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अवैध देसी शराब का हब है सिकंदराराऊ

एटा व कासगंज बार्डर से लगे गांव व जंगलों में बनती है क'ची शराब धंधे का फंडा -पूर्व में कई बार कार्रवाई कर चुकी है पुलिस, हसायन व हाथरस जंक्शन -पुलिस के तगड़े अभियान के बाद कुछ इलाकों में लगी पाबंदी

By JagranEdited By: Published: Mon, 11 Feb 2019 09:43 AM (IST)Updated: Mon, 11 Feb 2019 09:43 AM (IST)
अवैध देसी शराब का हब है सिकंदराराऊ
अवैध देसी शराब का हब है सिकंदराराऊ

संवाद सूत्र, हाथरस : जहरीली शराब से उत्तर प्रदेश में हुई मौतों से अवैध शराब का कारोबार निशाने पर है। हाथरस भी अवैध शराब कारोबार का हब रहा है। कच्ची शराब का निर्माण सिकंदराराऊ क्षेत्र में अधिक होता है। जगह-जगह भट्ठी लगी हैं। हसायन व हाथरस जंक्शन के गांवों तक यह कारोबार फैला है। पुलिस की कार्रवाइयां होती रहती हैं मगर इस धंधे का नेस्तनाबूद नहीं हो पाया।

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जगह-जगह लगी भट्ठी :

तहसील क्षेत्र में कई गांवों में यह कारोबार चलता है। इनमें प्रमुख गांव डंडेसरी, बसई बाबस एवं नगर का मोहल्ला नगला शीशगर, गिहारा बस्ती आदि हैं। कुछ समय पहले तक नगला शीशगर गिहारा बस्ती में बड़े पैमाने पर घर-घर कच्ची शराब बनाने का काम होता था, लेकिन पुलिस के अभियान के बाद काफी हद तक इस पर काबू पाया गया है। ये लोग कच्ची शराब बनाने के लिए यूरिया, नौसादर एवं मिथाइल अल्कोहल का प्रयोग करते हैं, जिसका अनुपात बिगड़ने पर यह जानलेवा बन जाती है। इनसे बनाते हैं शराब :

कच्ची शराब बनाने के लिए कि विधि यहां लगभग सभी को पता है। शराब बनाने के लिए कनस्तर, गैस चूल्हा, गैस सिलेंडर, दो भगोने शराब, लाहन रखने के लिए प्लास्टिक के डिब्बे, यूरिया, नौसादर, गुड़ आदि। गांव में कुछ लोग गैस की जगह भट्ठी लगा लेते हैं। ऐसी बनाई जाती है शराब

गुड़ एवं शीरा से लाहन तैयार किया जाता है। लाहन बना कर उसे डिब्बे में भरकर नौसादर तथा यूरिया डालकर जमीन में गाड़ दिया जाता है। जिसे चार दिन बाद बाहर निकालते हैं। यूरिया का प्रयोग शराब की तीव्रता बढ़ाने के लिए किया जाता है। कच्ची शराब को अधिक नशीली बनाने के चक्कर में यूरिया डाला जाता है। इसकी मात्रा अधिक होने पर शराब जहरीली हो जाती है। अब ऑक्सीटॉसिन का भी प्रयोग किया जाने लगा है। यह भी जानलेवा है। 5 किलो गुड़ में 100 ग्राम ईस्ट एवं यूरिया मिलाकर मिट्टी में गाड़ दिया जाता है। यह लहन उठने पर इसे भट्ठी पर चढ़ाया जाता है। गर्म होने के बाद जब भाप उड़ती है तो उससे शराब उतारी जाती है। इसके अलावा सड़े गले फल जैसे संतरा अंगूर आदि से भी लाहन तैयार किया जाता है। मौत का कारण

कच्ची शराब में यूरिया और ऑक्सीटॉसिन जैसे केमिकल पदार्थ मिलाने की वजह से मिथाइल अल्कोहल बन जाता है। इसकी वजह से ही लोगों की मौत होती है। मिथाइल शरीर में जाते ही केमिकल रिएक्शन तेज होता है। इससे शरीर के अंदरूनी अंग काम करना बंद कर देते हैं। इसकी वजह से कई बार तुरंत मौत हो जाती है। कभी-कभी यह प्रक्रिया लंबी होती है। यह शराब स्लो प्वाइजन के रूप में लोगों के शरीर में काम करती रहती है और धीरे-धीरे मनुष्य के शरीर को कमजोर करके उसे मौत के गर्त में धकेल देती है।

पुलिस की अभियान

के बाद लगी रोक

हाथरस नगर के मोहल्ला श्रीनगर गिहारा बस्ती में लगभग हर घर में कच्ची शराब बनाने का काम होता था। डेढ़ साल पहले यहां तैनात रहे एसआई विपिन यादव ने जागरूकता अभियान चलाया। इसके बाद मोहल्ले के लोगों ने कारोबार को छोड़ने का संकल्प लिया था। इसी प्रकार गांव डंडेसरी, बसई बाबस समेत अन्य ठिकानों पर इंस्पेक्टर मनोज शर्मा के समय कार्रवाई की गईं, जिसके बाद यह अवैध कारोबार काफी हद तक सिमटा है।

अब तक की बड़ी कार्रवाइयां

पुलिस ने 4 नवंबर 2017 को गांव बसई में फैक्ट्री पकड़ी थी। एक युवक को पकड़ा था तथा 22 लीटर कच्ची शराब बरामद की थी। 5अक्टूबर 2018 को गांव डंडेसरी से 64 लीटर कच्ची शराब एवं शराब बनाने के उपकरण तथा यूरिया समेत चार अभियुक्तों को गिरफ्तार किया था। इसके अतिरिक्त 6 सितंबर 2018 को दो अभियुक्तों को 40 पेटी अरुणाचल प्रदेश की 1920 पौवा शराब, नकली रैपर, नकली बोतल यूरिया समेत गिरफ्तार किया था। यहां शराब में मिलावट की जाती थी। हरियाणा व गोवा से शराब तस्करी कर यहां लाई जाती है तथा मिलावट कर आगे बेची जाती है। हाथरस जंक्शन के गांव कुंडा में भी पुलिस ने 3 सितंबर 2018 को जंगल में छापा मार एक कमरे में शराब की फैक्ट्री पकड़ी थी। यहां पर दो ड्रमों में 150 लीटर बनी हुई नकली शराब व 1200 खाली क्वार्टर बोतल मिली थी।


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