिव शरीर आ रहा है। दुख इस बात का है कि सियासी लोगों को सैनिकों के परिवार की पीड़ा का एहसास नहीं होता। कहा कि आतंकियों ने सीधे देश के मान-सम्मान पर चोट पहुंचाई है, दुश्मनों ने सीधी चुनौती दी है। -----

भूतिया के धर्मवीर ¨सह के भाई सत्यवीर ¨सह भी देश सेवा के दौरान शहीद हुए थे। धर्मवीर ने बताया कि जब भी सरहद से किसी जवान का शव आता है तो आंखे नम हो जाती हैं। जख्म ताजा हो जाते हैं। सत्यवीर की शहादत से गांव के लोग गर्व महसूस करते हैं। शहीद का परिवार होने से लोग सम्मान से देखते हैं। कई गांव के युवा सेना भर्ती की तैयारी कर रहे हैं। वह भी सत्यवीर की तरह देश सेवा करना व देश पर कुर्बाना होना चाहते हैं। -------- 1999 में मास्को घाटी में हुये हमले में क्षेत्र के गांव नगला चौधरी के जांबाज गजपाल ¨सह शहीद हो गए थे। जाट रेजीमेंट में तैनात गजपाल के पिता रामकिशन कश्मीर में हुए आतंकी हमले से आहत हैं। उन्होंने कहा कि युद्ध के दौरान मौत होने से इतनी पीड़ा नहीं होती है, जितनी इन आतंकवादियों के हमलों से। सरकार को आतंक व आतंकवादियों को रोकने को ठोस कदम उठाने चाहिए। पुलवामा में हुआ हमला सीधे देश की अस्मिता व मान सम्मान को चुनौती है। तुरंत बदला लेना चाहिए।


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