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हरि आइ हास्पिटल की सांसें लौटने की उम्मीदें जागीं

कृष्णबिहारी शर्मा, हाथरस : दम तोड़ चुके हरि आइ हास्पिटल में सांसें लौटने की उम्मीद जा

By JagranEdited By: Published: Wed, 07 Feb 2018 03:11 AM (IST)Updated: Wed, 07 Feb 2018 03:11 AM (IST)
हरि आइ हास्पिटल की सांसें लौटने की उम्मीदें जागीं
हरि आइ हास्पिटल की सांसें लौटने की उम्मीदें जागीं

कृष्णबिहारी शर्मा, हाथरस :

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दम तोड़ चुके हरि आइ हास्पिटल में सांसें लौटने की उम्मीद जाग गई है। अस्पताल के प्रबंधन आदि को लेकर जिला न्यायालय में चल रहे वाद में जनपद न्यायाधीश ने एक प्रमुख आदेश पारित कर दिया है। अस्पताल ट्रस्ट के प्रभावी संचालन एवं निष्पादन के लिए रिसीवर जिलाधिकारी की ओर से दिए गए प्रार्थनापत्र को मंजूरी दे दी गई है। इसी के साथ नए ट्रस्टियों की नियुक्ति के लिए संशोधित संविधान के उपबंधों के अधीन सभी शक्तियों के उपयोग की भी अनुमति रिसीवर को दी गई है। अस्पताल संचालन समिति गठन के लिए भी गाइडलाइन कोर्ट ने दी है।

अस्पताल का वजूद :

ज्यादा नहीं, दो दशक पूर्व की ही बात है, उत्तर प्रदेश में नेत्र चिकित्सा क्षेत्र में सीतापुर व अलीगढ़ के बाद यदि कहीं का नंबर आता था तो वह था हाथरस का हरि आइ हास्पिटल। यहां 300 बिस्तरों का प्रबंध और 4 चिकित्सकों सहित 52 कर्मचारियों का स्टाफ था। दूरदराज से नेत्र रोगी अपना इलाज कराने के लिए यहां आते थे। अब यह अस्पताल दम तोड़ चुका है और इसके वजूद पर विवादों के बादल मंडराए हुए हैं। इसकी संपत्ति भी खुर्दबुर्द हो चुकी है और मामला जिला न्यायालय से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक विचाराधीन है।

अतीत की यादें :

शहर में आगरा रोड पर इस नेत्र चिकित्सालय की स्थापना ब्रिटिश शासनकाल में 14 मई 1945 को हुई थी। अस्पताल का बीजारोपण डा. हरिवंशलाल ने किराए की बि¨ल्डग में किया था। बाद में उन्हीं ने इस छोटी सी इमारत को अस्पताल का रूप दिया। अस्पताल भवन की नींव 5 फरवरी 1947 को रखी गई। विधिवत उद्घाटन 5 अप्रैल 1952 में देश के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने किया था।

चहुंओर फैली ख्याति :

इस अस्पताल की ख्याति इतनी हुई कि वर्ष 1969 के अंत तक 21 लाख नेत्र रोगी यहां चिकित्सा करा चुका थे तथा 70 हजार नेत्र रोगियों की शल्य चिकित्सा हो चुकी थी। अस्पताल 170 स्थाई बिस्तरों का था, जिसमें अस्थाई बिस्तरों को मिलाकर संख्या 300 थी। इसमें 7 जनरल व 11 प्राइवेट वार्डों के अलावा वाह्य रोगी विभाग, भेंगापन चिकित्सा विभाग, प्रयोगशाला, एक्सरे विभाग, शल्य गृह, औषधि विभाग, प्रचार विभाग, लेखा-जोखा विभाग आदि भी थे। वर्ष 1971 तक अस्पताल का आलम यह था कि मरीजों के लिए स्थान का अभाव रहता था। वे आसपास की धर्मशालाओं में रुकते थे।

प्रबंधन के हालात :

अस्पताल की प्रबंध कार्यकारिणी में 109 सदस्य थे। संस्थापक डा. हरिवंशलाल ने 31 मार्च 1955 को सार्वजनिक ट्रस्ट की स्थापना की थी और अस्पताल की चल-अचल संपत्ति को ट्रस्ट के नाम स्थानांतिरत कर दिया गया था। उन्होंने अस्पताल से अपना निजी स्वामित्व त्यागकर चिकित्सालय अधीक्षक का पद ग्रहण किया था। 1972 में उनका देहावसान हो गया।

विवादों के बादल :

डॉ. हरिवंशलाल के बाद अस्पताल की कमान डॉ. ओम शर्मा ने संभाली। इसके बाद वर्ष 2000 तक तो ठीक-ठाक चलता रहा, मगर इसके बाद विवादों के बादल मंडराने शुरू हो गए। कुछ केस बिगड़े तो मरीजों व उनके तीमारदारों के निशाने पर अस्पताल आया। इधर, संपत्ति खुर्द-बुर्द हुई तो जागरूक लोगों की निगाहें दौड़ीं। वर्ष 2005 में मामला कोर्ट में पहुंच गया और खूब किरकिरी हुई। हरि आई हास्पिटल को लेकर वर्तमान में सुíखयां बने मधुशंकर अग्रवाल ने 18 जनवरी 2005 को जिला जज की अदालत में जनहित याचिका दायर की। उन्होंने अस्पताल का संचालन कर रहे डॉ. ओम की पात्रता पर ही सवाल खड़े किए। जवाब में डा. ओम ने आरोपों को असत्य बताते हुए खुद को मेडिकल सुप¨रटेंडेंट बताया। इसे लेकर 22 अप्रैल 05 को काउंटर दाखिल किया गया और चिकित्सक की डिग्रियों को चुनौती दी गई। संपत्ति को लेकर भी प्रश्न किए गए। पड़ताल में डा. ओम पर आरोप सही पाए गए और उन्हें जेल तक जाना पड़ा।

और उलझा मामला

वर्ष 2007 से मामला और उलझ गया। मामले की सुनवाई कर रहे एडीजे ने अस्पताल में रिसीवर नियुक्त करने के लिए आवेदन मांग लिए। तभी डॉ. ओम के जरिए शहर के प्रमुख राजनीतिक परिवार का दखल अस्पताल में हुआ। पूर्व मंत्री रामवीर उपाध्याय के भाई पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष विनोद उपाध्याय अस्पताल प्रबंध समिति के सचिव बन गए। उधर, जब कोर्ट की पहल पर रिसीवर के लिए आवेदन हुए तो तत्कालीन जिलाधिकारी ¨पकी जोवल ने भी प्रशासक की हैसियत से रिसीवर के लिए आवेदन कर दिया। शंका होने पर उन्होंने एडीजे के खिलाफ टीए भी जिला जज के यहां डाल दिया। इसी क्रम में कोर्ट ने वर्ष 2010 में डीएम को अस्पताल का रिसीवर नियुक्त कर दिया। उधर, इस निर्णय के खिलाफ विनोद उपाध्याय हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीमकोर्ट तक गए। मामला अब भी न्यायालय में उलझा हुआ है।

जिला जज का फैसला :

इधर, रिसीवर की हैसियत से अस्पताल ट्रस्ट के प्रभावी निष्पादन के लिए जिलाधिकारी ने कोर्ट में दो अलग-अलग प्रार्थनापत्र दिए। जिला जज ने उनके दोनों प्रार्थनापत्रों को स्वीकार करते हुए ट्रस्ट के हित में नए ट्रस्टियों की नियुक्ति के साथ ही संशोधित संविधान के उपबंधों के अधीन सभी शक्तियों के उपयोग की अनुमति दे दी है। इसी के साथ अस्पताल संचालन के लिए समिति गठित करने के लिए भी कोर्ट ने गाइडलाइन दी हैं।

वर्जन

हरि आइ हास्पिटल के संचालन के लिए जल्द ही बेहतर इंतजाम किए जाएंगे। शीघ्र ही इसे लेकर संबंधित अधिकारियों के साथ बैठक करेंगे, इसी में एक तारीख तय कर दी जाएगी और उस दिन उन लोगों को आमंत्रित कर लिया जाएगा जो अस्पताल के ट्रस्टी बनने की इच्छा रखते हैं। इन्हें सारे नियम व शर्तें बता दी जाएंगी और जो आवेदन करेंगे उनमें से उचित लोगों का चयन कर लिया जाएगा।

-अमित कुमार ¨सह, डीएम/रिसीवर, हरि आइ हास्पिटल।

इंसेट..

आमजन की संपत्ति को

खुर्द-बुर्द नहीं होने दूंगा

हरि आइ हास्पिटल से जुड़े मामले को अदालत के गलियारों तक ले जाने वाले मधुशंकर अग्रवाल का कहना है कि अस्पताल आमजन की संपत्ति है। मैं इसको किसी भी कीमत पर खुर्द-बुर्ध नहीं होने दूंगा। इसे बचाने के लिए हर संभव प्रयास करूंगा। मैं चाहता हूं कि यहां योग्य चिकित्सक बैठें और गरीब लोगों का नि:शुल्क इलाज हो।


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