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हाथरस जनपद की मिट्टंी बीमार

पोषक तत्वों में भारी कमी आने से घटता जा रहा उत्पादन क्षमता हालात जिले के बासमती चावल की गुणवत्ता प्रभावित होने पर दिल्ली की टीम ने की जांच सुधार के लिए जल्द ही जरूरी कदम नहीं उठाए गए तो हालात भयावह होंगे

By JagranEdited By: Published: Tue, 05 Nov 2019 01:16 AM (IST)Updated: Tue, 05 Nov 2019 01:16 AM (IST)
हाथरस जनपद की मिट्टंी बीमार
हाथरस जनपद की मिट्टंी बीमार

आकाश राज सिंह, हाथरस : जिले की मिट्टी बीमार हो चुकी है। यहां मिट्टी में जरूरी पोषक तत्वों में काफी कमी आई है। इस वजह से कृषि उत्पादन प्रभावित हो रहा है। कृषि वैज्ञानिक इसको लेकर काफी चितित हैं। कृषि अनुसंधान संस्थान दिल्ली के वैज्ञानिकों की जांच में हाथरस जिले की मिट्टी की स्थिति चिताजनक मिली है। मिट्टी की उपजाऊ क्षमता लगातार कम हो रही है। इसके सुधार के लिए जल्द ही जरूरी कदम नहीं उठाए गए तो हालात भयावह होंगे।

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यह हैं हालात

कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो जिले की मिट्टी में जीवाश्म कार्बन की भारी कमी पाई गई है। जीवाश्म कार्बन मिट्टी के लिए वही भूमिका निभाता है, जो मानव शरीर में खून। इसकी कमी से नाइट्रोजन, पोटेशियम, सल्फर, मैगनीज, बोरान जैसे 16 पोषक तत्व कम होने लगते हैं। स्वस्थ मिट्टी में जीवाश्म कार्बन 0.8 पीपीएम (पार्ट पर मिलियन) से अधिक होना चाहिए इस समय यह केवल 0.2 पीपीएम ही है। इसी तरह आयरन, नाइट्रोजन, फास्फोरस का स्तर भी बेहद कम है। इसमें जीवाश्म कार्बन के अति न्यून स्तर के अलावा फास्फेट, सल्फर एवं जिक की मात्रा भी कम पाई गई है। इसके अतिरिक्त लोहा, मैगनीज और बोरान कहीं कम तो कहीं मध्यम स्तर में मिले हैं। बीमार मिट्टी में पैदा होने वाली फसलों का प्रयोग जनस्वास्थ्य पर भी विपरीत असर डालता है। धान की फसल की गुणवत्ता प्रभावित

हाथरस में बासमती धान की अच्छी खासी पैदावार है। सिकंदराराऊ, हसायन व सासनी क्षेत्र में धान की फसल होती है, लेकिन यहां के चावल की क्वालिटी में गिरावट आने पर पिछले माह कृषि अनुसंधान संस्थान दिल्ली की टीम ने हसायन क्षेत्र का निरीक्षण किया। उन्होंने खेतों में जाकर मिट्टी के नमूने लिए। टीम में शामिल वैज्ञानिक एमसी मीणा, तकनीकी अधिकारी सोनू सिंह व स्थानीय वैज्ञानिकों ने सलेमपुर, गोपालपुर, नगला तजना, नत्थू का नगला, बहटा, जाऊ इनायतपुर आदि में जाकर सैंपल भरे थे। टीम ने इन ग्रामों के खेतों में जाकर धान की फसल के साथ मिट्टी व पानी की भी जांच करते हुए उसके नमूने भी लिए थे। इन नमूनों को जांच के लिए प्रयोगशाला भेजा गया। वैज्ञानिकों ने प्राथमिक जांच में पाया है कि धान की गुणवत्ता में कमी कंडुआ आदि रोग के कारण भी आ रही है। इन पोषक तत्वों का होना जरूरी

मिट्टी में पोषक तत्वों को बढ़ाने के लिए उसमें 17 तत्वों का होना बहुत जरूरी है। इनमें नाइट्रोजन, पोटाश, फॉस्फोरस, कॉपर, आयरन, मैग्नेशियम, कैल्सियम, सल्फर, मैगनीज, हाइड्रोजन, आक्सीजन, जिक, मोल्बिडिनम, बोरान आदि शामिल हैं। इनकी कम या ज्यादा मात्रा भी मिट्टी के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। इनमें से कुछ तत्व तो मिट्टी के वातावरण से ही मिल जाते हैं। शेष की पूर्ति के लिए जैविक खाद आदि का प्रयोग किया जा सकता है। जिले में 1971 किसानों को बांटे स्वास्थ्य कार्ड

इस स्थिति से बेपरवाह कृषक पुरानी पद्धति से ही खेतीबाड़ी कर रहे हैं। बीमार मिट्टी का समुचित उपचार नहीं होने से हालात भयावह होते जा रहे हैं। मिट्टी की स्थिति बताने और उसी के अनुरूप खेती करने के लिए किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरित किए जा रहे हैं। जिले में किसानों को अब तक 1971 मृदा स्वास्थ्य कार्ड वितरित किए गए हैं। नुकसान पहुंचा रही रासायनिक खाद

रासायनिक खाद का अत्यधिक प्रयोग मिट्टी को बीमार कर रहा है। कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो खाद के अधिक प्रयोग से मिट्टी का यह हाल हुआ है। इसके लिए किसानों को जैविक खाद प्रयोग करने की सलाह दी जा रही है। आदर्श खाद का अनुपात जरूरी है

फसलों में खाद की उचित मात्रा का प्रयोग जरूरी है। इसमें नाइट्रोजन, पोटाश व कैल्सियम की आदर्श मात्रा को अपनाना चाहिए। इसके अलावा मिट्टी की जांच के लिए करीब छह इंच नीचे की मिट्टी खुरपी या ऑगर से सेंपल के रूप में लेकर प्रयोगशाला किसान लेकर जाएं। बागवानी में सैंपल के लिए डेढ़ फीट नीचे से मिट्टी ली जाती है। इसके लिए कृषि विभाग के अलीगढ़ रोड स्थित प्रयोगशाला में मिट्टी की जांच की जाती है।

मृदा परीक्षण के पैरामीटर इस प्रकार से हैं

पैरामीटर, निर्धारित मानक, जनपद में स्थिति, प्रभाव

पीएच, 6.5 से 8.5, ज्यादा है, जमीन ऊसर होने लगती है

घुलनशील लवण ईसी, 1 से 3 तक, असामान्य है, बीज के अंकुरण पर असर

जैविक कार्बन ओसी, .50 से .80, कम है, पौधों की वृद्धि रुकती है

नाइट्रोजन, 326.50 से 522.9, कम है, फसल की वृद्धि प्रभावित होती है

सल्फर, 10 से 15, कम है, फफूंदी रोग लगता है

जिक, .61 से 1.02, कम है, फसल के विकास पर असर

ऑयरन, 41 से 80, कम है, रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है

कॉपर, .21 से .40, कम है, रोगों से लड़ने की क्षमता प्रभावित

इनका कहना है

पोषक तत्वों की कमी के चलते ही मिट्टी बीमार हो रही है। मिट्टी की जांच जरूरी है। इसमें मिट्टी की बीमारियां किसानों को पता चल जाती हैं। उसके बाद कृषि वैज्ञानिकों से उसके उपचार के लिए जानकारी की जा सकती है। मिट्टी की पोषकता बढ़ाने के लिए फसलचक्र अपनाने के साथ खेती में जीवाश्म खाद, हरीखाद का प्रयोग हितकर रहता है।

-डॉ. एसआर सिंह, कृषि वैज्ञानिक

मिट्टी की पोषकता जानने के लिए मृदा स्वास्थ्य कार्डों का वितरण ब्लाक स्तर पर चयनित मॉडल ग्राम के किसानों को किया जा रहा है। जनपद में अब तक करीब 1971 कार्ड निर्धारित लक्ष्य के अनुरूप निशुल्क वितरित किये जा चुके हैं। साथ ही मिट्टी की पोषकता बढ़ाने से संबंधित उपाय जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से किसानों को बताये जा रहे हैं।

-एचएन सिंह, कृषि उपनिदेशक


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