..हुकुम दीजिये प्राणपति जाऊं देवर के संग
-नगाड़ों की गूंज से शुरू हुआ इंदर हरण स्वांग सुबह तक चला - सादगीपूर्ण हुआ स्वांग का शुभारंभ दर्शकों ने उठाया लुत्फ
जासं,हाथरस: मेला श्री दाऊजी महाराज के पंडाल में शुक्रवार की रात्रि हुए इंदर हरण स्वांग में कलाकारों ने ब्रज की अनुपम छटा पेश की। वीर रस से ओत-प्रोत इस नौटंकी में आल्हा-ऊदल आदि के संवादों पर दर्शक झूमते नजर आए। स्वांग के नक्कारे सुबह 4 बजे तक गूंजते रहे। इसे सुनने आए लोगों का पंडाल में शाम से ही आना शुरू हो गया था।
देहाती कार्यक्रम के नाम से प्रसिद्ध स्वांग नाम की इस नौटंकी की शुरुआत भी सादगीपूर्ण तरीके से हुई। इसका शुभारंभ प्रेमरघु हॉस्पिटल के संचालक डॉ. पीपी सिंह ने फीता काटकर किया। इसमें वरिष्ठ बसपा नेता वीरेंद्र सिंह कुशवाहा व मुरसान के चेयरमैन रजनीश कुशवाहा मुख्य रूप से मौजूद थे। कार्यक्रम के आयोजक सूरजपाल सिंह कुशवाहा ने सभी अतिथियों को प्रतीक चिह्न भेंटकर जोशीला स्वागत किया। इसके बाद भक्ति-वंदना करते हुए इंदर हरण स्वांग की शुरुआत की। स्वांग के कार्यक्रम को श्री श्यामबृज कला नौटंकी पार्टी द्वारा पेश किया गया। इसमें मछला रानी का किरदार निभा रही कृष्णा कुमारी ने इस रचना से गंगा नहाने का आग्रह अपने पति आल्हा से किया। श्री गंगा के नहान की, मोह मन उठी उमंग- हुकुम दीजिये प्राणपति जाऊं देवर के संग। इस पर पहले तो आल्हा ने एतराज जताया पर त्रिया चरित्र के आगे उसकी एक न चली और मछला अपने पुत्र इंदर को लेकर देवर ऊदल के संग गंगा नहाने चली जाती है। वहां पर चित्तररेखा नामकी जादूगरनी का किरदार निभा रही सपना ने अपने मन की व्यथा इंदर से इन पंक्तियों में व्यक्त की-क्यूं दिल रंजीदा करो, शम्स कमर खुर्शीद, बहुत दिनों से आपकी हमको थी उम्मीद' खूब पंसद किया गया। वहीं, ताला सैयद का रोल कर रहे नंद किशोर निराला की इन पंक्तियों - गजब कियो ऊदल तैन दीने बादर फाड़, अरे अधर्मी म्यानकर अब अपनी तलवार, ने भी खूब तालियां बटौरी। कार्यक्रम में भैरो सिंह ने आल्हा, रुस्तम सिंह ने ऊदल व किशन माहिल का रोल अदा किया। सुबह 4 बजे तक चले इस इस रंगारंग कार्यक्रम का लोगों ने जमकर लुत्फ उठाया।
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युवाओं की समझ से परे हैं स्वांग
हाथरस: स्वांग या नौटंकी की घटती लोकप्रियता के बारे में नंदकिशोर निराला बताते हैं कि स्वांग 40 वर्ष से ऊपर के ही लोगों की समझ में आ पाता है। इसका कारण है कि पुराने लोग अपनी संस्कृति व सभ्यता का आज भी सम्मान करते हैं। युवाओं के पास तो मोबाइल क्रांति के चक्र में इसे समझने के लिए समय ही नहीं है। इसी के कारण इस तरह के कार्यक्रमों का क्रेज घटता जा रहा है।
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लुप्त होने के कगार पर हैं देश की पुरानी विधाएं
हाथरस: स्वांग कलाकार क्रांति रानी बताती हैं स्वांग आदि कार्यक्रमों में क्षेत्रीय प्रधानता होती है। आधुनिकता के असर से परे होने के कारण इसे कम ही पसंद किया जा रहा है। सरकारों द्वारा भी इसे प्रोत्साहन नहीं मिलने से देश की पुरानी विधाएं लुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी हैं।