विदेशी पुस्तकालयों में ¨जदा है अभिनय का जादूगर
पं.नथाराम गौड़ की जयंती पर विशेष कैलिफोर्निया और शिकागो में पंडित नथाराम की स्वांग रचनाओं पर चल रहे हैं शोध कार्य ब्लर्ब- -बिना माइक और कैमरे के 50 हजार दर्शकों को बांधे रखते थे पंडित नथाराम
संवाद सहयोगी, हाथरस : देश-विदेश में भले ही बॉलीवुड के शहंशाह और बादशाह की धूम मची हो, लेकिन भारत में फिल्मों से पहले हाथरस की धरती पर अभिनय का वह सितारा जन्मा था, जिसने बिना कैमरे और माइक के रंगमंच की दुनिया को मंत्रमुग्ध कर दिया था। यह थे लोकनाट्य के महाकलाकार स्वांग सम्राट पंडित नथाराम गौड़। सोमवार को उनकी 145वीं जयंती है।
सांस्कृतिक तौर पर हाथरस अपने अतीत में कितना समृद्ध रहा होगा, इसका पता कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी की ई-बुक्स लाइब्रेरी और शिकागो यूनिवर्सिटी की रेगेन्स्टीन लाइब्रेरी में विद्यार्थियों के शोध के लिए शामिल की गईं पंडित नथाराम की स्वांग रचनाओं से चलता है। 14 जनवरी 1874 को जन्मे पंडित नथाराम के हाथ से छपी (लिथोग्राफ्ड) रचनाओं को ब्रिटिश म्यूजियम और लंदन स्थित इंडिया ऑफिस लाइब्रेरी ने भी संभालकर रखा है। पंडित नथाराम के प्रपौत्र गौरीशंकर गौड़ स्वांग को समझाते हुए बताते हैं, ब्रज प्रदेश नृत्य, गायन, अभिनय का प्रमुख केंद्र रहा है। कृष्ण की रासलीला के कारण भरत मुनि के पांचवें वेद नाट्य वेद की रचना से पहले भी यह क्षेत्र लोकनाट्य में अपनी पहचान बना चुका था। ऐसा शास्त्रों से पता चलता है। स्वांग इन्हीं प्राचीनतम लोकनाट्य परंपराओं से किसी न किसी तरह जुड़ा रहा है। प्राचीन समय में मनोरंजन के आज जैसे साधन न होने के कारण स्वांग बहुत जल्दी लोकप्रिय हुआ। स्वांग में ही गीत मिलकर ही सांगीत शब्द बना है। स्वांग में अभिनय के साथ डायलॉग डिलीवरी गद्य और पद्य दोनों में होती है, इसलिए इसे सांगीत यानी म्युजिकल ड्रामा कहा जाता है। 200 वर्ष पुरानी विधा :
मौजूदा स्वांग परंपरा का विकास ¨हदी की अन्य विधाओं जैसे नाटक, एकांकी, कहानी, उपन्यास आदि की तरह ही 18वीं शताब्दी के उपरांत माना जाता है। वास्तव में स्थानीय प्रभावी और परिस्थितियों के कारण इनके नामों में अंतर तो आ गया है लेकिन भावना मूलत: समान ही रही है। मथुरा, वृंदावन, आगरा आदि में भगत या रहस, लखनऊ, कानपुर, फर्रुखाबाद, मेरठ जैसे पूर्वी क्षेत्रों में नौटंकी, हरियाणा में कई जगह सांग, पंजाब में नौटंकी और राजस्थान में ख्याल कहा जाता है।
विदेशों में थी धूम :
पंडितजी ने ही सबसे पहले स्वांग की व्यावसायिक मंडलियों का गठन किया था। उनके स्वांग की देश में ही नहीं, बल्कि मलेशिया, इंडोनेशिया, रंगून, फिजी आदि देशों में धूम थी। उन्हें 50 हजार दर्शकों को बांधे रखने में महारत हासिल थी। सर्वाधिक लोकप्रिय था
नथाराम का अखाड़ा
गौरीशंकर गौड़ बताते हैं कि हाथरस में पहला स्वांग 'स्याह पोश' खेला गया था जो वासुदेवजी के बासम अखाड़े का था। कलाकर सहदेव का निष्कलंक कलाकारों का अखाड़ा भी मशहूर रहा, लेकिन सबसे ज्यादा ख्याति पाई पंडित नथाराम वाले तुर्रा कलाकारों के अखाड़े ने। नथाराम की मधुर स्वर लहरियों और अभिनय कौशल के कारण बाकी मंडलियां जल्द ही निस्तेज हो गईं। पंडितजी से पहले स्वांग में श्रृंगार रस की प्रधानता थी लेकिन पंडितजी ने उसमें करुणा, शांति, धर्म, ऐतिहासिकता, देशभक्ति, महान पुरुषों के क्रियाकलाप, रामायण और महाभारत आदि पात्रों से जनता को परिचित कराया।