बेटा खोजने में जुटे सतीश को आर्थिक संकट ने घेरा
संवाद सूत्र, सासनी : ट्विटर पर मुख्यमंत्री से हुई शिकायत के बाद गांव द्वारिकापुर से लापता
संवाद सूत्र, सासनी : ट्विटर पर मुख्यमंत्री से हुई शिकायत के बाद गांव द्वारिकापुर से लापता किशोर की तलाश में पुलिस ने छानबीन तो शुरू कर दी है और सासनी में छानबीन के अलावा मथुरा व आगरा भी टीम भेजी गई है, जहां पोस्टर आदि के जरिए बच्चे की तलाश की जा रही है मगर कई महीने से साइकिल लेकर बेटे को तलाशते रहे सतीश के सामने अब आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। परिवार के समक्ष दो वक्त की रोटी का खतरा मंडराने लगा है।
सतीशचंद्र का इकलौता बेटा गोदना (11) 24 जून को स्कूल गया था, जिसके बाद वापस नहीं लौटा। शिकायत के बाद भी कार्रवाई न होने पर सतीश ने भी पुलिस के ज्यादा चक्कर नहीं काटे। उन्होंने कहा कि एक बार टरकाने के बाद समझ गए थे कि पुलिस उनकी मदद करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रही। इसलिए खुद ही साइकिल उठाकर बेटे की तलाश को चल दिए तथा साइकिल से करीब 1900 किलोमीटर का सफर तय कर लिया। जगह-जगह बेटे की तलाश की। लोगों को फोटो दिखाया। खुद पर्चे जगह-जगह चिपकाए, पर गोदना का कुछ पता नहीं चल सका।
आगरा में छानबीन के दौरान दैनिक जागरण ने इस खबर को प्रमुखता से छापा। इस खबर को पढ़कर एक समाजसेवी नरेश पारासर ने मुख्यमंत्री व डीजीपी को ट्विट किया। खबर की क¨टग भी पोस्ट की। इसके बाद पुलिस हरकत में आई। एक दिसंबर को अपहरण का मुकदमा दर्ज किया तथा शनिवार रात सतीशचंद्र के वापस आते ही एएसपी खुद गांव पहुंचे तथा पीड़ित परिवार से बात की।
पांच महीने से बेटे की तलाश में सतीश घर की ओर ध्यान नहीं दे सके। बेटे की याद में पत्नी गीता की तबीयत खराब होने लगी। घर का राशन भी धीरे-धीरे खत्म होने लगा। 15-20 दिन के बाद सतीश लौटते थे तथा गांव के लोगों की मदद से राशन-पानी का इंतजाम कर जाते थे। उन पर केवल ढाई बीघा खेत है, जो कि छह महीने से खाली पड़ा है। खेती ही उनकी आय का साधन है। पत्नी की तबीयत खराब होने पर सतीश पड़ोसियों से कर्ज लेकर इलाज करा रहे हैं। लोगों की उनके प्रति हमदर्दी है। ग्रामीण भी प्रयास कर रहे हैं कि गोदना मिल जाए, जो कि दंपती का एक मात्र सहारा है।
रेलवे स्टेशन पर देखा
गया था आखिरी बार
हाथरस : सतीशचंद्र ने बताया कि जब उन्होंने छानबीन शुरू की तो पता चला कि उसे 24 जून की शाम को ही मडराक रेलवे स्टेशन पर देखा गया था। स्टेशन पर छानबीन की गई। उन्हें यकीन था कि वह किसी ट्रेन में बैठ गया होगा। इसलिए दिल्ली से कानपुर तक, झांसी आदि जगहों की खाक छानी, पर सफलता नहीं मिली। सतीश ने बताया कि दिव्यांश दिमागी रूप से कमजोर है, लेकिन इतना भी नहीं कि वह बोल व समझ न सके।