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दूसरों की मन:स्थितियों को समझने तक ही सीमित नहीं है समानुभूति

हाथरस समानभूति की निश्चित परिभाषा देना संभव नहीं है क्योंकि विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने इसे अलग-अलग स्तर पर परिभाषित किया है। इसकी एक सामान्य परिभाषा हो सकती है कि किसी काल्पनिक चरित्र की मनस्थितियों को सटीक रूप से समझने की क्षमता समानभूति होती है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 17 Sep 2020 02:50 AM (IST)Updated: Thu, 17 Sep 2020 02:50 AM (IST)
दूसरों की मन:स्थितियों को समझने तक ही सीमित नहीं है समानुभूति

हाथरस : समानभूति की निश्चित परिभाषा देना संभव नहीं है, क्योंकि विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने इसे अलग-अलग स्तर पर परिभाषित किया है। इसकी एक सामान्य परिभाषा हो सकती है कि किसी काल्पनिक चरित्र की मन:स्थितियों को सटीक रूप से समझने की क्षमता समानभूति होती है।

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कुछ मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि समानुभूति सिर्फ दूसरों की मन स्थितियों को समझने तक सीमित नहीं है, बल्कि उन्हीं भावनाओं को उस स्तर पर महसूस करने का नाम है, जिस स्तर पर उन भावनाओं का मूल्य व्यक्ति ने अनुभव किया था। इसका चरम रूप वहां दिखता है, जहां व्यक्ति की चेतना में स्व तथा पर का अंतर मिटने लगता है। इसमें दूसरों के भावों को, परिप्रेक्ष्य के प्रति संवेदनशीलता तथा उनके कार्यों में सक्रिय रुचि उत्पन्न होती है। इस क्षमता वाले व्यक्तियों की भावनाओं, स्थितियों और आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर उनकी सहायता करने का प्रयास करते हैं। समानुभूति के विकास के लिए दूसरे लोगों की समस्याओं से अवगत होने, उनकी स्थितियां परंपराओं और विश्वास आदि को तन्मयता से सुनने व समझने का अवसर मिलना चाहिए।

प्रशासनिक अधिकारी फील्ड विजिट करते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में कैंप लगाते हैं और उनके बीच रहकर उनकी समस्याओं को समझने का प्रयास करते हैं। राजस्थान में कुछ समय पूर्व जारी कार्यक्रम से प्रशासन के गावों की ओर जाने का लक्ष्य यह था कि प्रशासनिक अधिकारी लोगों की समस्याओं में उनकी भावनाओं से परिचित हो सकें तथा ग्रामीणों की समस्याओं के प्रति संवेदनशील बन सकें। इसमें प्रशानिक अधिकारियों में समानुभूति का अहसास हो सके, जिससे वे उनकी समस्याओं का समुचित समाधान कर सकें।

प्रशासनिक अधिकारियों को दूसरों की भावनाओं को समझना चाहिए। समानूभूति न केवल लोगों से संवाद स्थापित करने में मदद करती है, बल्कि ये पारस्परिक समझ को आगे बढ़ाती है। सहानुभूति को पुन: परिप्रेक्ष्य ग्रहण तथा कल्पना में विभाजित किया गया है। परिप्रेक्ष्य ग्रहण किसी अन्य व्यक्ति के व्यवहार को समझने की क्षमता है, जबकि कल्पना किसी काल्पनिक चरित्र की परिस्थिति को समझने की क्षमता है। भावनात्मक समानुभूति को भी दो भागों में बांटा जाता है। समानूभूति चिता में व्यक्ति की भावनाएं उत्तेजित हो जाती हैं और वह चाहने लगता है कि पीड़ित व्यक्ति की स्थित में सुधार हो और अगर वह किसी तरह का सहयोग करने की स्थिति में होता है तो पीड़ित व्यक्ति को सहयोग भी करता है। समानुभूति के तनाव में तीव्रता का स्तर और भी अधिक होता है। यह तीव्रता इतनी होती है कि व्यक्ति का सामान्य जीवनयावन भी कठिन हो जाता है। समानुभूति तनाव के लाभ कम हैं और हानि ज्यादा है।

-भारतेंदु सिंह, प्रधानाचार्य, बलवंत सिंह सीनियर सेकेंडरी स्कूल, सलेमपुर


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